पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४६८

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तुरव २११२ तुरापाट् तरत-प्रय० [सं० तुर] पीन। पटपट । तत्वाण । १०-दूनी रिश- तरसी -सका श्री० [हिं० 1 दे० 'तुलसी'। ३०-हरि परन वत तुरत पचावें।-भारतेंदु प्र., मा० १. पु. ६६२। तुरसिय माल । धन पति सुक्क विसाल ।-पु. रा०, यौ०--तुरत फुरत - घटपट । २।३३। तुरतुरा- व ०स्वरा] [बी० तरतरी] तेज। जल्दबाजी तुरहा--समा खी० [सं०तुर ] फुककर बजाने का एक यात्रा जो २ बहुत जल्दी जल्दी बोलवेवाला । बन्दी वादी पाठ मुकी मोर पतसा पोर पीछे की मोर पौड़ा होता है। करनेवाला। उ.--वाजत तास पृदग झाम सफ, तुरही तान नफीरी ।- तुरतुरिया-वि० [हिं॰] दे० 'तुरतुरा' । कबीर २०, भा०२, पृ०१०५। विशेष--यह वाजा पीठल प्रादि का बनता है और टेढ़ा सौधा तररा -प्रय० [हिं० दे० 'तरत'। 30-फढ़ियै सुवीर वढ़ियै कई प्रकार का होता है। पहले यह साई मेनगारेमादिके तुरत्त ।-१० रासो, पु०५३। तुरन-क्रि० वि० [हिं० ] दे॰ 'तूणं' । उ०-सहमा, सत्वर, रम, साथ बजता था। अब इसका व्यवहार विवाह पादि में होता है। तुरा, तरन बगे के साथ।नद००, पृ० १०७ । तरना -सधा पु० [सं० तरुण] तषणावस्था । पानी । उ०-~-पासा . तुरा:--ममा बी० [म. स्वरा] २० 'त्यरा' । उ०-तीखी तुरा तुमसी कहतो पेहिए उपमा को समाउ न पायो । मानो प्रतच्य काता तुरना काता, दिग्धे कातन बाय |--कीर श०, परम्पत की नम लीक नसी फपि यों पुकि घायो।--तुलसी पृ० ४८। प्र.पु. १६६। तुरनापन-पहा . [ हि तुरना+पन (प्रत्य०) ] तणावस्था। जवानी। 30-तरनापन गह बीत बुढ़ापा मान तुलाने। तुरा-सका पुं० [सं० तुरग] पोटा। कापन लागे सीस पचत दोउ परन पिराने ।-कवीर ए तुराई -सभा श्री• [सं० तूस ( ई)। तूनिफा (गहा)। कई भरा हुमा गुपगुदा विद्यावन । गहा । तोपाफ | उ.-(क) नींव तुरपई-मझा औ• [हिं. तरपना ] एक प्रकार की सिलाई । तुरपन । बहुत प्रिय सेज तराई । लमह न भूप कपट चतुराई।-तृससी (शब्द०)। (ख) विपिप वपन, उपधान, तराई। छोरफेन मृदु तुरपन--सपा यौ• [हिं० तुरपना ] एक प्रकार की सिलाई जिसमें पिसद सुहाई।-तुलसी (चन्द०)। (ग) कूस फिमलय साथरी जोहों को पहले लबाई के बल टॉक डालकर मिला लेते हैं, सुदाई । प्रभु संग म फिर निकले हुए छोर को मोड़कर तिरछे टौकों से जमा देते नोज तुराई । -तुलसी (शब्द.) । है । लुढ़ियावन । पखिया का उलटा। तुराट -सा पुं० [म. तुरग पोठा । (हि.)। तुरपना-क्रि० स० [हिं० तर ( = नीचे)+पर (=कार)+ना तुराना@'-क्रि० प्र० [सं० तुर] पचराना । प्रातुर होना । (प्रत्य॰)] तुरपन की सिलाई करना । लुढ़ियाना । " तुराना --क्रि० स० [हिं०] दे॰ 'तुधाना'। तुरपघाना-क्रि० स० [हिं० तुरपना का प्रे० रूप ] दे० 'तरपाना'। तुराना'-कि०म० [हिं०] २० 'ना' । 30-फिरत फिरत सब परन तुराने ।-फवीर य०, पृ० २३०। तुरपाना-क्रि० स० [हिं० तुरपना का प्रे० रूप ] तुरपने का काम दूसरे से कराना। तुरायण - समा० [सं०] १ एक प्रकार का पक्ष को चैत्र शुक्ला ५ पौर वैशाख शुक्ला ५ को होता है। २ प्रगम । विरनि । तरवत-सपा श्री० [प्र. तुबंत ] कन। उ०-पासना तरबत १ ___ मेरे शापियाना हो गया। मारतेंदु १०, भा०२, पृ०५५० । मनाएक्ति (को०)। तरम-मश . [ सं० तूरम ] तरही। तुराव -सया पुं० [हिं० तुग) बल्दो । जीवना। 30-गवना पाला तुराव सगो है। जो कोउ रोवै वाको न हंस रे।- तरमती-सवा श्री[ तु० तुरमता ] एक चिडिया जो चाज की तरह क्वीर श०, भा० २, पृ० ६८। शिकार करती है। यह माज से छोटी होती है। तुरावत्-वि० [म० स्वरावत्] [ी तुरावनी] वेगाना । वेगयुक्त । तरमनी-सशा खौ• [ देश०] मारियल रेतने की रेती। तुरावती-वि० स्यी० [सं० त्वरावती] वेगवालो । झोक के साथ बहने- तरय- संशा पुं० [सं० तग ] [ो तुरी ) घोटा। उ०-सायक वाली। उ०—(क) विषम विपाद तुरापति धारा। भय चाप तुमय पनि जति हौ लिप सवै तुम जाहू ।-तुर भ्रम भंवर मवर्त पपारा |-तुलसा (सन्द०)। (ख) ममृत ( शव०)। सरोवर सरित अपारा। ढाईं कुल तरावति पारा।-२० तररा-सा पु० [हिं०] ३० 'तुरी' । उ0--तापर तुररा सुमत दि. (सन्द०)। पति कहत सोम कवि नाथ ।-पु. रा०, १ । ७५२ । तुरावधा--वि० [हिं० तुरा ] स्वरावान् । शीघ्रतायुक्त । उ0- तुरल-सा पुं० [सं० तुरग ] घोड़ा । १०-वणिया गजा तक सिर सामंत सितुंग तुरग तुशवक्ष रावध पावध पग्नि झरे।- वाना । मिजया तुरल रखी पसमानौ ।--रा००, पृ०२२५ । पू० रा०, १३११३०॥ तुरस -सका स्त्री० [ देश ? ] ढाल ।.३०--तरस फट्रि कटि तुरातान्-वि० [सं० स्परावान] २० 'तुरावत्। गुरज मुकुठ करि रेप रिपेसर !-पृ० रा. ५। ५१। तुरापाट्-सक ० [सं०] ।