पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४००

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२०४६ वाक' (एब्द०)। (ख)। रूठता हूँ इस सवव हर बार मैं। ता ताऊन-सा पु. [प.] एक घातक सक्रामक रोग जिसमें गिप्टी गले तेरे सा ऐ यार मैं । कविता को०, भाग ४, पृ० २६1 निकलती मौर बुखार भाता है। प्लेग । ताgs.-सव. [ म० तद् ] उस। ताऊस--सद्धा पुं० [म.] १. मोर । मयूर । विशेष-इस रूप में यह पद विभक्ति के साथ ही प्राता है। यौ०-तख्त ताऊस - शाहजहाँ के बहुमूल्य रत्नजटित राब- जैसे,-ताको, तासो, ताप इत्यादि । सिंहासन का नाम जो कई करोड़ की लागत से मोरमाकार ता@f-वि० उस ! उ०-तब शिव उमा गए ता ठौर ।-सुर का बनाया गया था। (अन्द०) २. सारगी भोर सितार से मिलता जुलता एक बाजा जिसपर विशेष--इसका प्रयोग विभक्तियुक्त विशेष्य के साप ही होता है। मोर का आकार बना होता है। ता-नि० वि० [फा०] जब तक। उ०---फरे ता मो पल्लाह का विशेष—इसमें सितार के से सरद मौर परदे होते है और यह नायब करम। हमारा सभी जाय ये दर्दो गम 1-वक्खिनी., __ सारगी की कमानी से रेतकर बजाया जाता है। पु० २१४। ताऊसी-वि० [अ०] १. मोर का सा । मोर की तरह का। २ ता-सा पुं० [मनु] नृत्य का बोल । उ.-रास मे रसिफ दोक गहरा ऊदा । गहरा बैंगनी। पानंद, भरि नाचत, गताद्रिम द्रिता सतयेइ ततथेइ गति ताक'-पका स्पी० [हिं० ताकना] 1 ताकने की क्रिया । अवलोकन । वोले ।-नद००,पृ. ३६६। यो०-ताक झोक । ताई -सन्य० [सं० तावत् या फा• ता] दे० 'ताई'-३ । मुहा०—ताफ रखनास निगाह रखना । निरीक्षण करते रहना। उ.अपूत घोड विषय रस पीच, ग तृग तिनके ताई - २. स्थिर दृष्टि । टकटकी। फाचीर १०, भा० १, पृ० ४५ । मुहा०-ताक वाषना = स्थिर करना । टकटकी लगाना। ताई- सधा श्री. [ सं० ताप, दि. ताय+ ई (प्रत्य॰)] १. ताप । ३ किसी पवसर की प्रतीक्षा । मौका देखते रहने का काम । हरारत । हलका ज्वर । २ जागा देकर भानेवाला बुखार । घाव । जैसे,बदर पाम लेने की ताक में बैठा है। चूड़ी। मुहा०-( फिसी को) ताफ में बैठना = (किसी का ) महित क्रि०प्र०-माना। चेतना । उ०-पो रहे ताकते हमारा मुह । हम उन्हीं की ३ एक प्रकार की छिछली कडाही जिसमें मालपूना, जलेबी आदि न ताक में बैठे।-चोले०, पृ. २७ । ताक में रहना = बनाते हैं। उपयुक्त प्रवसर की प्रतीक्षा करते रहना । मौका देखते रहना। ता –समा श्री० [हिं० ताऊ का स्त्रीलिंग ] बाप के बडे भाई की ताक रखना = घात में रहना । मौका देखते रहना । ताक ली । जेठी चाची। लगाना- घात लगाना । मौका देखते रहना। वाई@--प्रव्य० [सं० तावत् या फ़ा. ता] दे० 'ताई'-३ । ४ शेज। तलाश। फिराक। पैसे,--(क) किस ताक में बैठे उ.- भूत खानि मे रहो समाई । सब जग जाने तेरे ताई।- हो ? (ख) उसी की ताक में जादे है। कवीर सा., १० १५१८1 ताकर-सबा पुं.म.ताक] दीवार मे चना हमा गद्धा या खाली वाई -वि० [सं० तावत् ] वही। उ०--साजे सार छत्रीस स्थान जो चीज वस्तु रखने के लिये होता है। माला । ताम्वा । सिपाई । श्यार हुमा रण मंडण ताई।-रा० रू., पु०६५। मुहा०ताक पर धरना पा रखना = पड़ा रहने देना। काम ताईत-सपा पुं० [ फा तावीज़ ] तावीज । जतर । यत्र । में न लाना। उपयोग न करना । जैसे,—(क) किताव ताक ताईद-सधा श्री० [प०] १. पक्षपात । तरफदारी । २ अनुमोदन । पर रख दी और खेलने के लिये निकल गया। (स) तुम अपनी समर्थन । पुष्टि। उ०-मास्तिर मिरजा साहम झूठ क्यो किताब ताक पर रखो, मुझे उसकी जरूरत नहीं। ताक पर बोलते पौर मुशी प्रन्तर साहप इनकी ताईद क्यो करते ?- रहना या होना पड़ा रहना । काम में न पाना । पलग सेर०, पृ० १२। पड़ा रहना । व्ययं जाना । जैसे, यह वस्तावेज ताक पर रह जायगा, और उसकी डिगरी हो जायगी। हाक मरना%D निम-करना।--होना। किसी देवस्थान पर मनौती की पूजा चढ़ाना !--(मुसल.)। ताईदार--सधा पु. १. सहायक कर्मचारी। नायध । २ किसी कर्मचारी के साथ काम सीखने के लिये उम्मेदवार की तरह ताक - वि० १. जो संख्या में सम न हो। जो बिना खडित हुए दो वराबर भागों में न वॅट सफे । विषम । जैसे, एक, तीन, पाय, काम करनेवाला व्यक्ति । सात, नो, ग्यारह प्रादि। ता -सशा पुं० [हिं०] दे० 'ताव'। यो०- जुफ्त ताक या जूम वाक। ताउला-वि० [हिं० उतावला] उतावला । मधीर । २ जिसके जोड का दूसरा न हो। भद्वितीय । एक या भनुपम । वाऊ-समा ० [सं० तातगु] वार का वडा भाई । वडा चाचा । ताया। जैसे, किसी फन में ताक होना। उ~-जो था अपने फन में मुहा०-बछिया के ताक-वैल । मूर्ख । जड । ताक चा:-फिसाना, भा०३, पृ०४६ !