पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४०१

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साकजुफ्त २०४७ •तागपाट ताकजुफ्त-सचा पुं० [अ० ताक +फा० जुफ्त] एक प्रकार का जूमा ताकोली-सझा स्त्री॰ [देश॰] एक पौधे का नाम । जिसमें मुट्ठी के भीतर कुछ कोडिगा या और वस्तुएं लेकर ताक्षण्य, ताक्षण-सा पुं० [सं०] बढ़ई का लड़का [को०] । बुझाते हैं कि वस्तुओं की संख्या सम है या विषम । यदि ताख-या पुं० [अ० ताक देताक'२। उ०-पढ़ सुगना सत बुझनेवाला ठीक बतला देता है तो वह जीत जाता है। दाम, बैठ वन ताख में |-घरम०, पृ० ४३ । ताकझाँक-सखी० [हि ताकना+झांकना] १ रह रहकर ताखड़ा'—वि० [देश०] दे० 'तगड़ा'। बार बार देखने को क्रिया। कुछ प्रयत्नपूर्वक दृष्टिपात ।। ताखदार...-वि० [7] उत्साहित । उ०-ताखड़ा, नत्रीठा मोडिया से,--क्या ताक झोक लगाए हो, ममी वे यहां नहीं पाए हैं। सायला । घणा घायल किया भाप घण घायलो।-रघु० २ छिपकर देखने की क्रिया। ३. निरीक्षण। देखभाल । 6०, पृ०१८३। निगरानी । ४. अन्वेषण । खोज। ताखदो-चा बी० [सं० त्रि+हिं. कही ] तराजू । काँटा । ताकत-सेवा श्रीम. ताकत १ जोरावल । शक्ति । २. सामर्य। ताखन -कि० वि० [हिं०] दे० 'तरक्षण'। उ०-खन उठलिउँ जैसे,-किसी की क्या ताफत जो तुम्हारे सामने पावे। जागि रे ।~घरनी०, पृ० २८ । ताकतवर-वि० [म. ताक़त+फा० वर (प्रत्य॰)] १ बलवान् । ताखा-सब पुं० [हिं०] दे० 'ताक' । दलिष्ठ। २ शक्तिमान : सामथ्र्यवान् । ताखी-वि० [अ० ताक ] १ जिसकी दोनों आँखें एक तरह की न ताकना-क्रि० स० [सं० तर्कण ( =विचारना)] १ सोचना। हों। जिसकी एक प्रखि एक रंग या ढंग की हो और दूसरी विचारना । चाहना । उ०—जो राउर अनि मनभल ताका । सो पांख दूसरे रंग ढग को हो। (घोड़ो, बैलों भादि के लिये। पाइहि यह फल परिपार।।—तुलसी (शब्द०)।२ प्रवधोकन ऐसे जानवर की समझे जाते हैं । २ साधुओं के पहनने करना । दृष्टि जमाफर देखना । टकटकी लगाना । ३ साड़ना। की नोकदार एक टोपी । उ---गुरू का सबद पोर समझ जाना । लखना। ४ पहले से देख रखना। (किसी फान में मुद्रिका, उनमुनी विलफ सिर तत्त ताखी ।-पलटू०, वस्तु को किसी कार्य के लिये) देखकर स्थिर करना । तजवीज मा०२, पृ० २५। करना । जैसे,—(क) यह जगह मैंने पहले से तुम्हारे लिये ताक ताखीर-सच्चा सौ. [म० ताखोर विलय । देर । उ०-देख नाचार रखी है, यही वैठो। (ख) कोई पच्छा यादमी ताककर यहाँ फर न कुछ ताखीर |--कवीर म०, पृ० ३७४। लामो। ५. दृष्टि रखना। रखवाली करना । जैसे,—मैं अपना प्रसवाव पही छोडे जाता हूँ,परा ताकते रहना। ताग-- ० [हिं० तागा] दे० 'तागा' । उ०-सत रज तम तीनौं ताग तोरि डारिप।-सुदर म०, भा॰ २, पृ०६११ । ताकरी-समा खी० [सं० टपक (= एक क्षेप या एफ जाति)] एक लिपि का नाम पो नागरी से मिलती जुलती होती है। तागही-सहा स्त्री० [हिं० वाग+ कडी] १. तागे में पिरोए हुए सोने विशेष--मटक के उस पार से लेकर सतलज और यमुना नदी चाँदी घुधुरुमों का बना हुमा कमर में पहनने का एक के किनारे तक यह विपि प्रचलित है। काश्मीर पौर कॉगड़े गहना । करपनी। कापी किंकिणी। क्षुद्रघटिका । के ब्राह्मणों में इसका प्रचार पद तक है। इस भक्षरो को विशेषतागड़ी सोकड या जजीर पाकार की भी बनती है। खुढे या महे भी कहते हैं। २. फमर मे पहनने का रंगीन डोरा । कटिसूत्र । करगता। ताकवना -क्रि० स० [हिं०] दे० 'ताकना'। उ०-कायर सेरी तागत -सदा स्त्री० [म० ताकत ] ३० ताकत'। उ..-तागत ____ ताकवं, सूरा मां पाव ।-चीर. सा., स०, पृ० २६1 विना हवास होस तुलसी मैं मरूं।-संत० तुरसी, पृ० १४३ । ताकि--प्रव्य० [फा०] जिसमें । इसलिये फि। जिससे । जैसे, यहां दागना -क्रि० स० [हिं० तागा+ना (प्रत्य॰)] सुई से तागा डाल- से हट जाता हूँ ताकि वह मुझे देखने न पावे।। कर फंसाना । स्थान स्थान पर होभ या लगर डालना। दूर दूर की मोटी सिलाई करना । जैसे, दुलाई या रजाई तागना। ताकीद-सहा बी० [अ०] जोर के साथ किनी बात को माज्ञा या उ.- ज्ञान गुदरी मुक्ति मेखला सहज सुई ले तागी।-कवीर मनुरोध । किसी को सावधान कर दी हुई माज्ञा। खूब थ०, मा० ३, पृ०४२ । चेताकर कही हुई पात। ऐसा अनुरोध या यादेश घिसके पालन के लिये बार पार कहा गया हो । जैसे,-मुहरिरों से तागपहनी-सपा स्त्री० [हिं० तागा+पहनाना) एक पतली लकड़ी ताकीद फर दो कि कल ठाक समग एर यावें। उ०-क्या जिसका एक सिरा नोकदार और दूसरा चिपटा होता है। तूने सब लोगो से ताकीद कर नही कहा था कि उत्सव हो? चिपटा सिरा वीप से फटा रहता है जिसमें तागा रखकर पय -भारतेंदु प्र०, मा०, पृ० १७६ । में पहनाया जाता है। ( जुलाहे )। क्रि० प्र०-करना। तागपाट-सा पुं० [हिं० तागा+पाट (= रेशम)] एक प्रकार फा ताकीद कामिल-सका बी० [भ० ताकीद+ फामिष ]. पूर्ण चेता- गहना। वनी। सावधानी। उ०-जरा इसकी ताकीधकामिल रहे विशेप-यह रेशम के तागे में सोने के तीन हासे या जतर डाल- कि कहीं वह बूढ़ा चखा मौल्वी न घुस पाए ।-प्रेमपन, फर बनाया जाता है । यह विवाह मे काम प्राता है। मा०२, पृ०८८। मुहा०--तागपाट डालना=विवाह की रीति के अनुसार गणेश