पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४२०

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तारपीन , तारा तारपीन---सहा पुं० [अ० टरपेंटाइन ] चीड़ के पेड से निकाला हमा तेल। विशेष- चीड के पेड़ में जमीन से कोई दो हाथ ऊपर एक खोखला गड्डा काटकर बना देते हैं और उसे नीचे की मोर कुछ गहरा कर देते हैं। इसी गहरे किए हुए स्थान में चीड़ का पसेव निकलकर गोद के रूप में इकट्ठा होता है जिसे गदा- विरोजा कहते हैं। इस गोंद से भव द्वारा जो तेल निकाल लिया जाता है, उसे तारपीन का तेल कहते हैं। यह मौपष फे काम में माता है और दर्द के लिये उपकारी है। तारपुष्प-समा० [सं०] कुद का पेड़। तारबी --संज्ञा पु० [हि. तार+म. ध फा०ई० (प्रत्य॰)] बिजली की शक्ति द्वारा समाचार पहुंचानेवाला तार । वारमाक्षिक-सझा पुं० [सं०] रूपामक्खी नाम की उपधातु । तारयिता-सहा पुं० [सं० तारयितु] [स्त्री. तारयित्री ] तारने- वाला । उद्धार करनेवाला। तारल-वि० [सं०] चपल । चंचल । भस्थिर। २ लपट । विलासी [फो०] । तारल- सझा ० विट [को०] । तारल्य-सशा पुं० [सं०] १. जल, तेल मादि के समान प्रवाहशील होने का धर्म । द्रवरख । २ चचलता। चपलता ! ३. लपटता । कामुकता (को०)। तारवायु-समा स्त्री॰ [सं०] तेज या जोर की मावाजवाली हवा को। तारविमला-साली [सं०] रूपामखी नाम की उपधातु । वारशुद्धिकर-सा पुं० [सं०] सीसा [को०] । सारसार-सज्ञा पुं० [सं०] एक उपनिषद् का नाम । तारस्वर-सचा पुं० [सं०] ऊँचा स्वर । ऊँची मादाज [को॰] । तारहार सम्म पुं० [सं०] १ सुदर या बड़े मोतियो का हार। उ.--डोहो के चल करतल पसार, मर भर मुक्ताफल फेन स्फार, बिखराठी जल मे तार हार ।--गुजन, पृ. ६५। २ चमकीला हार । तेजोमय हार (फो०)। तारहेमाभ-समा पुं० [सं०] एक प्रकार की पातु (को०] । तारा-सधा पुं० [सं०] १ नक्षत्र । सितारा। यौर-तारामहल। मुहा०-तारे खिलना = तारों का चमकते हुए निकलना। तारों का दिखाई देना। तारे गिनना-चिता या मासरे मे वेचैनी से रात काटना। दुःख से किसी प्रकार रात बिताना। तारे छिटंकना = तारो का दिखाई पड़ना। प्राकाश स्वच्छ होना और तारों का दिखाई पडना। तारा टुटना % चमकते हप पिंड का माकाश में वेग से एक ओर से दूसरी मोर को जाते हए या पृथ्वी पर गिरते हुए दिखाई पड़ना । उल्कापात होना। तारा डूबना = (१) किसी नक्षत्र का मस्त होना । (२) शुक्र का मस्त होना। विशेष-शुक्रास्त में हिंदुओं के यहां मंगल कार्य नहीं किए तारे तोड़ लाना=(१) कोई बहुत ही कठिन काम कर दिखाना। (२) बडी चालाकी का काम करना। तारे दिखाना- प्रसूता स्त्री को छठी के दिन बाहर लाकर माकाश की पोर इसलिये तफाना जिसमे जिन, भूत मादि का डरन रह जाय। विशेष-मुसलमान स्त्रियों में यह रीति है। तारे दिखाई दे जाना-मजोरी या दुर्बलता के कारण माखों के सामने तिरमिराहट दिखाई पड़ना। तारा सी पास हो पानाललाई, सुजन, कीचड़ मादि दूर होने के कारण प्रख का स्वच्छ हो ज ना। तारो को छोह बड़े सवेरे । तरके, जब कि तारो का घुषला प्रकाश रहे । जैसे,-तारों को छोड़ यहाँ से चल देंगे तारा हो जाना%=(१) बहुत ऊँचे पर हो जाना। इतनी ऊंचाई पर पहुँच जाना कि तारे की तरह छोटा दिखाई दे । (२) इतनी दूर हो जाना कि छोटा दिखाई पड़े। बहुत फासले पर हो जाना। २.माख की पुतली। उ.--देखि लोग सब भए सुहारे । एकटक लोचन पलत न वारे ।-मानस, ११२४४ । मुहा०-जयनो का तारा= दे० 'भाख का तारा'। मेरे नैनों का तारा है मेरा गोविंद प्यारा है। हरिश्चन्द्र (गम्द०)। ३. सितारा। भाग्य । किसमत । उ०-ग्रीखम के भानु सो स्खुमान को प्रताप देखि तारे सम तारे भए मुवि तुरकन के। --भुषण (पब्द०)। ४. मोती। मुक्ता (को०)। ५ बह स्वरोंवाले एक राग का नाम (को०)। वारा-सशस्त्री० [सं०] १. तत्र के अनुसार दस महाविद्यामों में से एक । २ बृहस्पति को स्त्री का नाम जिसे चद्रमा ने उसके इच्छानुसार रख लिया था। विशेष-वृहस्पति ने जब मपनी स्त्री को चद्रमा से मांगा, तब चंद्रमा ने देना अस्वीकार किया। इसपर वृहस्पति प्ररयत कुद हुए मोर मोर युद्ध भारभ तमा। अंत में ब्रह्मा ने उपस्थित होकर युद्ध शांत किया मोर सारा को लेकर वृहस्पति को दे दिया। तारा को गर्भवती देख वृहस्पति ने गर्भय शिशु पर अपना अधिकार प्रकट किया। तारा ने तुरत शिशु का प्रसव किया। देवतामो ने तारा से पूछा---'ठीक ठीक पतामो, यह किसका पुत्र है ?' तारा ने बड़ी देर के पीछे वताया-'यह पस्युहतम नामक पुत्र पवमा का है। चद्रमा ने अपने पुत्र को ग्रहण किया और उसका नाम बुष रखा। ३ पैनो की एक शक्ति। ४. बालि नामक बदर की स्त्री भोर सुसेन की कन्या। विशेष-इसने पालि के मारे जाने पर उसके भाई सुग्रीव के साथ रामपद्र के प्रादेशानुसार विवाह कर लिया था। तारा पंचकन्यामो में मानी जाती है और प्रात.भाल उसका नाम लेने का बड़ा माहात्म्य समझा जाता है । यपा-- महल्या द्रौपदो तारा कुती मंदोदरी तथा । पंच कम्पा स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम् ॥