पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४०७

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धानकर्म २०५३ तानसेन किसी पर तान तोड़ना=किसी को लक्ष्य करके वेद मा पु.४। तानकर सोना-खुद हाथ पैर फैलाकर निश्चित क्रोधसूचक बात कहना । माक्षेप करना। बौछार छोड़ना। सोना । माराम से सोना। तान भरना, मारना, सेना = गाने में लय के साथ सुरों को ३.किसी परदे की सी वस्तु को ऊपर फैलाकर बांधना या सीचना । प्रलापना। तान की जान-साराप । खुलासा! ठहराना। छाजन की तरह ऊपर किसी प्रकार का परवा सोपात की एक बात। लगाना । वैसे, पदोवा तानना, चाँदनी तानना, तबू तानना। ३ ज्ञान का विषय । ऐया पदार्थ जिसका योप इंद्रियों पावि को संयो०क्रि०-देना । लेना। हो। ४ बल का तान । -(गरिए)। ५ भाटे का हलहा। ४ डोरी, रस्सी पादि को एक भाषार से दूसरे माधार तक इस सहर । तरग। -(लप.)। लोहे की छड़ जिसे पलंग या प्रकार खीचकर साधना कि वह ऊपर भघर में एक सीधी हौदे में मजबूती के लिये लगाते हैं। (७) एक प्रकार का पेट । लकोर के रूप में ठहरी रहे। एक ऊंचे स्थान से दूसरे ऊँचे (८) सूत्र। सूत। धागा (को०)। (६) एकरस स्वर । एफ स्थान तक ले जाकर बांधना । जैसे,-(क) यहाँ से कहाँ तक ही प्रकार का स्वर (को०)। एक होरी तान दो तो कपडा फैलाने का सुबीत हो बाय । तानकर्म-सचा पुं० [सं० तानकर्मन] । गाने के पहले किया जानेवाला (ख) जुलाहे का सूत जानना। पालाप । २. मूल स्वर को प्रहण करने के लिये स्वर संयो० कि०-देना। साधना [को०)। ५. मारने के लिये हाय या कोई हथियार उठाना प्रहार के लिये तानटप्पा-संक्षा पुं० [हिं. तान +2प्पा] उंगीत । गाना बजाना। पल सठाना । जैसे, तमाचा तानना, डडा तानना। ६ किसी उ०--और यहा होता क्या है? वही समस्यापूति, वही या को हानि पहुंचाने या दद देने के अभिप्राय से कोई बात तो खरखड महमद और जानटप्पा ।-कुकूम (मु०), पृ.२॥ उपस्थित कर देना। किसी के खिलाफ कोई चिट्ठी पत्री या दरखास्त मादि भेजना । जैसे,—एक बरसास्त तान देंगे, रह तानतरंग- श्री० [सं० तानतरङ्ग] प्रलापबारी । लय की लहर । जानोगे। तानना-क्रि० स० [सं० तान( = विस्तार)] १. किसी वस्तु को उसकी संयो०क्रि०-देना। पूरी लवाई या चौड़ाई तक बढ़ाकर ले जाना। फैसाने के ७ कैदखाने भेजना। से,हाकिम ने उसे दो बरस को तान लिये जोर से स्वीपना। किसी वस्तु को जहाँको तही रखकर दिया। ८ कपर उठाना चे ले जाना। उसके किसी छोर, कोने या पंशको जहाँ तक हो सके, बनपूर्वक मागे बढ़ाना । जैसे, रस्सी तानना। 30--- संयो० क्रि०-देना। इक दिन दोपदि नग्न होत है, चीर दुमासन तान Irr तानपूरा-सका पुं० [सं० तान+हिपूरा ] सितार के भाकारका सतवाणी. पृ०६७ । एक पाजा जिसे गवैए काम के पास लगाकर गाने के समय खेरते विशेप-तानना' और 'खोचना' में यह मतर है कि जानने में पाते हैं या उनके पावं में बैठकर कोई छेस्ता जाता है। वस्तु का स्यान नहीं बदलता । जैसे, खूटे में देषी हुई रस्सी विशेष-यह गवैयों को सुर वाषने में पड़ा सहारा देता है। तानना। पर बोपना' किसी वस्तु को इस प्रकार बढ़ाने की प्रति सुर में जहाँ विराम पडता है, वही यह उसे पूरा करता भी कहते हैं जिसमें वह अपना स्थान बदलती है। जैसे, गाड़ी है। इसमें पार तार होते हैं दो लोहे के और वो पीतल के। खीचना, पवा खीचना। तानमाज-मक्ष [हिं० वान+बाष ] संगीताचार्य। उ.-गंग सयोकि०-देना ।- देना। ते न गुनी तानसेन तेन तानमाष, मान ते न राणा मौन दाता वीरबर ते।-पकपरी०, पृ. ३५॥ मुहा -- तानकर वरपूर्वक। जोर से। जैसे, तानकर तमाचा तानवानर-सपा पु० [हि.] दे० 'वानाबाना'। उ.-पोमा मारना । उ• सप्तगुरु मारा तानकर, सन्द सुरंगी बान।- वानवान नहिं जाने फाट विनै दस ठाई हो ।-कबीर (शब्द०) कवीर सा०. पु. ८. सानव-सपा पुं० [सं०] १ तनुता। कृशता । २ स्वल्पता । लघुता। २ किसी सिमटी या लिपटो हुई वस्तु को खोपकर फैलाना। वा छोटाई [को०। बनपूर्वक विस्तीर्ण करना। जोर से बढ़ाकर पसारना। जैसे, पास तानना, छाता तानना, पद्दर तानकर सोना, कपडे को तानसेन-सा पुं० [?] मकबर बादशाह के समय का एक प्रसिद्ध गवैया जिसके बोड़ का पाजतक कोई नही हमा। तानकर झोल मिटाना। विशेष-मम्बुलफजल ने लिखा है कि इधर हजार क्यों बीच विशेष--'सामना' पोर 'फैलाना' में यह प्रवर है कि मानना' ऐसा गायक भारतवर्ष मे नही हुमा। यह जाति का ब्राह्मण क्रिया में कुछ एस सगाने या जोर से सोचने का भाव है। या। कहठे पहले इसका नाम त्रिलोचन मिष वा। सयो क्रि०-देना-लेना। इसे सगीत से बहुत प्रेम या, पर पाना इसे नहीं मावा मुहा०-तानकर सूतना = दे० 'तानकर सोना'। उ.--भेव वह पा। जब वृदावन के प्रसिद्ध स्वामी हरिदास जो कि भेद खो देवे, जान पाया न तानकर पोखे, यहाँ गया और उनका शिष्य हुमा, तब यह पगीत