पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तिविक्रम २०५३ तिमिर विधिकम -सचा पुं० [हिं०] दे० 'त्रिविक्रम" | उ.--तरे तीर तौल। २. ४ बो की एक तौल पो पहारी देशों में तिविक्रम, ताकि या फरिदै विदिसा पनिमेसी।-धनानंद, प्रचलित है। पृ० १४८ विमिंगल-सबा पु० [स० तिमिङ्गल ] १. समुद्र में रहनेवासा तिवी-सहा मौ० दरा०] खेसारी । मत्स्य के प्राकार का एक बडा भारी चतु जो तिमि नामन्च तिव्व--संघा मौ००१ यूनानी चिकित्सा शास्त्र । हकीमी। पड़े मत्स्य को भी निगल सकता है। बड़ा भारी ह्वेल । उ.-- २ चिकित्सा शास्त्र [को०] । रहन सौप के वातायन, जिनमें माता मधु मदिर समीर । - यो-तिब्वे कदीम - प्राचीन चिकित्सापद्धति । तिब्बे पदीय टकराती होगी पर उनमें तिमिंगों को भीर अधीर ।- नवीन चिकित्सापद्धति या पाश्चात्य चिकित्सापति । कामायनी, पृ०१२। चिमिंगलाशन- सम पुं० [सं०] १ दक्षिण का एक चविभाग सिन्यत- पुं० [सं० वि+भोट ] एक देश जो हिमालय पर्वत के जिसके अवगंत संज्ञा प्रादि हैं और पहा निवासी तिमिंगष उत्तर पड़ता है। मत्स्य का मांस खाते है (वृहत्साहिता) । २ उक्त देश का विशेष-इस देश को हिंदुस्तान में पोप बहते हैं। इसके तौर निवासी। विभाग मारे जाते है। छोटा दिग्बन, बड़ा तिन्वत मोर खास विमिगिल-सा पुं० [सं० सिमिडिल] देव तिमिगल' (को०)। विम्बततिम्मत पहत ठम देख है, इसपि वहाँ पेरु पोषे बहुत विमि'-सा पुं० [सं०] १. समुद्र में रहनेवाचा मछली के प्राकार कम उपोहैं। यह निवासी जावारियों मियते पुष का एक बड़ा भारी अतु। होते हैं पोर पषिकदर कर चष, पर पाधि बुनकर विशेष-लोगों का अनुमान है कि यह पसु ह्वेल है। अपना विधिकरते हैं। देश कस्तूरी और संवर विप २. समुद्र । १. पांच का एक रोग जिसमे रात को सुझाई नहीं प्रपिद। सुरा पाय मौर कस्तुरी एप यहाँ बहुत पाए जाते पड़ता। रतौंधी।४ मछली (को०)। सतिग्छत रहनेवाले पर महायान पाखा पोट। बौदों अनेक मठ पोर महत। कैलास पर्वत पोर मान- सिमि -मध्य. [ से० +इव-इमि ] उस प्रकार | वैरी। ३०-तिमि तिमि मारवणीत सरोवर झीम हिम्मत ही में। ये विच पोर पोर दोनों तर धरण पर था। तीर्थ स्थान है। कुछ लोग "तिम्वत' को त्रिविष्ट का प्रपन य ढोला. १०१२। पसमाते है । स्वतन्त्र भारत ने इसे धीन को दे दिया और यह विशेष—इसका व्यवहार 'बिमि साप होता है। देश पर पूर्णतः पीनी पासव में है और यहाँ के प्रमुख तिमिकोश-स पुं० [सं०] समुद्र । दलाई लामा पारत में निवास करते है। तिमिघाती सगा पुं० [सं०तिमिघातिम्] मछेरा। मछुपा [को॰] । तिब्बती--वि० [हिं० सिम्पत ] तिब्धत सर्वधी । तिब्बत का। तिमिज-सधा पुं० [सं०] मोती [को॰] । तिम्बत में उत्पन्न । वैसे, सिम्पती मादमी, तिब्बती भाषा । तिमित-वि० [ ] निश्पल । प्रचण् । स्पिर ।२ क्लिन्न । तिची-सचा औ• विम्बत की भाषा । भीगा । धाद। ३ शांत । धीर (को०)। तिब्धती-धबा पुं० तिन्वत देश का रहनेवाला । तिमित २-वि० [सं० तम ] काला। ३०-नयन सरोष दुह वह तिधिया-वि० [.तिबियह ] तिन्य संबंधी। एकौमी [को॰] । नौर। काबर परि पचरि पर धीर । धेष्ठि तिमित मेव तिभुबन सपा [वि.] त्रिभुवन' । 8.-तुम तिनुवन उरख सुधेस ।---विद्यापति, पृ० ३७३ । तिहुं काल विपार विसार--सुषसी प०, पु० ३०१ तिमिधार-सक पुं० [सं० उम+पार ] अंधकार । पंधरा । उ०- तिमंगल -सका [हिं. २० "तिमिगिर। 10---पाठ दिसा मनी कमल मुफलित जखित छयो सघन सिमिधा ।-० वित हरे उताला । साता पण तिमगल पाला!-रा००, सप्तक, पु० ३४५॥ तिमिध्वज-सधा पु० [सं०] पावर नामक दैत्य जिसे मारकर राम. चन्द्र ने ग्रहा। दिव्याल प्राप्त किया था। तिमंजिला-वि० [वि. तीन+० मपि वि. सौ. तिमंजिली] तिमिमाली-सधा पुं० [सं० तिमिमालिन् ] समुद्र [को०] । सीन रोका। सीर मरातिध का । नेस, तिमजिला मकान । विमिर-सपा पुं० [सं०] १ अधकार। प्रघरा । १०-काल गरज सिम'- सक' [हि डिम ] नगाहा। फा। दु दुभी (दि.)। है तिमिर पारा !--कबीर सा०, पृ०२१ २ प्राध का पक्ष तिम -मध्य० [हिं०] ३० "तिमि'। उ.--ता उप्पर घालुक्क रोग। बीर बंधी तिम सीमाह --पृ० ग० १२ ३. विशेष—इसके मनेक भेद सुध त मे बतलाए है। पांचों रे तिमर--सबा पुं० [हिं०] १. 'तिमिर'। उ०-बूझ बिन सूझ धुंधला दिखाई पड़ना, चीजें रस बिरग को दिखाई पड़ना, पर तिमर लागी ! तुलसी० ० पू०१८ । रात को न दिखाई पड़ना पादि सब बोप इसी अतर्गत माने तिमाना--क्रि० स० [देश॰] भिगोना । तर करना । गए हैं। तिमाशी-सचा त्री० [हिं० तीन+माशा ] १ तीन माथे की एक ३ एक पेड़। (वाल्मीकि