पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

शायदाद २०६२ सायदाद - श्री [हि• ] दे० 'तादाद'। वायन@-सा ० [फा. ताजियानह] धाबुक । कोड़ा। 30- तीख तुखार चार मौ बोके । तरपहिं तहि तायन बिनु हो। २. बुद्धि ।-जायसी ५० (गुप्त), पृ.१५.1 सायन-संगापु० [01१ अग्रगता। भागे बढ़नेवाला व्यक्ति। विकास को। वायनाgt-क्रि० स० [हिं० ताव ] तपाना। गरम करना। उ.-.-पायन बजति उतायल तायन कीन । पुनि करि कायल घायल हायल कीन ।-सेवक (शब्द०)। वायफा-सहा पु०बी० [म. तायफह.1१. नापने गानेवाली वेश्याओं पौर समाजियो की मंडसी । २. वेश्या । रंडी। उ०-वन मन मिलयो वायफे, छाँको हिलियो छैल-बाँकी २०, भा० २, पृष्ठ ३1 तायब-वि० [म. तोवह] तौवा करनेवाला । पश्चात्ताप करने- वाला। 30---गुनह से हो सब भादमी तायव ।-कचोर ०, पृ० १३३ । सायन-वि० [हिं० ताव ] तेज। तावदार । उ०-तामल तुरंगम उहत जनु वाम !-पद्माकर प्र. पृ. २५ । ताया-सपा पुं० [सं० तात] [ी. ताई ] चाप का बड़ा भाई। वठा चाचा ताया-वि० [हिं० ताना] १ गरमाया हुमा । २ पिघलाया हुमा । जैसे, ताया घी। तार-सबा ० [सं०] रूपा। चादी। २ (सोना, पादी तावा, लोहा इत्यादि), धातुपो का सूत । तपी पातु को पीट पोर सोचकर बनाया हमा तागा। रस्सी या जागे के रूप में परिणत धातु । धासुततु । विशेष-धातु को पहले पीटकर गोल बत्ती के रूप में करते हैं। फिर उसे तपाकर जती बड़े छेद मे डालते मौर हसी से दूसरी ओर पकडकर जोर से खींचते हैं। खीचने से धातु लकीर के रूप में बढ़ जाती है। फिर उस छेद में से सूत या बत्ती को निकालकर उससे मोर छोटे छेद मे डालकर खीचते पाते हैं जिससे वह वरावर महीन होता भौर बढ़ता जाता है। खीचने में धातु बहुत गरम हो जाती है। सोने, चांदी, मादि धातुपों का तार गोटे, पट्ट, कारचोबी मादि बनाने के काम माता है। सीसे मोर रांगे को छोड भोर प्राय सब घातुपो का तार खोंचा जा सकता है। जरी, कारचोवी मादि में चांदी ही का तार काम में लाया जाता है। तार को सुनहरी बनाने के लिये उसमें रत्ती दो रत्ती सोना मिला देते हैं। कि०प्र०-खोचना। यौ०-तारकश मुहा०-तार दवकना-गोटे के लिये तार को पीटकर चिपटा मौर चौड़ा करना। ३. धातु का वह तार या डोरी जिसके द्वारा विजसी की से एक स्थान से दूसरे स्थान पर समाचार भेजा जाता है। टेलिग्राफ। वैसे,--उन दोनों गाँवो के बीच तार लगा है। 10-तरित तार के वार मिल्यो सुभ समाचार यह।-भारतेंदु प्र., भा॰ २, पू० ८०० । कि० प्र०-लगना।-लगाना। यो०-तारपर। विशेष-वार द्वारा समाचार भेजने में बिजली पोर शक की शक्ति काम में लाई जाती है। इसके लिये पार वस्तुएं भावश्यक होती हैं-विजली उत्पन्न करनेवाला पण या घर, बिजली के प्रवाह का सचार करनेवाला तार, सवादको प्रवाह द्वारा भेजनेवाला यत्र और सवाद को ग्रहण करनेवाला यत्र । यह एक नियम है कि यदि किसी वार के घेरे में से बिजली का प्रवाह हो रहा हो और उसके भीतर एक पुरक हो, तो उस चुवक को हिलाने से बिजली के बल में कुछ परिवर्तन हो जाता है। चुवक के रहने से जिस दिशा को बिजली का प्रवाह होगा, उसे निकाल लेने पर प्रवाह उलटकर दूसरी विधा की पोर हो जायगा। प्रवाह के इस दिशापरिवर्तन का ज्ञान कपास की तरह के एफ यत्र द्वारा होता है जिसमें एक सुई लगी रहती है। यह सुई एक ऐसे तार की कुडली के भीतर रहती है जिसमे बाहर से भेजा हुमा विद्युत्प्रवाह सपरित होता है। सुई के इधर उधर होने से प्रवाह के दिक परिवर्तन का पता लगता है। भाजल चुवक को प्रावश्यकता नहीं पड़ती। जिस तार में से बिजली का प्रवाह जाता है, उसके बगल में दुसरा तार लगा होता है जिसे विद्यद्धट से मिला देने से पोड़ी देर के लिये प्रवाह की दिशा बदल जाती है। पय समाचार किस प्रकार एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाता है, स्थूल रूप से यह देखना चाहिए। भेजनेवाले वारघर में षो विद्युदुघटमासा होती है, उसके एक पोर का तार तो पृथ्वी के भीतर गड़ा रहता है और दूधरी मोर का पानेवाले स्थान की भोर या रहता है। उसमें एक कुंजी ऐसी होती है जिसके द्वारा जब चाहे तब सारी को जोड दें मोर जब चाहे तय मलग कर दें। इसी के साय उस तार का भी सवध रहता है जिसके द्वारा विजनी के प्रवाह की दिशा बदल जाती है। इस प्रकार चित्रली के प्रवाह की दिशा को कभी इघर कभी उघर फेरने की मुक्ति भेजनेवाले के हाथ में रहती है जिससे सपाद ग्रहण करनेवाले स्थान की सुई को वह जप जिधर चाहे, बटन पा कुजी दवाकर कर सकता है। एक बार मे सुई जिस कम से दाहिने या बाएं होगी, उसी के अनुसार पार का सकेत समझा जायगा। सुई के दाहिने घूमने को डाट (बिंदु) और बाएं घूमने को देश (रेखा) कहते हैं। इन्ही विदुमो और रेखामो के योग से मार्स नामक एक व्यक्ति ने मंगरेजी वर्णमाला के सब अक्षरों के सकेत ना लिए हैं। जैसे,-- A के लिये - Bके लिये--.. D ले लिये -.- इत्यादि। तार के संवाद ग्रहण करने की दो प्रणालियो -एक दर्शन प्रणाली, दुसरी श्रवण प्रणाली। ऊपर लिखी रीति पहली