पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तिमिरजा २०६४ तिरकट सवाई तिमिरजा-वि० पी० [सं० तिमिर जा] भंपकार से उत्पन्न। सियत -वि० [सं० नि+मन्तर] [लो तियतरी] वह बेटा जो उ.--लहराई दिभ्राति तिमिरजा स्रोतस्विनी कराली। तीन बेटियों के बाद पैदा हो । तेतर। --प्रपलरु, पृ०५१। तियरासि---वि० [हिं० तिय+राशि कन्या राशि । 30-ससि मीन तिमिरजाल-सा . [ सं• तिमिर जाल ] अघारसमूह। घना तीस कटि एक अंस। तिपरासि को सुरभानुतंस!--ह. अधकार । उ०-गत स्वप्न निशा का तिमिरजाल नव रासो, पु०२२ । किरणों से घो घो।-मपरा, पृ०१६ । तियला--सपा पुं० [सिं० तिय+ला (प्रत्य॰)] स्त्रियों का एक तिमिरनुदु-वि० [१०] अधकार का नाश करनेवाला । पहनावा । 7.--ब्राह्मणियो को इच्छा भोजन करवाय सुथेर तिमिरवेंद्र–सच्चा पुं० सूर्य । तियले पहराय दक्षिणा दी।- लल्लू (शब्द०)। वियलिंग-सचा पुं० [हिं० विय+लिंग] दे॰ 'स्त्रीलिंग'। उ०- तिमिरमि -वि० [सं०] अषकार को भेदने या नाश करनेवाला। घारादिक तिलिग ए, कवि भाषा के माहि ।-पोद्दार पभि. विमिरभिद्र--सहा पुं० सूर्य ! प्र०, पृ.५३२। तिमिरमय-सधा पुं० [सं०] १. राहु । २. ग्रहण [को०] । तिया-सहा पुं० [सं०त्रि १ गजीफे या ताश का वह पत्ता जिस- तिमिरमय-वि० अंधकारयुक्त [को०] । पर तीन बूटियाँ हती हैं। विक्की । तिही । २ नक्कीपूर तिमिररिपु-सक्ष पुं० [सं०] सूर्य । मास्कर। खेल में यह दीव जो पूरे पूरे गडों के गिनने के बाद तीन तिमिरार-बापुं० [हिं०] ३. 'तिमिरारि। उ.--होइ मधुकर कोरिया रचने पर होता है। बोगी रस लेई । होइ तिमिरार घोत तोहि देई1-द्रा०, तियाकुर--सशास्त्री [हिं॰] दे॰ 'तिय'। उ---पुनि घोपर खेलों पृ०७६ के हिया। जो तिर हेल रहै सो तिया |--जायसी पं. तिमिरारि-सधा पु० [सं०] १. ग्रंधफार फा शत्रु । २ सूर्य । (गुप्त), पृ. ३३२। वियाग --बचा पुं० [हिं०] दे० त्याग'। उ०-तीखो खाग तिमिरारी-सा स्पी० [सं० तिमिराली ] अषकार फा समुह । तियाग, जेहल वेढो अनमियो !--atफी०, भा० ३, पृ० १२ । मंधेरा। 30-मधुप से नैन पर वषुवल ऐस होठ श्री फच्च से कुछ कप वेलि तिमिरारी सी-देव (पब्द०)। त्तियागना-क्रि० स० [अ० त्याग+ना शरय.)] त्याग करना । छोड़ना। 10-मात पिता सब कुद्रव तियागे, सुरत पिया तिमिरावलि-सा स्त्री० [सं०] प्रकार का समूह । उ०-तिमि- पर लावे!--कवीर रा., भा० १,१०१०३ । रावलि साँवरे दंतन के हित मैन धरे मनो दीपक ह।-- तियागी+-वि० [मस्यागे] त्याग करनेवाला। छोड़नेवाला। सुंदरीसर्वस्व (शब्द०)। उ.--बलि विक्रम दानी बड़ कहे। हातिम करन तियागी तिमिर -सचा पुं० [हिं०] दे० 'तिमिर'। २०-जथ गुर तेज मह।-जायसी (पाब्द०)। प्रचंड तिमिरि पाखंड विईडन ।--नट०, पृ०६। तिरंग-सया पुं० [हिं०] ३० तिरगा'। 3०-फदर तिरंग चक्रदल तिमिरी-सश० [सं० तिमिरिन] एक कोड़ा को०] । प्रतिपल । हरता जन मन भय शय, जय जय हे!-युगपथ, तिमिला-सपा श्री० [सं०] एक वाद्य यश [को॰] । सिमिप-सा पुं० [सं०] १ कफही। फूठ । २ पेठा । सफेद कुम्हड़ा। ... तिरंगा'-सभा पुं० [हिं० सोत + ग] तीन रंगोवाला राष्ट्रीय घ्यज । उ-माज तिरगे येरे पर ग तरगित ।-युगपप, ५ ठरवूज। पृ०६१ सिमी सधा पु०सं०] 1.सिमि मत्स्य। २.वक्ष को एक कन्या को तिरंगा--विनीत रगवाला तीन रगो का । ___ कश्यप की स्त्री पौर तिमिगलों की माला पो। तिरकट-सया पुं० [?] मागे का पाल । प्रगला पान (लश.)। तिमीर-संचाई सं०] एक पेठ का नाम । चिरकट गावा सजाई---मया पुं० [१] मागेका टार समय उपरी तिमहानी-सबा खी० [हिं० तौन+फा० मुहाना] १ वह स्थान सिरे पर का पाल ( लश)। पहा तीन मोर जाने को तीन फाटक या मार्ग हो। तिर- तिरकट गावी-सका पु. [?] सिरे पर फा गल । (लश)। महानी। 30--त्रिविष त्रास पासक तिमुहानी। राम सध्प तिरकट डोल-सहा पुं० [?] मागे का मादन (ल.)। सिंधु समहानी-मानस १४०। २ नर स्पान पहा तीन तिरकट तवर--समा?] वह छोटा चौकोर पागे पार मोर से तीन नदिया पाकर मिली हो। जो सबसे बड़े मस्तूल के ऊपर मागे की घोर लगाया जाता तिम्मगत-वि० [१] १ पस्तमित । २ प्रसार गतिवाला। उ०- है। इसका व्यवहार पहुत धीमी हवा चलने से समय होता भर विमर मग मग हय गइय। रहिय तिम्मगत जुद छ। है ( स० )। -पृ० रा०, ११ तिरकट सवर-सहा पुं० [?] सबसे ऊपर का पान (लश.)। तिया-सा स्त्री [सं० स्त्री] १ स्पो। पोरत ! उ.-के अज तिरकट सवाई-सहा . [?]मागे का वह पाल जो उस रस्मे में तिय गन बदमकमल की झलकत 'माई -भारतेंदु म., बंधा रहता है जो मस्तूल के सहारे के लिये लगाया जाता मा० २, पृ० ४५५ । २ पली । भार्या । जोरू । है ( लश.)।