पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४१७

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वार २०६३ तारक प्रणाली में मंतर्गत है। पर अब अधिकतर एक खटके (Soun वर्णवृत्त । जैसे,-तह प्रान के नाय प्रसन्न बिलोकी। २०. der) का प्रयोग होता है जिसमे सुई लोहे के टुकड़ों पर तौल । उ.-तुलसी सुपहि ऐसो कहि न मावे को पन मारती है जिससे भिन्न भिन्न प्रकार के खट खट शब्द होते पौर कुंभर दोक प्रेम की तुला घों वारु।-तुलसी (शब्द॰) । हैं। पभ्यास हो जाने पर इन खट खट शब्दों से ही सब मक्षर २१. नदी का तट । तीर।। समझ लिए जाते हैं। विशेष-दिशावाचक शब्दो के साथ संयोग होने पर 'तीर' शब्द ४. ठार से माई हुई खबर । टेलिग्राफ के द्वारा पाया हुमा 'तार' बन जाता है। जैसे दक्षिणवार । समाचार । २२. मोती की शुभता या स्वच्छवा (को०)। २३ सुंदर या पड़ा क्रि० प्र०-माना। मोती (को०)। २४ रक्षा (को०)। २५. पारगमन | पार जाना ५. सुत । तागा। ततु ! सूत्र। (को०) । २६ चाँदी (को०)। २७. बीज का भार (विशेषतः कमल का)। यो०-तार तोड़। मुहा०-तार तार करना-किसी बुनी या बटी हई वस्तु को तार -सहा पुं० [सं० ताल] १. वाल । मजीरा उ०-काह पजिया सलग अलग करना । नोंचकर सून सूत अलग करना । के हाम मघोरी, काहू के बीन, काहू के मृवर्ग, कोक गहे उ.---तार तार कीन्ही फारि सारी जरतारी की।--दिनेश वार ।--हरिदास (शब्द०)। २. करताल नामक बाजा। (पन्द०)। तार तार होना = ऐसा फटना कि पज्जियाँ मलग तार --सया पुं० [सं० वलj तल । सतह । जैसे, करतार । १०- पलग हो जायें। बहुत ही फट जाना। ६. सुतही ( लश०)। सोकर मांगन को बलि पे करतारडू ने करतार पसारयो ।--- ७ बराबर चलता हमाम। अखक परपरा। सिलसिला। केशव (शब्द०)। जैसे,-दोपहर तक लोगो के माने जाने का तार लगा रहा। यो०-करतार हथेली। 10.-तार टनाचतता हुमा क्रम वंद,हो जाना। परंपरा तार -सहा पुं० [हिं० वा १ कान का एक गहना। ताटक। खरित हो जाना । लगातार होते हुए काम का बद हो जाना। तरोना । उ०-श्रवनन पहिरे उलटे तार 1-सूर (थन्द०)। दार बंधना = किसी काम का बराबर चला चलना। किसी तार -सक्षा पुं० [सं० ढाल, ताठ ] ताड़ नामक वृक्ष । 30-- बात का बराबर होते जाना। सिलसिला जारी होना। कीम्हेसि बनदर भी परि मुरी। कीन्हेसि तरिवर तार खप्तरी । जैसे,-सवेरे से जो उनके रोने का तार बघा, वह प्रव -जायसी (शब्द०)। तक न टूटा। तार पधिना- ( किसी बात को ) वरावर तार-वि० [सं०] १ जिसमें से किरने फूटी हो। प्रकाशयुक्त। करते जाना। सिलसिला जारी करना। वार बगाना- दे. प्रकाशित 1 स्पष्ट । २. निर्मल । स्वच्छ । ३. उच्च । उदात्त। 'सार वाँधना'। तार व तार=छिन्न भिन्न अस्त व्यस्त। जैसे, स्वर (को०)। ४ अति ऊँचा। उ०-जिम जिम मन वैसिलसिले । प्रमले किया दार चढती जाइ।-ढोला०, दु. १२। ५. ७ व्योत । सुबीता। व्यवस्था। पैसे, जहाँ चार पैसे का तार तेज। 30-माह वद्दि पंचमि दिवस चढ़ि चलिए तुर तार । होगा वही जायंगे, यहाँ क्यों भावेंगे। ---पृ० रा० २।२२५। ६. प्रच्छा। उत्तम । प्रिय (को॰) । मुहा०-तार बैठना या बंधना = व्योत होना। कार्यसिद्धि का ७ शुद्ध । स्वच्छ (को०)। सुबीता होना। तार लगना-दे० 'तार वैठना' । तार जमना - वार---पञ्चा० [हिं०] दे० 'तारा'। 30-पव्वल भो मारफत दे० 'तार बैठना। ८. ठीक माप । जैसे,—(क) अपने सार का एक जुत्ता ले लेना। हासिल न पावे। दोयम द्वार के दिल गुमराह होवे।- (ख ) यह कुरता म्हारै तार का नहीं है। ६ कार्यसिदि दक्खिनी०, पृ० ११४॥ का योग । युक्ति। ढब । जैसे,कोई ऐसा तार लगाभो कि तार -मप० [सं० तार (तीय, पतला)1 किचिन्मात्रा जरा हम भी तुम्हारे साप मा जाये। भी। उ.-मोगउ खारा छुन कर तू भाण में उर तार। यौ०-तारघाट। बाकी ग्र०, भा० १, पृ० ७५ । १०. प्रणव । मोकार। ११ राम की सेना का एक बदर जो तार-सका ए° पहद० 'ताल'। 30-बाजत पट सौं पटरी तारा का पिता था पौर वृहस्पति के प्रश से उत्पन्न या। १२ तारन ग्वारन गावत संग।-नंद० प्र०, पृ० ३८८ । पाद्ध मोती। १३ नक्षय। ताराउ०-रवि के उदय तार तारक-संज्ञा पुं० [सं०] १ नक्षत्रातारा। २.प्रोख भी छीना। चर की हर दुनों मह लोना । कबीर बी०, पृ० पुतली। ४.इंद्र का शत्रु एक असुर । इसने जब इद्र को बहत १३० । १४ साल्य के अनुसार गौण सिद्धि का एक भेद । सताया, तब नारायण ने नपुसक रूप धारण करके इसका गुरु से विधिपूर्वक वेदाध्ययन द्वारा प्राप्त सिद्धि । १५ शिव । नास किया । (गपुराण)। ५. एक असुर जिसे कार्तिकेय १६. विष्णु। १७ संगीत में एक सप्तक (सात स्वरों का ने मारा था। दे० 'तारकासुर'। - समूह ) जिसके स्वरों का उच्चारण फंठ से उठकर कपाल यो०-तारकजित, तारकरिए, तारकवरी, वारकसूदन- है प्राभ्यतर स्यानों तक होता है। इसे उच्च भी कहते कार्तिकेय । है। १८.पांख की पुतली । १६. पठारह पक्षरों का एक राम का षडक्षर मंत्र जिसे गुरु शिष्य के कान में कहता है और