पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४०६

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तावाई २०५२ सान अरु नाते । पिय विनु सियहि तरनिहुँ से ताते ।-मानस, २। वस्तु के बीच दूसरी वस्तु की स्पिति । २. एक व्यंजनात्मक ६५ । (ख)मीठे पति कोमल हैं नीके। साते तुरत चभोरे घी उपाधि जिसमे जिस वस्तु का कथन होता है, उस वस्तु में के।-सुर०, १०१३९१ । २. दुरा। दुखवायो । कष्टदायक । रहनेवाली वस्तु का ग्रहण होता है। जैसे, 'सारा घर गया ताताई सच्चा श्री. [अनु० ] १ नृत्य मे एक प्रकार का बोल । है' से अभिप्राय है कि घर के सब लोग गए हैं। २. नापने में पैर के गिरने मादि का अनुकरण पाब्द । जैसे, तार्थे -सर्व० [हिं० ता+थे (प्रत्य०)] इससे। इस कारण से। ताताई ताताई नाचना । उ.-घरे रूप जेते तिते सर्व जानौं। लगे वार कहते न वायें तावार-सक्षा पुं० [फा०] मध्य एशिया का एक देश । वखानों।-पू० राम,२१६५। विशेष-हिंदुस्तान मोर फारस के उत्तर कैस्पियन सागर से ताथई-सबा श्री. मनु०] दे० 'ताताई। लेकर चीन, उत्तर प्रात तक वातार देष कहलाता है। तादर्थिक-वि०सं०] उसमयं से संवस [फो। हिमालय के उत्तर महाख, यारकद, खुतन, बुखारा, तिब्बत तादर्य-सक्षा०सं०] उद्देश्य या सक्ष्य की एकताका २ मयं पादि के निवासी तातारी कहलाते हैं। साधारणतः समस्त को समानता । ३ उद्देश्य (को०] । तुक या मोगल तातरी कहलाते हैं। तादात्म्य-सज्ञा पुं० [सं०] एक वस्तु का मिलकर दूसरी वस्तु म तावारी-वि० [फा. ] तातार देश संवधी। हावार देश हा। में हो जाना । सत्स्वरूपता । मभेद संबंध । सातारी-संथा • वातार देश का निवासी । यो०-सावारम्यानुभूति = तादात्म्य की पनुभूति। तत्स्वरूप की वाति'-मा'[सं०] पुत्र । घड़का । मनुभूति । 30-प्रकृति से तादात्म्यानुभूति को सरस कामना की ताति -वि० [सं० ] गरम । उ.-ठाति वार नागे वहीं, पाठो कई पक्तियों में प्रतिबिंबित हुई है।-सा० समीक्षा, पृ. २६.1 पहर मनद । -सतवारणी०, पृ० १३५। तादात्विक (राजा)-सका पुं० [सं०] कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुसार। वाती'-वि० [सं० तप्त ] गरम । । 10-ताती श्वासन वह राजा जिसका खजाना खाक्षी रहता हो। जितना धन विनास्यो रूप होठन।-शकुंतला, पृ० १०६॥ राजकर पादि मे मिले, उसको खरं कर डालनेवाला। . साप्तोर-कि० वि०१] जस्वी । -तई मुझे धौभाग्या जाती। विशेष-पाजकल के राज्य बहुधा इसी प्रकार के होते हैं। ये -रा० १०, पु. ३०३। प्रबंध में व्यय करने के लिये ही धन एकत्र करते हैं। वातील-संधा[.] पिन जिसमें काम काज बद रहे। तादाद-सा ली० [प.तपदाद] संख्या । गिनती। शुमार 1. छुट्टी का दिन । छुट्टी। ताक्ष-वि० [सं०] [वि० सी० ताक्षी] दे० 'ताडश' [को०] । कि०प्र०-भरना ।—होना। तादृश-वि० [सं०] [वि०पी० ताधी] उसके समान । वैसा । महा०-वातील मनाना-छुट्टी के दिन विधाम सेना या पामोद ताहसी-वि० [सं० ताशी ताय। वैसी ही। उ.--जो याहू प्रमोद करना। गांम मे एक वैष्णव तासी चर्चा करन पोर श्रीकृष्ण स्मरन तात्कालिक-वि० [सं०] सरकार का तुरत का । उसी समय छा। करन पावत है । दो सौ पोवन०, मा. १, पृ. २१५॥ तात्पर्य सहा पुं० [सं०] १. वह भाव को फिसी वाक्य को कहकर ताधा-सा नी• [देश०] दे० 'तायाई'। उ.-मृकुटी धनुष नैन कहनेवाला प्रकट करना चाहता हो। अयं । पाशय । मतलब। सर साधे वदन विकास प्रगापा। चचल परल पारु मयप्पोकनि अभिप्राय । काम नपावति ताधा !-सुर (चन्द०)। बिशेष-कभी कभी शम्वार्थ से तात्पर्य भिन्न होता है। वैसे, तान-मुखा स्त्री० [सं०] १ तानने का भाव या किया। खीच । 'कापी गगा पर वाक्य का शब्दार्थ यह होगा कि पाथी फैलाव । विस्तार । जैसे, भौमों को तान | Fo-जल में पंगा के जय के ऊपर बसी है, पर कहनेवाले का तात्पर्य यह मिलि के नम यवनी लौ तान तनावति ।-भारतेंदु म, है कि गंगा किनारे पसी है। मा० पु. ४५५ । २तस्परता यो-बीचतान । तात्पर्यवृत्ति-समा बी० [सं० मात्पर्य + वृत्ति ] वाश्य पिन्न पर्यो २ गा पा पर पंप। मनोम पिनीम गति से गमन । के वाच्यार्य को पत्र में समन्धित करनेवाली वृत्ति । १०- मुज्छना भाविधारा राग पा स्वर का विस्तार । मनेक विभाग पहले उन्हों। मास्पयंति को लिया है और बताया है कि फरले सुर का वीषना। लय का विस्तार घालाप । उ०-/ नैयापिको भी तात्पर्य बत्ति पडत समप से प्रसिद्ध थी।- सुटे तान देवा दीक्षा । ठाढ़े भगत तह पावन लीन्हा ।- पाचार्य, पृ. १३१। कबीर मा, प०४६६ । तात्पर्यार्थ-मक्षा पुं० [सं०] किपी वाक्य पिसनेवाने पथं थे विशेष-सपीत दामोदर मतपेस्वरों प्रत्पन्न वान ४६ भिन्न प्रथं वो वक्ता या भिखक का होता है [को०] । । इन ४६ तानों से भी ३०० कुट तान निकले है। किसी सात्विक-वि० [सं० तारिवक] १.व मधी । २ तत्वज्ञान युक्त । किसी मत से कूट तानों की सश्या ५०४० भी मानी गई है। से, ताविक रस्टि।। यपार्ष। मुहा०-तान उड़ाना-गीत गाना । प्रलापना । सान सोड़ना- वात्स्स्य -सपुं० [सं०] १. किसी के बीच में रहने का भाव। एक लय को खींचकर झटके साथ समय पर विराम देता।