पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४५२

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विसिया २०६६ विहया तिसियासका स्त्री० [स० तृषित, प्रा. विसिय तषित। प्यासा। तिहाई-सज्ञा पुं० [सं०पि+भाग ] १. तृतीयाश। तीसरा भाग। उ.-या रहनी हैं पैकपर निपजे, विसियाँ मर संसारा। तीसरा हिस्सा। ---गोरख०, पृ० २१३ । तिहाई-सका खौ० खेत की उपज । फसल। (पहले खेत की उपज तिसी-वि० [हिं० तिस+ई(प्रत्य० ) ] उसी। उ०-लाहो का तृतीयाश काश्तकार लेता था, इसी से यह नाम पड़ा )। लेता जनम गौ तुय करे तिसी तोषी होई।-धो. रायो, उ.-नई तिहाई के प्रखुमा खेतन ज्यों ऊगत ।-प्रेमघन॰, पृ०४४। - मा०पु०४४) " . तिसु-सर्व० [सं० तस्य, हि. तिस ] उसको । उसे । उ०-पिनि “मुहा०--तिहाई काटना - फसल काटना । तिहाई मारी जाना= पाखिया तिसु पाया स्वादु । नानक बोले इहु बिसमाद।- फसल का न उपचना। । . प्राण, पु. १३४ । तिहाडा--सबा पुं० [हिं०] १ कोष । तेह । २ वैर। विगाह । उ.- तिसोल-सर्व० [हिं०] दे० तिस'। उ०-तक धीजो सोना तिसो हित सो हित रति राम सौ रिपु सो वैर विहाउ । उदासीन सर्व पातर वालो प्रेम ।-वौकी० ग्र०, भा॰ २, पृ.५। सो सरल तुलसी सहज सुमाउ।—तुलसी (शब्द०)। तिसूत-सया पुं० [?] एक दवा का नाम । • विहानी-पी० [देश०] एक बालिप्त लंबी और तीन मंगल चौडी तिसूती'-सचा श्री० [हिं० तीन+सूत ] तीन तीन सूत के ताने लकड़ी जिसका काम चुडिया बनाने में पड़ता है। बाने से बुना हुमा कपडा । तिहायत-सहा पुं० [हि० तिहाई (= तीसरा)] दो मादमियों झगड़े तिसती–वि. तीन तीन सूत के ताने बाने से बुना हुमा। , खै मलग एक तीसरा भादमी । तिसरेत । तटस्थ । मध्यत्य। विस्टा-संशा श्री० [हिं०] दे० 'तृष्णा'। उ०-नहि भोजन तिहायतर-वि० [हिं०] तीन गुना । उ०-जन रजब सुरता बनी नहि मास नही इंद्री की तिस्टा।-पलटु०, भा० १, पृ०५६ । लगी तिहाइत तेज।-रज्जव बानी, पृ०५। . तिस्ना-सच्चा श्री० [हिं० ] दे॰ 'तृष्णा'। उ०--काम क्रोष तिहाना-वि० [सं० तृपित ] १ प्यासा होना। २. प्रतृप्त होना । तिस्ना मद माया। पाँचौ पोरन छाइहि काया। जायसी र छाड़ाई काया 1-जायसी उ०--तवहुँ फिछु. पीता कि रहता . तिहाय । -प्राण, • (गुप्त); पृ० २०४ । विना-----सज्ञा श्री० [सं० ] शखपुष्पी। तिहारा-सर्व० [हिं०] ३. 'तुम्हारा। , . तिस्स-सज्ञा पुं० [सं० तिष्य ] राजा पशोक के सगे भाई का नाम । तिहारो -सर्व हिं. दे. तुम्हारा' । उ०---ौर तुम तो काहू तिह -सवा स्त्री० [हिं०] तिया । ली। उ.--पदनह बन्न-ज्यों पाय . के घर जात. मावत नाही। मोर पाज तिहारो पावनो कैसे पिल्ल । विह नाह पिष्ष ज्यों सुभग सिल्ल ।-पु० रा., ३॥४६॥ भयो।-दो सौ बावन०मा० २, पु०६३।" तिहत्तर वि० [सं०.निसप्तति, पा० तिसत्तति, प्रा० तिहत्तरिमो तिहारी-सर्व [हिं०] दे०, 'तुम्हारा'। उ०—हो.पिय, यह कल गिनती मे सत्तर से तीन मधिक हो । तीन ऊपर सत्तर 1 -- गीत तिहारी। महा मनिल के वान पनिवारौ।-नद० ग्रा, तिहत्तर-सधा पु०१ सत्तर से तीन मधिक की सरूपा । २ उक्त : पु० ३२.। . . . . .---"", - सत्यासूचक मक को इस प्रकार लिखा जाता है.-७३। तिहानी-समस्त्री० [देश॰] एक प्रकार की कपास की वोड़ी। तिहदा-सा पुं० [हिं० तीन+प्र० हद्द ] वह स्थानः जहाँ तीन हदें तिहावा-मुज्ञा पु० [हिं० तह (गुस्सा, ताव)] १ क्रोध । कोप । मिलती हो। २. विगाड़ ! अनदन । तिहरा'-वि० [हिं०] दे० 'तेहरा'। तिहि-सर्व० [हिं० ] दे० 'तेहि' । उ-कालीदह सों पारि ल्याय तिहरा'-~-सदा श्री० [देश॰] [ श्री० पल्पा तिहरी ] दही जमाने या नाच्यो तिहि सिर पर।-प्रेमघन॰, भा॰ १, पृ० ६३ । .. दुध दुहने का मिट्टो का वरतन। तिहों—वि० सर्व० [हिं० ] ३० तेहि' । उ०—मतरजःमी साँवरी, तिहराना-क्रि० [हिं० तेहरा ] (किसी वात या काम को) तीसरी विहीं बेर गयो माइ।-नद० म०, पृ. १! .... बार करना । वो वार करके एक बार फिर भोर करना। विहीब-सर्व | हिद० तेहि 150-पटुली फनक की तिही विहरी'-वि० बी० [हिं०] दे० 'तेहरी । ___वानक की बनी मनमोहनी - नंद० म०, पृ० ६७५ 1.... तिहरी–समा श्री-[हिं० तीन+हार ] तीन लडो की माला। तिलोक-सा पुं० [ हि तीन+है ( प्रत्य.)+पोक.] तीन-लोक तिहरीसमा कां० [हिं० ती ? + हडी ] दूध दुहुने या दही जमाने स्वर्ग, मत्यं, पाताल । २०-राम हा तिहलोक समाई । कम का मिट्टी का छोटा वरतन । - ~- भोग भी खानि रहाई ।घट०, पृ. २२२ । तिवार--सश • [१० तिथिवार] पर्व या उत्सव का दिन । त्योहार तिहूँ-वि० [हिं० तीन + हूँ (प्रत्य॰)] तीन । तोनोने, तिहूँ लोक । वि० दे० 'त्योहार। - . .. वियनसचा पुं० [हिं० 1 दे० 'त्रिभुवन' उ-करिम विनति तिहवारी-सचा की• [हिं०] दे त्योहारी'। ... सौ ए मायव जन्हि बिनु तिहयन तीत ।-विद्यापति, पृ०.१६६ तिहा-सया पुं० [स० तिहन्] १. रोग। २ चावल । ३ घनुप । ४. तिहया--सपा [हिविहाई ] १ तीसरा भाग । तृतीयाच । २० अच्छाई । सद्भाव (को०] 1. 2... तबले प्रदंग मादि की वे तीन पापं जिनमे से प्रत्येक थाप