पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४०४

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ताजोस्त २०५० ताडकेय ताजीस्त-अव्य० [फा० ताजीस्त] जीवन भर । माजीवन । प्राजन्म । गोदावरी मादि नदियो के किनारे कहीं कहीं तालवनों की उ.-ताजीस्त सनारवा हीत इस फातिल अपने ।-कबीर विलक्षण पोमा है। इस वृक्ष का प्रत्येक भाग किसी न किसी म., पृ० ४६८ । काम में प्राता है। पत्तों से पसे बनते है मोर छप्पर छाए जाते हैं। ताड़ की खड़ी लकड़ी मकानों में लगती है। ताजुवा-सधा पुं० [अ० तवज्जुब ] दे० 'तपज्जुव' । सफड़ी खोखली करके एक प्रकार की छोटी सी नाव मी ताज्जुब-सक्ष पु० [म. तप्रज्जुब ] दे॰ 'तप्रज्जुब' । बनाते हैं। ठठल के रेशे चटाईमौर जाल बनाने के काम में ताटक-सम्रा पुं० [सं० ताट]१ फान मे पहमने फा एक गहना। पाते हैं। कई प्रकार के ऐसे Bा होते हैं जिनकी लकड़ी बहत करनफूल । तरकी। 30--चलि चलि जात निफ्ट सपननि मजबूत होती है। सिहल के जफना नामक नगर से तार को के उलटि पलटि ताटंक फंदाठे |-सतवाणी०, पृ. ५५ । २ लकडी दूर दूर भेजी जाती थी। प्राचीन काल में यक्षिण के छप्पय के २४वें भेद का नाम । ३ एक छद जिस प्रत्येक देशों में तायपथ पर मप लिये बाते पे। ताद का रस चरण मे १६ मौर १४ के विराम से ३० मात्राएं हाती है प्रोपध के काम में भी पाता है। तारी की पुटिस फोड़े और अत मे मगण होता है। किसी किसी के पत में एक या घाव के लिये प्रत्यत उपकारी है। ताड़ी का सिरका गुरु काही नियम रखा है। लावनी प्राय इसी छद मे भी पड़ता है। वैवक में ताड़ का रस कफ, पित्त, दाह होती है। मोर शोथ को दूर करनेवाला और कफ, वात, कृमि, ताटका-सा घौ. [सं०] दे० 'तारका' (को०] । कुए पौर रक्तपित्त नायक माना जाता है। तार ऊंचाई ताटस्थ-सचा पुं० [सं० ताटस्थ्य ] १ समीपता। निकटता । २ के लिये प्रसिद्ध है। कोई फोई पेड़ तीस, चालीस हाय तक तटस्थता । उदासीनता। निरपेक्षता [को०] | ऊँचे होते है, पर घेरा किसी का ६-७ पित्ते से अधिक नहीं ताड़क-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० ताउङ्क] कान का एक गहना । तरकी। होता। पर्या०-तालद्रुम । पत्री। दीर्घस्कध। ध्वजम । तसराज । करनफूल । विशेष-पहले यह गहना ताड के पत्तों का ही बनता था। अब मधुरस । मदाढ्य । दीपादप । चिरायु । तरुराज । दीघपत्र । मी तरकी ताड के पत्ते ही की बनती है। गुच्यपत्र प्रासवद् । लेख्यपत्र । महोन्नत । २ तादन। प्रद्वार। ३ शन्द । अनि। धमाका। ४ घास, ताड़-संज्ञा पुं० [सं० साड] १ शाखारहित एक पड़ा पेड़ जो खर्भ मनाज के उठनादि की घंटिया जो मुद्रा में पा जाय । के रूप में ऊपर की मोर बढ़ता चला जाता है और केवल जुट्टी। पृता। ५ हाथ का एक गहना । ६. मूर्ति-निर्माण- सिरे पर पत्ते धारण करता है। विद्या में मूर्ति के कपरी भाग का नाम । ७ पहाड । पर्वत विशेप-ये पत्ते चिपटे मजबूत इठलो भे, जो पारो मोर निकले (को०)। रहते हैं, फैले हुए पर की तरह लगे रहते हैं पोर बहुत ही तादक-वि० [सं० तासक ताडना या पाघात करनेवाला [को०] 1 कसे होते है। इसकी लकड़ी की भीतरी बनावट सुत के ठोस वाडक'-सजवधिका बल्लाद लच्छों के रूप को होती है। कपर गिरे हुए पत्तों के डंठलोई ताड़का-सदा श्री० [सं० ताडका ] एक राक्षसी जिसे विश्वामित्र की मुल रह जाते हैं जिससे छाल खुरदुरी दिखाई पड़ती है। चैत माज्ञा से श्री रामचन्द्र ने मारा था। के महीने में इसमें फूल लगते हैं और वैशाख में फल, जो भापो विशेष--सकी उत्पत्ति के सबंध में कथा है कि यह सुरेतु नामक मे खूब पक जाते हैं। फलो के भीतर एक प्रकार की गिरी और रेशेदार गूदा होता है जो खाने के योग्य होता है । फूलो एक वीर यक्षा फी फन्या धी। सुकेतु ने अपनी तपश्या से ब्रह्मा को प्रमन्न करके इस बलतती कन्या को पाया था जिसे हजार के कच्चे अकुरों को पालने से बहुत सा रस निकलता है जिसे ताही कहते हैं मोर बो धूप लगने पर नशीला हो जाता है। हाथियों का बह था। यह सुद को व्याही थी। जब अगस्त्य ऋपि ने किसी बात पर युद्ध होकर सुद को मार डाला, साड़ी का व्यवहार नीच श्रेणी के लोग मद्य के स्थान पर करते हैं। बिना धूप लगा रस मीठा होता है जिसे नीरा तब यह अपने पुत्र मारीच को लेकर भगस्त्य ऋषि को खाने दौड़ी। ऋषि फैशाप से माता पौर पूत्र दोनो घोर राक्षस कहते हैं। महात्मा गांधी ने नीरा का प्रयोय उचित बताया था। नीरा तथा ताड़ी दोनों में विटामिन यो प्रचुर मात्रा में हो गए। उसी समय से ये अगस्त्य जी के तपोवन का नाच होता है। बेरी बेरी रोग में दोनो मत्यंत लाभकारी होते हैं । करने परे और उसे इन्होने प्राणियों से शून्य फर दिया। ताम्र प्राय सब गरम देशों में होता है। भारतवर्ष, परय, यह सब व्यवस्था दशरथ से पहार विश्वामित्र रामचन्द्र जी को लाप मौर उनके हाय से तापका का वष कराया। बरमा, सिंहल, सुमात्रा, जावा मादि द्वीपर्पज तथा फारस की खाड़ी के तटस्थ प्रदेश में ताड़ के पेड़ बहुत पाए जाते हैं। ताड़काफल-सश.j० [सं० ताडका] बी एलायची। ताह की अनेक जातियां होती है। तमिल भाषा मे ताल- ताड़कायन-सज्ञा पुं० [सं० तारसायन ] विश्वामित्र के एक पुत्र विलास नामक एक ग्रंथ है जिसमे ७०१ प्रकार फे तार का नाम।। गिनाए गए हैं और प्रत्येक का अलग अलग गुण बतलाया ताड़कारि-पाश पुं० [म० ताकारि (arwका के शत्रु) श्री रामचद्र । गया है। दक्षिण में ताड़ के पेष्ट बहुत अधिक होते हैं। ताड़केय-मञ्ज्ञा पुं० [सं० ताडकेय] (ताउका का पुत्र) मारोध ।