पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४३८

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सिनुक २०५२ सियासी सारा तिनुका सच्चा मुं० [हिं॰] दे० 'तिनुका'। उ०—हम स्वामि काष बना हो। उ.-दक्षिण चीर तिपाई को लहँगा। पहिरि सामंत मरन तन तिनुफ विघारौं।-पु. रा०, १२१६८ । विविध पट मोलन महंगा ।-सुर (पान्द०)। २. जिसमें तिनुका- प हि ] दे० 'तिनका'। उ०-ट्रट माय मोठ तीन पल्ले हो । ३ जिसमें तीन किनारे हो। तिनुका की रसक रहै ठहराई।--फरीर थ०, मा०२, पृ०२। तिपारो-सवा सौ. [देश॰] एक प्रकार का छोटा झाड या पौषा तिनुवरल-सबा पुं० [ से० तृणवर ] सिनका।। जो बरसात में मापसे माप इधर उधर जमता है। मकोय । तिनका -संका पुं० [हिं॰] दे० 'तिनका' । उ०--होय तिनुका परपोटा। छोटी रसभरी । वज्र वज तिनका है दुठे ।-गिरिधर (पद)। विशेष-इसकी पत्तियां छोटो पौर सिर पर नुकीली होती हैं। इसमें सफेद फूल' गुच्छों में लगते है। फन सपुट के पाकार विन्तक-सा पुं० [हिं० तनिक] 1तुच्छ चीज। २ छोटा के एक झिल्लीदार कोश में रहते हैं जिसमे नसो के द्वारा सरका1 कई पहल बने रहा है। तिन्ना-सच पु० [सं०] १. सती नामक वर्णवृत्त । २ रोटी" तिपुर -सरा पु० [हिं० दे० 'त्रिपुर। 30-काली सुर महि- साप खाने की रसेदार वस्तु । ३. तिन्नी के पान का पौषा । वास तिपुर जितिन महिपासुर ।-पु० रा०, । ६२ । तिन्नी-सशाखौ.सं० तृण, हि. तिन, प्रथचा सं० तृणान्न ] एक एक तिपैरा-समा पुं० [हिं० तान + पुर] वह पडा कुमो जिप्स में तीन घरसे Tal प्रकार का जंगली पान जो तालों में मापसे भाप होता है। एक साथ चल सके। विशेष—इसकी पत्तियां बहन का सी ही होती है। पौषा तीन तितQ-वि० [हिं०] दे० 'तृप्त"।१०-सी मुक्त तिप्त हरि दर्शन चार हाय कॅधा होता है। कातिक मे इसकी पाल फूटती है पावै। साध सपति महि हरि लिव लावै। -प्राण.. जिसमें बहुत लबे लवे टू होते हैं। बास के दाने तैयार होने २२४। पर गिरने लगते है, इससे इकट्ठा करनेवाले या तो हटके मे । तिप्ति-सला स्त्री० [हिं॰] दे० 'तृप्त'। उ०-तिप्ति सतोपि रहे पानों को झाड़ लेते है अथवा बहुत से पौर्षों के सिरों को एक सिउ लाई । नानक जोती जोति मिलाई ! --प्राण. में पाप घेते हैं। तिन्नी का धान लंबा और पतला होता है। पु. १७७ । चावल खाने मे नीरस मोर रुखा बगता है मौर वत प्रावि में खाया जाता है। तिफली -सहा पुं० [म. लिपल+फाई (प्रत्य॰)] वचपन । उ०-पारद हुमा तिफली जवानी व बुढ़ापा ।-कवीर म०, विन्नी–पा बी• [ देश० ] नीवी । फुफुती । पु. १५० । तिन्दा-पर्व. [वि.] दे० 'दिन'। तिफ्ल-सा . [प्र. सिफ्स्] बच्चा। 10- कहे पाए तिपस विपदा-सहा पुं० [हिं. दीन+पट] मखाद युननेवालो के फर मेरे सुर ऐनी। जो यक सौजन कू लामो होर दागा।- की पहचकी जिसमें तागा बपेटा रहता है पोर पो दोनों दक्खिनी०, पृ. ११५। सरो के बीपमोदी है।। यो०---विपद मिजाज बाल्प प्रकृतिवासा । तिफ्ले मश्क मश्रु- तिपतास -सहा पुं० [सं० तृप्ति+प्राथय ] | तृप्ति प्रदान करने- विदु । सिपले मातथ -चिनगारी । तिपले मकवव निरक्षर । वाली वस्तु। उ०—काषा सो जाका कवल विपास । ज्ञान मक्षं। मनमिश। प्रनाली। तिपले चीरस्वार - दुधमुंहा सपूरण तिपतास । -प्राण, पृ.१०।। मच्चा। तिफ्लेवि = प्रांख की पुतसी । कनीनिका।। सचा स्त्री० [सं० तृप्ति ] दे० 'तृप्ति'। उ०-सहस एक तिव-सहा बी० [म.] यूनानी चिकित्सा । हकीमी [को॰] । साषि पासि विय तिपति इक्क मधि 1-~-पुरा०, तिबद्धी-वि० सी० [हिं० तीन + वाष] (चारपाई की बुनावट) १४1188 जिसमे तीन बाष या रस्सियो एक साथ एक एक बार खींची पायें। तिप-सपा पुं० [अनु.] तिप् तिप् की ध्वनिपूर्वक ठपकने का भाव । उ०-मोर वेला, सिंगी छत घे प्रोस की तिप् विप तिबाई-सक स्त्री. [मा०] माटा मापने का पिछला पसाबरतन । पहावी काका-हरो षास०, पु.१४। तिबारा--वि० [वि. तीन+बार तीसरी बार । तिपल्ला-वि० [हिं० तीन पल्ला ] १ सीन पल्लों का। जिसमें तिबारा- पु. तीन बार उतारा हुमा मद्य । तीन पतं या पावं हो। २. तीन तागे का। जिसमे तीन तिवारा- पु.[हिं० दीन+पार( दरवाजा)बी. तिवारी] तागे हों। वह घर या कोठरी जिसमे तीन द्वार हों। तिपाई- - [हिं० तीन+पाया] १ तीन पायों को र तिवारी-मामी [हि तीम द्वारवाला घर या कोठरी। उ.-- त बैठने की ऊँची चौकी। स्टूल । २. पानी के बड़े रखने की वह मचलती हुई बिसात के बाहर तिवारी में चली माई। ऊंची पोकी। टिकटी। सिगोडिया। ३ लफडी का एक पांसे हाथ में लिए प्रकवर उसकी भोर देखने सगे।--६०, चौसठा बिसे रंगरेज काम में लाते हैं। तिवासी-वि० [हिं० तीन+बासी] तीन दिन का वासी (बाब सिपाह-सा पुं० [हिं० तीन+पा] १. पो तीन पाठ जोड़कर ।