पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४३७

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तिद्वारी २०६१ तिनिश तिवारी–स स्त्री० [सं० निवारवह कोठरी जिसमें तीन को बहुत बढ़ाकर कहना । दिनके की पोट पहाड़-छोटी सी दरवाजे या विपकिया हो। बात मे किसी बड़ी बात का छिपा रहना । सिर से तिनका तिघरो-क्रि.वि. म. तर] उधर । उस भोर । उतारना=(१) थोडा सा एहसान करना।२ किसी प्रकार का थोड़ा बहुत काम करके उपकार का माम करना। तिधरि-कि० वि० [हिं० दे० 'तिधर। उ०-विधरि देखों नन भरि विधरि सिरजनहारा। -दादु०,६८1 तिनगना--क्रि० स० [हिं०] दे० 'तिनकना'। विधारा-स० [सं० त्रिधार ] एक प्रकार का यूहर ( सेंहुड) विनगरी-ससा सी० [देश॰] एक प्रकार का पक्वान । उ.-पेठा पाक जिसमें पसे नहीं होते। जलेबी पेरा । गोंदपाग तिनगरी गिधौरा ।- सूर (शब्द०)। विशेष-इसमे उगलियों की तरह शाखाएं ऊपर को निकलती तिनताग-सरा पुं० [हि. तीन+ताग सीन वागे (अनेस)। हैं। इसे पगी मादिको बाढ़ या टट्टी के लिये लगाते हैं। उ०माह्मन कहिए ब्रह्मरत है ताका वह भाग । नाहित पशु इसे वनो या नरसेज भी कहते है। प्रज्ञानता गर डारे तिन तोंग । -भीरशा० ० १.१ तिधारीफांडवेल- भया धो दि० तिवारी+सं० काएडवेलहडलोड। तिनतिरिया--सपा पुं० दिश०] मनुना फपास । तिनंगा- हि-1 दे० 'सिलगा। उ०-सार तिनंगा तारयो।- सिनधरा-सक्षा स्त्री० दिरा०] तीन धार की रेती जिससे भारी के पति पू० स०, १०॥३२॥ चोखे किए जाते हैं। तिना--सर्व. [सं० तेन(-एनसे)] 'तिष्ट' सन्द का बहुवचन । जैसे, तिनपतिया-वि० [हिं० तीन + पात ] तीन पसे वाले (बेलपत्र तिनने, सिनको, तिनरी इत्यादि। उ०--तिम कवि केशवदास मादि)। सौ कौमो धर्म सनेह -केशव (शब्द०)। विनपहल --वि० [हिं० तीन + पहल ] दे० 'सिनपहला'। विशेष-यब गद्य में इस शब्द का व्यवहार नहीं होता। तिनपहला-वि० [हिं० सीन+पहन] वि० श्री. तिनपहली] जिसमें तिन-सश . [सं० तृण ] ठिका। तृण । घासफूस । 30.--कै तीन पहल हो । जिसके तीन पावं हो। कपूर मनिमय रही मिलति न दुति मुफुतालि । छिन छिन तिनमिना-सझा पु० [हिं० तिन मनिया ] माला जिसके पीच मे सरो विषयको बक्षहि चाय तिन मालि।-बिहारी (शब्द०) सोने का जड़ाऊ जुगनू हो। तिनठर-सक पुं० [सं० तृण+उर या पौर (प्रत्य०) प्रथवा सं० तिनवा-सा पुं० [दश०] एक प्रकार का बास । तृण+माकर ] तिनकों का ढेर। तृणसमूह । उ.--तन तिन विशेष-यह बरमा में बहुत होता है। भासाम और छोटा भाग- उरभा, रौं खरी। मइ बरखा, दुख मागरि बरी - पुर में भी यह पाया जाता है। यह इमारतों में लगता है और पायसी (बन्द०)। पटाइयो बनाने के काम में भाता है। इसके घोगों में परमा, तिनक-सक पुं० [हिं॰] दे० 'तिनका'। उ.--लाज तिनक जिमि मनीपुर प्रादि के लोग भात भी पकाते हैं। तोरि ही दोनी-नव.ए. पु. १५२ । तिनष्पना-क्रि० स० [हिं०] दे० 'तिनकना'। उ.--मुरपो साहि विनकना-क्रि०प० [म. चिनगारी, चिनगी, या अनु.] चिड़ गोरी महापौर धीर । सधी तिनष्पो लिए पिभिम तीरं।- चिड़ाना। चिढना । झल्लाना । वियरना । नाराज होना । पु. रा०१३।६। तिनका-शा पु० [सं० तृणक] तृण का टुकड़ा। सूखी घास या तिनस-सहा पुं० [हिं०1० तिनिश'। मेठी का टुकड़ा । 30-तिनका सौ प्रपने जन को गुन मानत तिनसुना--सचा पुं० [सं०] तिनिश का पेड़ । मेरु समान । सुर०, ११८ मुद्दा-तिनका दांतों में पकड़ना या बेना= विनती करना। तिनाशक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] तिनिश क्ष । क्षमा या कृपा के लिये धौनतापूर्वक विनय करना । गिडगिडाना सितास--सहा . [हिं०] दे० 'तिनिश'। हाहा खाना तितका तोहना = (१) सबष तोड़ना । (२) विनि -वि० [हि. दे० 'तीन' | उ.--तिहि नारी के पुस तिनि पचाय लेना । लैमा पेना। भाक । ब्रह्मा विष्णु महेश्वर नाऊँ ।--कधीर बी., पृ० ५। विशेष---बच्चे को नजर न लगे, इसलिये माता कभी कभी विनका तिनिश--सबा पुं० [सं०] सौसम की जाति का एक पेड़ जिसकी सोड़ती है। पत्तियो शमी या खैर की सी होती है। विन बुनना = बेसुध हो जाना पचेत होना । पागल या पावला विशेष-इसकी जकड़ी मजबूत होती है और किवाड़, गाड़ी हो जाना। (पाल प्राय व्ययं के काम किया करते हैं। पादि बनाने के काम में प्राती है। इसे तिनास या विनसुना उ.-रजे फिराक मे तिनके धुनने की नौबत पाई।-- भी कहते हैं। वैद्यक में यह कसैला घोर गरम माना जाता है। फिसाना., मा० ३.१०२६८। दिनके घुनवाना = (१)पागम रक्तातिसार, कोढ़, दाह, रक्तविकार मादि में इसकी छाल, पना देना। (२) मोहित करना। तिनसे का सहारा- (१) पत्तियां मादि दी जाती है। थोड़ा सा सहारा । (२) ऐसी वात जिसमें कुछ योहा बहुत पर्या०--स्यवन । नेमो । रयद् । प्रतिमुक्तक । चित्रकृत । पक्री । ढारसबंधे। तिन को पहार करना-छोटी बात को बड़ी शतांग कट रषिक भस्मगर्भ । मेषी। जलपर प्रक्षक। कर डालना । तिनके फो पहाड़ कर दिखाना- योसी सी बात विनायक।