पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४१८

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सारकजित २०६४ जिससे मनुष्य तर जाता है। 'पों रामाय नम' का मन।७ तारकारि--सा पुं० [सं०] कार्तिकेय को। मिलाव। भेलक। ८ वह जो पार उतारे। ६ कर्णधार। तारकासुर-सपा पुं० [सं०] एक प्रसुर का नाम जिसका पूरा वृत्तांत मल्लाह। १० भवसागर से पार करनेवाला । तारनेवाला। शिवपुराण में दिया हुपा है। To-नुप तारक हरि पद मजि साप घडाई पाइय। विशेष-यह मसुर तार का पुत्र पा। इसने जद एक हजार वर्ष भारतेंदु , भा० १, पृ० ६६७ । ११. एक वर्णवृत्त जिसके तक घोर तप किया और कुछ फल न हुमा, तब इसके मस्तक प्रत्येक चरण में पार सगण और एक गुरु होता है (115 115 से एक बहुत प्रचंड तेष निकला जिससे देवता लोग व्याकूल Sss)। १२. एक वर्ग का नाम, जो प्रत्येष्टि कराता होने लगे, यहाँ तक कि इंद्र सिंहासन पर से सिंचने लगे। है.--'महानाहारण'। उ०-यह फतहपुर का महानाहारा देवतापो की प्रार्थना पर ब्रह्मा तारक के समीप वर देने के (तारक का माचारज) था। सुदर० प्र०, मा० १, लिये उपस्थित हुए। तारकासुर ने ब्रह्मा से दो वर मांगे। पु०१५। १३ गरुड । उ०-प्रया जातियों लखमण गीता पहला तो यह कि 'मेरे समान संसार में कोई बलवान् न हो', मुनि विहगा तारक ससि माय !--रघु०, रू०, पु० २५५ । दूसरा यह कि 'पदि मैं मारा जाऊँ, तो उसी के हाथ से जो १४. कान (को०)। १५ महादेव (को०)। १६ हठयोग में शिव से उत्पन्न हो'। ये दोनो वर पाकर तारकासुर घोर तरने का उपाय (को०)। १७ एक उपनिषद् (को०)। १८ अन्याय करने लगा। इसपर सब देवता मिलकर ब्रह्मा के मुद्रण में तारे का चिह्न-* पास गए । ब्रह्मा ने कहा-'शिव के पुत्र के अतिरिक्त तारक वारकजित्--सक्षा ० [सं०] कार्तिकेय । को और कोई नहीं मार सकता। इस समय हिमालय पर तारक टोडी संशबी-[सं० तारक+हिटोड़ी] एक राग जिसमे पावंती शिव के लिये तप कर रही हैं। जाकर ऐसा उपाय ऋषभ भौर कोमल स्वर लगते हैं और पचम वजित होता रषो फि शिव के साथ उनका सयोग हो जाय। देवतामो की है। (सगीत रत्नाकर। प्रेरणा से कामदेव ने पाकर शिव के चित्त को चपत किया। मत में शिव के साथ पार्वती का विवाह हो गया । पर बहुत तारक तीर्थ-सज्ञा पुं० [सं०] गया तीयं, जहाँ पिडदान करने से दिनों तक शिव को पार्वती से कोई पुत्र नहीं हपा, तब पुरखे तर जासे हैं। देवताओं ने घबराकर अग्नि को शिव के पास भेजा। कपोत तारक ब्रह्म-संज्ञा पुं० [सं०] राम का षडक्षर मंत्री रामतारक के वेश में मग्नि को देख शिव ने कहा-'तुम्ही हमारे वीर्य मंत्र । 'मों रामाय नमः' यह मत्र। को धारण करो' पोर वीर्य को मरिन के ऊपर मल दिया। वार कमानी-सकली. [फा०मार+कमानी] धनुष । प्राकार उसी वीर्य से कातिय उत्पन्न हुए जिन्हें देवतामों ने अपना का एक मोजार। सेनापति बनाया । घोर युद्ध के उपरात कार्तिकेय के बाण से विशेष-इसमें डोरी के स्थान पर लोहे का तार लगा रहता वारकासुर मारा गया। है । इससे नगीने काटे जाते हैं। तारकिणी-वि० सी० [सं०] तारों से भरी । तारकापूर्ण। वारकश-सया पुं० [फा० तार + कश - (खीचनेवाला)] धातु का तारकिणी-सस बी० रात्रि । रात। तार खींचनेवाला। तारकिव-वि० [सं०] तारायुक्त । तारों से भरा हमा। जैसे, ताकित वारकशी-सक्षा श्री० [फा० तारकश + f. ई (प्रत्य॰)] तार पपन । खींचने का काम । तारकी-वि०० तारफिन बी. तारकिणी] तारफित । तारका'- बी० [सं०] १. नक्षत्र । तारा। उ०-तुम्हारे घर तारकूट-सपा पुं० [सं० तार (-पौदी)+कुट ( - नकली)] पांदी है ममर मर, दिवाकर, शधिवारफागण ।-प्रचना, पू. मोर पीतल पोग से पनी एक धातु । २. कनौनिका प्रख की पुतली। इद्रवारणी। ४. नाराष तारकेश्वर- सं० [सं०] शिव । २ एक शिवलिंग जो कलकत्ते । नामक छंद का नाम । ५ वालि की स्त्री तारा। उ०-- पास है। ३. एक रसौषष। सुग्रीव को तारका मिलाई बध्यो पालि भयमंत!--सूर विशेष---पारा, गधा, लोहा, वग, अभ्रक, प्रवासा, जवाखार, (शन्द०)। ६. उल्का (को०)। ७ वृहस्पति की पली का गोखरू बीज मौर ह इन सबको बराबर लेकर घिसने नाम (को०)। है और फिर पेठे पानी, पचमूल के काढ़े पौर गोल तारका -सा बी० [हिं०] दे० 'ताडका'! रस को भावना देकर प्रस्तुत पौषष की दो दो रती की तारकाक्ष-सक्षा पुं० [सं०] तारकासुर का राजस्का। गोलियां पना लेते हैं। इन गोलियों को शहद में मिलाकर विशेष-यह उन तीन भाइयों में से एक था जो ब्रह्माक वर से साते हैं। इस प्रोषध सेवन से बहमन रोग दूर होता है। तीन पुर (त्रिपुर) बसाकर रहते थे। तारकोल-सबा पु टार+कोस मलकतरा । कोसतार | विशेष-दे० त्रिपुर। तारक्षिति-सक्ष पु. [सं.] पश्चिम दिशा का एक देश जहाँ म्लेन्यों वारकामय-सका पुं० [सं०] शिव । महादेव । का निवास है। (वृहत्साहिता)। वारकायण-संवा ० [सं०] विश्वामित्र के एक पुत्र का नाम । तारख - पु. [सं० साक्ष्य ] पर। (दि०)।