पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४५३

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1ि २०६४ खोक्षणमा अंतिम या समवालें ताल को तीन भागों में बांटकर प्रत्येक भाग विशेष—इनका ध्यान कृष्णव, लबोदरी मोर एक जटाधारिणी पर दी जाती है और जिसकी अंतिम थाप ठीक समय पर है । इन पूजन से प्रमोट का सिद्ध होना माना जाता है। पडती है। तीक्ष्णदोरी-समझी [सं०] बंसलोपन । .. विहन-म [हिं०] ३० तिन' । उ.-तिह न के मरत नहि । तीक्ष्णगध-सहा पु० [सं० तीक्ष्णगन्ध] १ सहिजन का पेड़ । २. ना मुएउ बाजे गहि बनन सिघाएउ')-मकवरी०, पृ०६६ । लान तुलसी।३ लोबान । ४. छोटी इसायवी । ५. सफेद 49 श्री.[सं० स्त्री] १ ली। पौरत। उन्हीं कर तुलसी। कुदुरु नामक गधद्रव्य । ___मावत तो इतै सखी लियाई घेरि |---स० सतक, पृ० ३७१ तोपग पशा पुं० [सं० तीक्ष्णगन्ध] सहिश्न! जोरू । पत्नी । ३ मनोहरण छर का एक नाम ।' भ्रमरा- तीक्ष्णगंधा-यश डी. से.तीक्षणान्धा] १. श्वेत वच। सफेद वली । नलिनी। व। २. कपारी का पक्ष । ३. राई। ४ जीवंती। ५. वोअवा-याची. [सं० तृणान्न शाक । माजी । तरकारी। छोटी इलायची। वोकरा-सा पुं० [दश०] बीज से फूटकर निकला हा प्रकुर ।। मंबुमा। - । - तीक्ष्णतंदुला---सना स्त्री० [सं० तीक्ष्णतण्डला) पिप्पली । पीपल । तोकुर-सहा पुं० [हि तीन कुरा( प्रश) फसल को वह वटाई वीक्ष्णता-सका स्त्री० [सं०] तीण होने का भाव । तीव्रता। तेषी। . जिसमें एक तिहाईपमा जमींदार मौर दो तिहाई काश्तकार तोणताप-सपा पुं० [सं०] महादेव । शिव । लेता है। विहाई। तीक्ष्णतेल-सा पुं० [सं०] दे० 'तीक्ष्यतेल' । वीण-वि० [सं० तीक्ष्ण] दे० 'तीक्ष्ण' ! तीक्ष्णतल-सबा पुं० [. . रास। २ सेहुँ का दूध । ३. वीचना-वि.स. तीक्षण] २० 'तीक्ष्ण'। उ०-पायस किय तीक्षन मदिरा । थराम । ४. सरसों का तेल । . मतिय सेस मत्थ अगभीन । -१० रासो, पृ०३। तीक्ष्णत्व-सक्षा पुं० [सं०] दे० 'तीक्ष्णता'। उ.--इन दोनों में तीक्ष्ण-वि० [सं०] १ तेज नोक या धारवाला। जिसकी धार साधारण धर्म कपिलत्व या तीक्ष्णत्व के होने पर यह उपचार या नोक इतनी चोरी हो जिससे कोई चीज कट सक्ने । जैसे, होता है कि पग्नि माणवक है। सपूर्णा०, पमि. , तीक्ष्णं पाण।२ तेज। प्रखर । ती बसे, वीण शौपष, पु० ३३६ । तीक्ष्ण बुद्धि । ३ उग्र । प्रघड । तीखा । जैसे, तीक्षण स्वभाव। तीक्षणदंत-सधा . [सं० तीक्ष्णवन्त] वह जानवर जिसके दात बहुत ४. जिसका स्वाद बहुत चटपटा हो। सेज या तीखे स्वाद- तेज या नुकीले हो। वाला। ५ जो (वाक्य यो बात) सुनने में प्रप्रिय हो । कर्ण- तीक्ष्णदंष्ट्र-सज्ञा पुं॰ [सं.] बाघ । , द। से, तीक्ष्ण वाक्य, तीक्ष्ण स्वर । ६. मारमत्यागी। तीयहर-वि० तेज वातावाला । जिसके दौत तेज हो। "निरालस्य। जिसे 'मालम्य न हो। ८ जो सहन न हो। तीक्षणाष्टि-वि० [सं०] जिसकी दृष्टि सूक्ष्म से सूक्ष्म दात पर पड़ती - हो । सुक्ष्मदृष्टि। तोय-सडा पुं० [सं०] १ उत्ताप । गरमी ।। २ विष : बहर । ३. तीक्ष्णधार-- सशा पुं० [सं०] खड्ग इस्पात ! लोहा । ४ युद्ध । लडाई। ५ मरण । मृत्यु । ६ तोक्षणधार-वि० जिसकी धार बहुत तेज हो।। शास्त्र । ७ समुद्री नमक ! फरकच । ८ मुझक । मोक्षा! नीचयपत्र'- ० [सं०], १.तुबुरु । धनिया। २ एक प्रकार वरसताभ बढ़ताग।१० चय। चाव।११ महामारी । - का गन्ना ।

  • मरी। १२ यवक्षार । यातार । १३ सफेद कुशा। १४ मीनाप-वि० जिसके पत्तों में तेज धार हो।

कु दुर पोर। १५. योगी ।१६ ज्योतिष में मूल, पानी, ज्येष्ठा, पश्विनी पोरीवती नक्षत्र में बुध की गति। तीक्ष्णपुष्प-सरा पु० [सं०] लवग । लोग। - तांदणकटक-मश पुं० [सं० तीक्षण कराटक] 1 धतुरे का पेड़ । २ तीक्ष्णपुष्पा-सपा स्त्री० सं०] फेतकी। : पल का पेड़ । ३ गुदी का पेड़ १ ४ करील का पेड।। तीक्ष्णप्रिय-सा पुं० [सं०] जो । पारणकटका-- श्री. म.नौवकण्टका एक प्रकार का पक्ष तीदणफत'-सपा स०] बुरु। धनिया। जिसे फकारी कहते हैं, तीक्ष्यफल:--वि० जिसका फल का भा हो [को॰] । वादणकदा ० [सं० तीक्षणकन्दैपनाह । प्याज। तीक्ष्णफला-सा सी० [सं०] राई। । तोचणक-मा ५० [म०] १ नोसा वृक्ष । २. सफेव सरसो। . तीक्ष्पबुद्धि-वि० [सं० 1 जिसकी बुद्धि बहुत तेष हो। कुशाग्र तोरणकर्मा'—सा ई० [सतीशमन्] उत्साही व्यक्ति को। बुद्धिवाला । वुद्धिमान् । वीक्षणकर्मा-वि. उत्साही [] वीक्षणमंजरो-सबा श्री० [सं० तीक्षणमारी] पान का पौधा। वीपकल्क-सहा पुं० [म.] तु वर वृक्ष । तीक्ष्णमार्ग-सा पुं० [सं.] तसवार [को०] ।' . . क्षणकाता-सा सो० स० तोफामा कालिकापुराण में अनु- तीक्ष्णमल'संवा [सं०] १ कुतजन । २. महिषन । सार तारा देवी का नाम । तीक्ष्णमूल-वि० जिसकी जा में बहुत तेज गंध हो । ' मसा।