पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४४९

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सिखानु २०६३ तिलोचना y विशेष-हिंदुओं में मृतक संस्कार की एक किया जो मुरदे के तिलिस्मी-वि० [म. तिलिस्म +फा. (प्रत्य॰)] दे पा चुकने पर स्नान करके की जाती है। इसमें हाथ की "तिलस्मी' को। मंजुली में जल भरकर और उसमें तिल रालकर उसे मृतक तिली-सया की० [हिं०] १.दे० तिल'। २.३० दिल्ली। . के नाम से छोड़ते हैं। तिलीबु-संथा स्त्री० [हिं० तितली फा सक्षिप्त रूप] ३० "तितसी'। . महा०---तिलाजली देना - विलकुल त्याग देना । जरा भी संबंध तिलेती-सा श्री० [हि तेलहन+एवी (प्रत्य॰)] तेलहन को न रखना। ___खूटी पो फसल काटने पर बैत मे बच जाती है। विजांबु-संज्ञा पुं॰ [सं० तिलाम्बु] तिलाजली। विलेदानो-सक स्रो० [हिं०] दे॰ 'तिलदानी'। विवा'---मका पं० [अ०] सुवर्ण । सोना [को॰] । तिलेगू-सा बी० [वेलु• तेलुगु] दे० 'तेलगू। दिना-संवा पुं० [अ० तिलाम] वह तेल जो लिगेंद्रिय पर उसकी तिलोक-सपा पुहि०] विनोक', शिपिप्तता दूर करने के लिये लगाया जाय! जिगलप । २ तिलोकपति-सया पुं० [सं०ग्रिलोकपति] विष्णु। उ.-तुलसी ३. तिल्ला' विसोक है तिलोकपति गणे नाम को प्रताप पात विवित है तिक्षाक-संगा पुं० [म. तलाका१ पति-पली-संबंध का मंग। स्त्रो पग में।-तुलसी (शब्द०)। - पुरुष के नाते का टूटना। तितोकी-संगापु[सं० त्रिलोको इस्कीस मात्रामों का एक उपजाति कि०प्र०-देना। लेना। थंद जो प्लवंगम पौर पद्रिायणी मेल से बनता है। इसके विशेष-ईसाइयों, मुसलमानों प्रादि में यह नियम है कि प्रत्येक परणपत में लधु गुरु होता है। पावश्यकता पड़ने पर अपनी विवाहिता ली 8 एक विशेष तिलोचन--संशा पुं० [हिं०] दे॰ 'वितोरन' । " नियम के अनुसार संबंध तोड़ देते हैं। उस दशा में ली पोर तिलोचमा-संसपी० [सं०] पुराणानुसार एक परम पवती भप्सरा “पुरुष दोनों को अलग मसग विवाह करने का अधिकार हो विपके विषय में यह कहा जाता है कि ब्रह्मा ने ससार भर पाता है। सब उत्तम पवार्यों में से एक एक तिव मच लेकर इते यो०-तिलाकनामा। बनाया था। २ परित्याग । त्याग देना । छोड़ देना । १०-याहि तिसाक याहि विशेष-सकी उत्पत्ति हिरण्याक्ष सुदपौर पद नामक जो खोवे ।-धरण बानी, पृ० १६१० दोनों पुत्रों के नाम के लिये हुई थी जिन्होंने बहुत ठपस्या विनाकार-वि० [प्र. तिला+फा० कार (प्रत्य॰)] सोने ही फरक पडवर प्राप्त कर लिया था कि हम लोग किसी दूसरे चित्रकारीदाला। न.-पाच मुद्दत के हैं देहली के फिरे दिन के मारने से न मरें, मोर यदि मरें भी तो पापक्ष में ही , या र। सस्त ताऊस तिलाकार- मुबारक होवे।-भारतेंदु सरकर मरें। इन दोनों भाइयो में बहत स्नेह पा पोर १. भा.२, पृ०७४७ । इन्होंने देवतापों तथा इद्र को बहुत पर रखा था। तितादानी-मंडा स्त्री॰ [हिं०] ३० "तिलदानी'। इन्हीं दोनों में विरोध कराने के लिये ब्रह्मा ने तिलोत्तमा की विलान-सहा [सं०] तिल की खिचरी। सृष्टि की पौर उसे सुप तथा एपसु के निवासस्थान विष्पा- विलापत्या-सका स्त्री० [सं०] काला जोरा। घर पर भेज दिया। इसी को पाने के लिये दोनों भाई पापस में लड़ मरे थे। दिलावा-मक्ष पुं० [हिं० तीन लावना, लाना] वह को जिसपर एक साथ तीन पुरबट पल सकें। तिलोदक-सज्ञा पुं० [सं०] वह तिल मिला मंजुमी पर जल षो पृतका विजावा-60०म० तलामहरात के समय कोतवाल मादि उद्देश्य से दिया जाता है। तिलांपली। उ.-पुत्र न , रहता, तो क्या होता कौन फिर देता पिंड सिनोदक । का पहर में गश्त लगाना । रौंद । -~करणा०,१०१६। तिलिंग-सा पु० [सं० तिलिङ्ग] एक देश का नाम (को०]। . तिसोरि@-सा स्त्री० [हिं० दे० 'सिलोरी'.-पियरि तिलोरि विलिंगा-सहा पुं० [हिं०] दे० 'तिलगा। पाव जलहसा। विरहा १ठिहिए कत नसा ।-जायसी. विलित्स-सका १० सं०] १ एक प्रकार का सौप जिसे गोनस भी ( गुप्त), पृ.३६३ । कहते हैं। २ मजगर (को०) । तिलोरी'-सया पी० [देश॰] एक प्रकार की मैना जिसे वेलिया तिलिया--सहा पुं० [स] १ सरपत। २ दे० 'तेलिया' (विप)। मैना भी कहते है। 1. पेट तिलोरी पो जल हंसा। सिरिस्म-सम [प्र.] दे० 'तिलस्म' [को०] । हिरक्ष्य पैठ विरह लग निसा।-बायसी (शब्द०)। विविस्मात-समम तिलिम्म का.व.] दे. तिल- तिलोरी-सा • [सं० तित+हि. पोरी (प्रत्य॰)] दे स्मात' [को०] तिलौरी'। ठिनिस्माती-वि० [म. तिलिस्मात + (प्रत्य॰)] ३. तिलोहरा-सा पुं० [ शा० ] पटसन का रेघा । 'तिलस्माती' (को०। तिलोछना-क्रि० स० [हिं० तेस+मोयना (प्रत्य॰)] योढ़ा