पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४१५

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ताय वाम्रफलक २०६१ ताम्रफलक-संज्ञा पुं० [स०] ताम्रपत्र । ताव का पत्तर [को०] । ताम्रपत्ती-संक्षा खी० [सं०] १ मजीठ। २ एक लता जो चित्रकूट प्रदेश में होती है। साम्रमुख-वि० [सं० ताम्र + मुख] जिसका मुख तावे के रंग का हो ताम्रमुख-सचा पुं० यूरोपीय व्यक्ति। ताम्रवीज-सज्ञा पुं० [सं०] कुलथी। साम्रचंत-सका पुं० [सं० ताम्रवन्त ] कुलथी। ताम्रमला-सधा सी० [स०] १ षवासा। धमासा । २. लज्जालु । ताम्रवृता-सा खी [सं० ताम्रवृत्ता] कुलथी। छुईमुई । ३. किवाच । कोच । कपिकच्छु । वाम्रवक्ष-सचा पुं० [सं०] १ कुलथी। २. लाल पदन का पेठ । ताम्रमृग-सा पुं० [सं०] एक प्रकार का लाल हिरन [को० ताम्रशासन-सका पु०सं० ताम्र+थामन ] ताम्रपत्र । दानपत्र । वाम्रय-सया पुं० [सं०] लाली । ललाई [को॰] । उ.-राजामों तथा सामतों की तरफ से मदिर, मठ, ब्राह्मण साम्रयुग-सबा पुं० [स० ताम्र+युग] ऐतिहासिक विकासक्रम में वह साधु मादि को दान में दिए हए गांव, खेत, का' आदि की युग जव मनुष्य ताँव की बनी वस्तुमों का व्यवहार करता था। सनदें तौबे पर प्राचीन काल से ही खुदवाकर की जाती थीं ताम्रयोग-सका पु०सै० तान+योग ] पफ प्रकार की रासायनिक पौर प्रवतफ दी जाती हैं जिनको 'दानपत्र', ताम्रपत्र', दवा [को०] । 'ताम्रयासद' या 'पासनपत्र' कहते हैं। भा० प्रा० लि., ताम्रलिप्त-सहा पुं० [सं० मेदिनीपुर (बंगाल) जिलेस तमलुक नामफ पृ० १५२। स्थान का प्राचीन नाम । ताम्रशिखी--सधा पुं० [सं० ताम्रशिखिन् ] कुक्कुट । मुरगा। विशेष-पूर्व काल में यह व्यापार का प्रधान स्थल था। बृहत्कथा ताम्रसार-सबा पुं० [सं०] लाल चदन का वृक्ष । को देखने से विदित होता है कि यहाँ से सिंहल, सुमात्रा, पावा ताम्रसारक-सया पुं० [सं०] १ लाल घदन का पेड़ । २ लाल खैर। चीन इत्यादि देशो को घोर घरापर व्यापारियों के बहाव ताना-सहा स्त्री॰ [सं०] १ सिंहलो पीपल ! २ दक्ष प्रजापति को रवाना होते रहते थे। महाभारत में ताम्रलिप्स को कलिंग कन्या जो कश्यप ऋषि की पत्नी थी। इससे ये ५ कन्याप लगा हुमा समुद्र तटस्य एक देश लिखा है। पाली प्रथ महा- उत्पन्न हुई थी-(१) काँची, (२) भासी, (३) सेनी, (४) वश से पता लगता है कि ईसा से ३६० वर्ष पूर्व ताम्रलिप्त धृतराष्ट्री प्रौर (५) शुको । ( रामायण )। नगर भारतवर्ष के प्रसिद्ध वदरगाहों में से पा! यही जहाज ताम्राक्ष-सबा पुं० [सं०] १ कोयल । २ कोमा [को०] । पर चढफर सिंहल के राजा ने प्रसिद्ध बोषिद्रुम को लेकर ताम्राक्ष-वि० साल प्रौखौदाला [को०)। स्वदेश की घोर प्रस्थान किया था और महाराज प्रपोक ने समुद्रतट पर उड़े होफर उसके लिये मांसू बहाए थे। ईसा ताम्राभ'-संज्ञा पुं० [सं०] लाल चंदन। फी पांचवी शताब्दी मे चीनी यात्री फाहियान बौद्ध ग्रंथो की ताम्राभ-वि० तौवे का मामावाला कोना नकल मादि खेफर ताम्रलिप्त ही से पहाज पर बैठ सिहन ताम्राधे-सा पुं० [सं०] कसा। गया था। ताम्राश्मा-सा पुं० [सं० ताम्राश्मन् ] पद्मराग मणि [को॰] । रामायण में ताम्रलिस का कोई उल्लेख नहीं है, पर महामारत ताम्रिक'-सपा पुं० [सं०] [ी ताम्रिकी ] ताम्रकार [को०। में कई स्थानो पर है। वहां के निवासी ताम्रलिपक भारतयुद्ध में दुर्योधन की ओर से बड़े थे। पर उनकी गिनती म्लेच्छ ताम्रिक वि०वि० सी० तानिकी] तब फा। ताम्रनिर्मित | ताये जातियों के साथ हुई है। यथा-शका किराता रक्षा धर्वरा से बना हुमा [को०] ! ताम्रलिप्तका । अन्ये च बहवो म्लेच्छा विविधायुधपाणय.। ताम्रिका-सपा स्त्री० [सं०] गुजा । घुघची। (द्रोणपर्व)। ताम्रिमा-सज्ञा स्त्री० [सं० तानिमन् ] लालिमा । ललाई [को। ताम्रलेख-सक्षा पुं० [सं०] दे० 'ताम्रपत्र' [को०] । ताम्री-सचा जी. [सं०] १ एक प्रकार का बाजा।२ लषड़ी ताम्रवर्ण-वि० [सं०] १ वाम रग का । २. लाल । का कटोरा। जलघड़ी का पात्र [को०। ताम्रवर्णर-सपा पु०१ वैद्यक अनुसार मनुष्य के शरीर पर की ताम्रश्वर–समा पुं० [१०] ताम्रमस्म तवे की राख । चौथी त्वचा का नाम । २. पुराण के अनुसार भारतवर्ष के तानोपजीवी-सा पुं० [सं० ताम्रोपजीविन] ताम्रकार [को०। मतर्गत एक वीपी सिंहल द्वीप सीलोन । तायg+-मव्य [हि.] तफ। विशेष प्राचीन काल में सिंहल द्वीप इसी नाम में प्रसिद्ध था। तायg+-सकर पु० [सं० ताप, हि. ताव] १ ताप । गरमी । २. मेगास्थनीज ने इसी द्वीप का नाम तपोवेन लिखा है। सन ! ३ धूप। विशेष-दे० 'सिंहल'। सायg:-सर्व० [हिं० ] ३० ताहि' । उ०--पहे सम री वसुरिया, ताम्रपर्ण-सहा खौ[सं०] गुड़हर का पेड । महब । पोपुष्प। वे कह दोनो ताय ।-व्रज००, पृ० ५२ ।