पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४१९

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तारखी धारपतन तारखो-सक पुं० [सं० ताक्ष्यं घोडा। (हिं०) । सारसमिक-वि० [सं० तारतम्पिक ] परस्पर न्यूनाधिक्य क्रम का या वारग -सका ० [हिं०] दे० 'तारफ'-१०।उ.-मुतिपय का कमी वेशीवाया। क्रमबद्ध। पाया मारग। दादूराम मिल्या गुरु वारस |-- राम. धर्म, तारतम्य-सपा पुं० [सं०] [विवारतम्मिक] १. न्यूनाधिश्य । परस्पर पृ० २०८ । न्यूनाधिक्य का सबष। एक दूसरे से कमी वेशी का हिसाब । तारघर-संम्रा पु० [हिं० तार+घर] वह स्थान जहां से वार की २ उत्तरोत्तर न्यूनाषिक्य के अनुसार व्यवस्था। कमी वेशी खबर भेजी जाय। के हिसाब से तरदीप । ३. दो या कई वस्तुमो में परस्पर वारघाट- ० [हिं० तार+घात कार्यसिद्धि का योग। न्यूनाधिक्य मादि सबंध का विचार | गुण, परिमाण भावि का मतलव निकलने का सुवीता। व्यवस्था पायोजन । जैसे,- परस्पर मिलान । वहाँ कुछ मिलने का तारघाट होगा, तभी वह गया है। तारतम्यवोध-सना पु० [सं०] कई वस्तुभो में से एक का दूसरे से चढ़कर होने का विचार कई वस्तुओं मे से मले तुरे माधि वारचरबी-सज्ञा पुं॰ [देश॰] मोमचीना का पेड़। की पहचान । सापेक्ष सबध ज्ञान । विशेष-पह पेड छोटा होता है और चीन, जापान प्रादि देशो में पहन लगाया जाता है। इसके फल में तीन चीवकोपा होते तार सार'--वि० [हिं० तार ] जिसकी धज्जियां मजग प्रलग हो है जो एक प्रकार के चिकने पदार्थ से भरे रहते हैं जिसे गई हो । टुकडा टुकड़ा । फटा फटा । उषा हमा। परवी कहते है। चीन और जापान में इसी पेड़ को चरबी क्रि० प्र०-करना। से मोमवत्तियाँ धनती हैं। परवी के मतिरिक्त चीजों से भी तर तार-सा पुं० [सं०] सांख्य के अनुसार एक गौण सिद्धि। एक प्रकार का पीला तेल निकलता है जो दवा पौर रोगन पठित मागम प्रादि की तकरा युक्तियुक्त परीक्षा से प्राप्त (वारनिश) काम में माता है। सिद्धि तारचौधु-सा [हिं• वार( =चा)+( गति करनेवाला)] तारतोड़-सा पुं० [हिं० तार+तोड़ना] एक प्रकार का सुई का तारक। वारा। 30-तारपो सट्ठल, पाई मृतख-पु. काम जो कपड़े पर होता है। कारपोबी। उ०--दिखावै कोई रा०, २६ । ७० गोखरू मोड़ मोड़। कहीं सूत बूटे कहीं तारतोड़-मीर वारळg..सा पुं० [सं० वा ] गरुड । 3.-गरुत्मान, तारक, इसन (शब्द०)। गरुड़, दवेय, शकुनीश ।-नद००, पृ० ११५ तारदो-सज्ञ श्री. [सं०] एक प्रकार का कांटेदार पैट। तरदो तारट -संज्ञा पुं० [सं० चारक ] द्वारा। तरेया। 30-सित दुकुर विभ्भूत वीलकंठी नष तारट !-पु० रा०, २१ ४२४। पर्या०-खरा । तीता। रक्तबीचका। तारण---सं० [सं०11 (दूसरे को ) पार करने का काम। वारन'-सहा पुं० [सं० तारण दे० 'तारण'। उ.--क म पार उतारने की क्रिया।२ पवार । निस्तार । ३. उद्धार तुम्ह तारन देव घन सुदर, नौके में निरवाहिये। दादा फरने या तारनेवाला व्यक्ति । ४ विष्णु । ५. साठ सवत्सरों में पु. ५५१। (ख) जग कारन, तारन भव, भजन घरनी से एक। ६ शिव (को०)1. नाव। नौका (को०)। भार।-तुलसी (शन्द०)। ८.विजय (को०)। दारन-संज्ञा पुं० [हिं० तर(-नीचे]१ छत की ढाल। छावन तारण-वि. १. नदार करनेवाला । पार करनेवाला। २. पार को ढाल । २ छप्पर का वह पास सो काड़ियों के नीचे करानेवाला। रहता है। गो०-तारण हिरण-पार उतारनेवाला 10-तारण खिरए तारना'-क्रि० स० [सेवारण पार लगाना पार करना । प लग कहिए।-धीर , पु. १०५ २ संसार के मलेश मादि से छुहाना। भवाधा दूर करना । तोरणी-सचा स्त्री० [सं०] कश्यप को एक पत्तो पो याज भोर उद्धार करना । निस्तार करना। सद्गति देना । मुक्त करना। उपयाप को माता कही जाती हैं। २ नौका । नाव (को०)। १०-काहू के न द्वारे तिन्ई गगा तुम तारे पोर जेते तुम तारे ते नम में न वारे हैं।-पद्माकर (शब्द०)। ३. पानी की तारतंडुल-संज्ञा पुं० [सं० तारतएल ] सफेद ज्वार । धारा देना। सरेरा देना । उ.मनई विरह सद्य घाव तारतखाना-सहा पुं० [प० तहारत+फा० खानह शुद्ध स्थान। हिप लसि तकि तकि धरि धीरज वारति ।-तुलसी (शब्द०)। पवित्र स्पल। यह स्थान जहाँ पर शुद्ध होकर नमाज मादि ४. कैराना। पढ़ने के लिये जाया जाता है। उ०-प्रति सोचे पतसाह तारना -सक्ष वी० [सं० ठाडना ] दे० 'नाना' पछाने । खिरा सज्या खिए धारतसोने ! --रा. ०, पु०१६ हारनी@ -क्रि० स० [हिं०] १. वाहना करना । वंड देना। पीड़ित तारतम -सपा पुं० [हिं०] दे॰ 'तारतम्य'। उ.-चौथा भकिल करना । १. देखना। निरीक्षण करना। मॅप को लेखा। वो तारतम ले करे विवेखा। -कवीर तारपट्टक-- [सं०] एक प्रकार की तलवार को मा०, पृ.१३ तारपवन-संश पुं० [सं०] सल्कापात । धृक्ष।