पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तितेक २०५० विदारी मांझ प्रमरगन जिते । देखत है घट पोटनि तिते ।--नद००, तिथिकृत्य-सहा पुं० [सं०] विशेष तिथि पर किया जानेवाला पृ. २६८। धार्मिक कृत्य [को०] 1 वितेक@t-वि० [हिं० तितो+एफ ] उतना। उ.-गोकुल तिथिक्षय-संश पुं० [सं० ] सिथि की हानि । किसी तिथि का गोपी गोप जितेक । कृष्ण चरित रस मगन तितेक ।-नद. गिनती मे न पाना । ग्र०, पु. २५६ । विशेष-ऐसा तब होता है जब एक ही दिन में पर्थात् दो वित -क्रि० वि० [हिं० तित+ ई (प्रत्य॰)] १. वहा ही। सूर्योदयो के बीच तीन तिथियां पड़ जाती हैं। ऐसी अवस्था वही। २ वहाँ । ३ उघर। में जो तिथि सूर्य के उदयकाल में नही पड़ती है, उसका क्षय तितो -वि० [सं० तावत् ] उस मात्रा या परिमाण का। माना जाता है। तितो-क्रि० वि० उतना । तिथिदेवता-सपा ० [सं०] वह देवता जो तिथि का अधिष्ठाता तितौल-कि० वि० [हिं०] दे० 'तितो! 1.-(क) पप सब होता है [को॰] । लोक चराघर जितो। प्रलय उदधि मषि मज्जत तितो।- तिथिपति--सा पुं० [सं०] तिपिषों के स्वामी देवता। नद० ग्र०, पृ. २७१। (ख) जद्यपि सुदर सुघर पुनि सगुमो विशेष-भिन्न भिन्न प्रयो के अनुसार ये अधिपति भिन्न भिन्न दीपक देह । तऊ प्रकासु करे तितौ भरियै जित सबेह।- है। जिस तिपि का जो देवता है, उसफा उक्त विपि को विहारी र०, दो० ६५५ । पुषव होता है। तित्तिर-सहा पुं० [श्री तित्तिरी ] १ तीतर नाम का पक्षो । २. तितली नाम की घास | देवता तित्तरिया पुं० [ स०] १ तीतर पक्षी । २. यजुर्वेद की एक तिथि घाखा का नाम । ६० वि० तैतिरोय' । ३. यास्क मुनि के एफ वृहत्संहिता वरिष्ठ घिष्य जिन्होंने तैत्तिरीय शाखा चलाई थी।-( मात्रेय ब्रह्मा मग्नि अनुक्रमणिका)। विधाता विधाता विशेष --भागवत मादि पुराणों के अनुसार वैशपायन के शिष्य पोरी मुनियो ने तितर पक्षी बनकर याज्ञवल्क्य के उगले हुए यम गणेश चद्रमा सर्प यजुर्वेद को घुगा था। षडानन षडानन तित्थे -पव्य. [प० ] तहाँ । उ.--महो महो घनपानंद जानी सूर्य तित्यू जाँदा है !---घनानंद.पू. १८१। महेश सर्प तिथि-सज्ञा पुं० [सं०] १ चद्रमा की कला के घटने या पढ़ने के धर्म यम अनुसार गिने जानेवाले महीने का दिन । चांद्रमास के मलग विश्वेदेवा अलग दिन जिनके नाम सख्या के अनुसार होते हैं। हरि मिति । तारीख। काम १४ कलि यौ०-तिथियक्ष । तिथिवृद्धि । पूणिमा विश्वेदेवा चद्रमा विशेष-पक्षो के अनुसार तिथियां भी दो प्रकार की होती हैं। अमावस्या पितर पितर कृष्ण मोर शुक्ल । प्रत्येक पक्ष में १५ तिथियां होती है। जिनके नाम ये हैं-प्रतिपदा ( परिवा), द्वितीया ( पूज), तिथिपत्र-सहा पुं० [सं०] पत्रा ! पचांग । जत्री। तृतीया ( तौज ), चतुर्थी (पौष ), पचमी, षष्ठी (छठ), तिथिप्रणी-सा पुं० [सं०] चद्रमा । सप्तमी, मष्टमी, नवमी, दपामी, एकादशी ( ग्यारस ), द्वादशी तिथियुग्म-सका पुं० [सं०] दो तिथियों का योग (को०] । (दुमास ) प्रयोदशी ( तेरस), चतुर्दशी (चौदस ), तिथिवृद्धि-संक्षा सी० [सं०] वह तिथि को दो सूर्योदयो तक पूर्णिमा या ममावस्या। कृष्णपक्ष की प्रतिम तिथि प्रमावस्या चले [को०] । पौर शुक्लपक्ष की पूणिमा कहलाती है। इन तिथियों के पाप _motion | वर्ग किए गए हैं--प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी का नाम जया, द्वितीया, सहमी भौर द्वादशी का नाम भद्रा, तृतीया तिदरी-पचा बी० [हिं० तीन + फा० वर] वह कोठरी जिसमे प्रष्टमी और प्रयोदशी का नाम जया, चतुर्थी, नवमी पौर तीन दरवाजे या खिड़कियां हो । चतुर्दशी का नाम रिता, धौर पचमी, दशमी और पणिमा तिदारी-सक्षा पुं० [ देश०] जल के किनारे रहनेवाली बत्तख की या भमावस्या का नाम पूर्ण है। तिथियों का मान नियत तरह की एक चिडिया। होता है अर्थात् सब तिषिया बराबर दडो को वहीं होती। विशेष—यह बहुत तेज उपती है और बमोन पर सखी घास का २ पबह की सख्या । घोसला बनाती है। इसका लोग शिकार करते है। r»xru0 वसु दुर्गा ११ सविता काम