पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४०५

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साध २०५१ सावा ताड़घ---संथा पुं० [सं० वाप] १ वेत या कोड़ा मारनेवाला। २ विशेष-ताड़ के सिरे पर फूलते हुए इठलो या प्रकुरों को छु। पल्लाद। मावि से काट देते हैं मोर पास ही मिट्टी का बरतन बाँध देते ताड़घात-सचा पुं० [सं० तारघात] हथोडे पादि से पीटकर फाम हैं। दूसरे दिन सबेरे जब धरतन रस से भर जाता है, तप उसे करनेवाला। लोहार । खाली कर रस ले लेते हैं। धान-सभा पुं० [सं० तादन] १ मार। प्रहार। माघात । २. ताड़ी--मझा श्री० [मै० तार] संतो की ताली । सतों फी ध्यानावस्था। ध्यान। समाधि। उ०-ध्यान रूप होय मरुण पाए । साच डॉट पट । घुरकी। ३. शामन । दह। ४. मगो के वणों को चदन से लिखकर प्रत्येक मंत्र को जल से वायुवीप पढ़कर नाम ताडी चित लाए।-प्राण, पृ० १३१ । मारने का विधान ! ५ गुरगुन । ६. खह ग्रहण (को०)। ताडुल-वि० [सं०] मारने पीटनेवाला ।भा पाठ करनेवाला (फो। साड़ना-या बी० [सं० ताडन १ प्रहार । मार । उ०-देवताड़ना ताडू-वि० [हि० ताड़ना ] ताडनेवाला। भांपने या अनुमान __चित्त को तुवझ सर चाढ़े मास हो !--कबीर सा०, पृ० ८६ । करनेवाला। क्रि० प्र०-करना । —होना । वाड्य-वि० [सं०] १ ताड़ने के योग्य । २. डोटचे हपटने लायक । ३. दंड्य । दंड व योग्य। २ उत्पीड़न । कष्ट। तादना-क्रि० स० १.मारना । पीटना । दंर देना। २ डौटना। वाध्यमान'---वि० [सं०] १ बो पीटा पाता हो। जिसपर प्रहार पड़ता हो । २ जो डांटा पाठा हो। उपटना । मासित करना । ताध्यमान-सचा पु० ढोल । ढक्का । ताड़ना-क्रि० स० [सं० तर्कण (= सोचना)] किसी ऐसी पात वाढ को जान सेना जो जान बूझकर प्रकट न की गई हो या छिपाई वा –वि० [सं० स्तब्ध, प्रा० थड्ड, मरा० तडा, थडा, हिं. गई हो । लक्षण मे समझ लेना। मदान से मालूम कर लेना। ठंढा ] टढा । शीतल। उ०-जिण दीहे पावस झरइ भोपना। लख लेना । बैंस,-मैं पहले ही ताह गया कि तुम पाषा, साढो वाय । तिण रिति मेल्हे मालविण प्री परदेस म इसी निये भाए हो। 30--लिहा जौहरी ताद फिरा है जाय ।- ढोला०, १० २१६ । की गोf fear को प्राली। तागना -क्रि० स० [हि० जानना]१ खींचना । २ हराना। पलटु०, भा॰, पृ० ५६ । T-याजिद वाण विधाण याण तक रहैं अचमा ।-रघु० रू., पृ०४७। संयो० कि०---जाना |-लेना । तात-सहा पुं० [.J१ पिता । वाप। २ पूज्य व्यक्ति । गुरु । २ मार पीटकर भगाना । हटा देना होकना। ३ प्यार का एक शब्द या सवोधन वो भाई, वधु, इष्ट मित्र, संयो० किल-देना। विशेषत. अपने से छोटे पे सिये व्यवहृत होता है। उ०- ताइनी-सा खौ० [सं० ताडनी] पादुक । कोडा [ो। तात जनक तनया यह सोई। धनुष जम्य जेहि कारन होई। दादनीय-वि० [सं० ताडनीय] दंड देने योग्य । दहनीय । —तुलसी (पाय)। ४ वह व्यक्ति जिससे प्रति दया का ताइपत्र-सधा पुं० [सं० ताडपत्र ] ताडक 1 ताटक। उदय हो (फो०)। ताड़पत्र--सभा ० [सं० तासान] दे० 'तालपन' । तात -व० [.तम, प्रा० तत्त] १ तपा हुआ । गरम।२ ताइवाज -वि० [हिं० नाना + मा० पाज़ ] ताडनेवामा । भांपने- दखी। चिक्ति। उ०-मालवणी म्हे चालिस्यो, म फरि धाला। समझ जानेवाला हमारा ताङ । दौसा, दु. २७८ । तातगु'–सझा पुं० [सं०] चाचा। ताड़ि-सशास्त्रा. [१० ताडि दे० 'तादी' [को०)। तातगु-वि०१ पिता के लिये स्वीकार्य । २ पैतृक [को०)। ताडिका--सा स्त्री० [हिं० ] तारा। तारिका । १०-परे जजराय भर राम मिल्स । मनो नौ ग्रहं ताहिका होड पिल्लं । वाततुल्य-सा ५० । ° ] चा दाततुल्य-सहा पुं० [सं०] चाचा या प्रत्यत पूज्य व्यक्ति को। -पृ० ग०, १२१३१६ तावन-सभा पुं० [स] संजन पक्षी । डिहरिप। ताड़ित-वि० [सं० ताडित] १. मारा हुया । जिसपर प्रहार पड़ा हो। व तावनी —सपा पुं० [हिं० तात] दे० 'तांत'। उ०-ज्ञान की २ जो टोटा गया हो। जिसने घुड़की साई हो । ३ वडित । फाछनी तान में तातनी, उत्त थे सबद की कथा वानी।- शासित । ४ मारकर भगाया हमा। निकाला हमा। पलटू०, मा० २, पु० ३३ । हाँका हुमा। तातरी-सद्या सी० [ देश० ] एक प्रकार का पेड़। ताडी-सहा सो० [म. ताडी] १ एक प्रकार का छोटा साद । २ वातक्ष'----सप्टा धुं० [सं०] १ पितृ तुल्य सबधी । २ रोग। ३. पोहे एक माभूपरा। का फांटा। ४ पाक । पक्वता । ५ उष्णता । गर्मी (को०)। ताड़ी-सपा श्री० [हिं० ताड+ ई (प्रत्य॰)] ताड़ के फुलते हए तात -वि० १ त । गरम । २ पैतृक (को०)। डठनों से निकला हुमा नशीला रस जिसका व्यवहार मद्य के वाता-वि० [सं० तप्त, प्रा० तत ] [वि०बी० ताठी १ तपा रूप में होता है। । हुमा। गरम । घण। उ.-(क) बहूँ लगि आय नेह