पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४६९

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तुंगसाह रासाह-संश पुं० [सं०] 1 इद्र । २ विष्णु (को०)। सकते हैं, वह पश्यती है। फिर जब वाणी यूनिगत होकर चरि-सबा नी• [सं० ] दे॰ 'नुरी' [को॰) । घोलने की इच्छा उत्पन्न करती है, तब उसे मध्यमा है। तरि-सवं[हिं०1दे० 'तुम्हारा । उ०-सात जनम तुरि घर मत में जब वापी मुह में माफर उज्वरित होती है, तब वसौं एक वसत मकलक ।-पु० रा०, २३।३०। उसे पैसरी या तुरीय कहते हैं। उरित-कि० वि० [हिं०] दे० 'तरत'। उ०-गंगाजल कर कलस वेदातियों ने प्राणियों की चार अवस्थायें मानी है---जापत, सौ तरित मंगाइय हो।--तुलसी०प्र०, पृ०३ स्वप्न, मुक्ति पोर तुरीय। पह धोथी या तुरीयावस्पा मोक्ष है जिसमें समस्त भेदज्ञान का नाश हो पाता है और मारमा तरिय -सपा पुं० [हिं०] दे० 'तुरग' 1 उ०-पपरेत तरिय मनुपहित चैतन्य या ब्रह्मचैतन्य होती है। पपरत गज्ज । नर कस्से बगर सिलह सज्ज। --. रा०, १४४१ तुरीयवर्ण-सधा पुं० [स] चौथे वर्ण का पुष । शूद्र । तरिय - [हिं०1० तरीय'। उ०-सूखित कई तुरीयावस्था-सया पुं० [सं० तुरीय+भवस्था ] वेदातियों पनुसार विहि छिन मब ऐसें । तुरिय प्रवस्य पाहमुनि जैसे !-नंद. चार पवस्यापों में से प्रतिम । वि० दे० 'तुरी। .-सी ग्रं॰, पृ. ३०२। प्रकार तुरीयावस्था (द दास ) नाम की कविता में उन्होंने ब्रह्मानुभूति का परान इस प्रकार किया है।-चितामणि, वरिया--सहा श्री-[हि. 12. 'तुरीय'। उ०-व्योम पनस्त भा०२, पृ०७२। घर वो बरे मोहरे माहि। सुदर साक्षी स्वरूप तरिया तुरुक -सपा पुं० [हिं० ] दे० 'तुम'। विशेपिये।-सुदर० ग्र०, भा॰ २, पृ० ५६८। तरुकिनी-सका श्री० [हिं० तुरुक] तुर्क जाति की स्त्री । तुहिन । तुरिया @ [हिं० ] दे० 'तोरिया'। उ.-वरप नाप तुकिनी पान किछु काहन भाव।--- तुरियाठीव -वि० [ मै० तुरीय+मतीत ] जो तुरीयावस्था से कीतिक, पृ० ४२१ प्रागे हो। चतुर्य अवस्था से मागेवाला। उ०—तुरियातीत वरुप-सम पु० [प.ट्रप) ताश का तेत जिसमें पोई एफ रण है चित्त जब इक भयो रेन दिन मगन है प्रेम पापी ।-पलद्द, प्रधान मान खिया जाता है। इस रग माछोटे से छोटा पत्ता मा० २.१०२६। दूसरे रंग के बड़े से बड़े पत्ते को मार सकता है। तुरी'-सपा नी [सं०] १ जुल्लाहो का तोरिया या तोडिया नाम तुउपर- [म. ट्रप (सेना)] सवारों का रिसासा। सेना फा मोजार । २ जुलाहाँ की कूची। हत्यी। ३ चित्रकार का एक खत । रिसाला ।। की तूलिका (को०)। ४ वसुदेव की एक परनी का । तरुप-सभा सी० [हिं॰] दे॰ 'तुरपन' । उ०-फसमसे फसे उकसेक नाम (को०)। से उरोजन पे उपट िकयुकी की तुरुप तिरीछी येछ ।- तुरी-वि. वेगवाली। पजनेस०, पृ०४। तुरी-सका सी० [प्र. तुरय (-घोड़ा)। १ घोड़ी। उ०--तुरी तुरुपना--कि० स० [हिं०] दे० 'तरपना'। अठारह लाय प्रमौरी पल्ख की । दिया मर्द ने छोप मास तरुष्क-सपा पुं० [सं०] १कं जाति । फिस्तान का रहनेवाला सब ससक की। -पलटू०, मा० २, पृ. ७६। २. मनुष्य । लगाम । बाग। विशेष---भागवत, विष्णुपुराण यादि में तुरुफ पाति का नाम तुरी'-सपा पुं० [ हिJ१ घोडा । २. सवार । पश्वारोही। माया है जिससे अभिप्राय हिमालय. उत्तर पश्विम के तरा-सयाम्प्रीमतर्गफना का गुच्या । २ मोती की निवासियों ही से जान परता है। उक्त पुराणों में तुम लड़ों का भवधा जो पगडी से पान के पास सरकाया राजगण पृथ्वी मोग करने का उल्लेख है। पासरित्सागर • जाता है। पौर राजतरगिणी में मो इस रात का उल्लेख है। तुरो-या स्त्री० [हिं०] ३० 'तुरही। २ वह देश बहा तुक्क पाक्ति रहती हो। तुर्किस्ताम। ३. एक तुराण'-मापुं० मतगेय 1 पीपी भवस्या । ३०-प्रेम तेल गंधद्रव्य । लोवान । ४ तुमिस्तान का पोड़ा। तुरी बरी, भयो ब्रा उजियार ।-- दारया बानी, पृ०६७। तुरुन्कगोड़--सचा पुं० [सं० तुरुक्ष्फ+गोड] दे० 'तुरगगोर'। दुरायंत्र-सपा पु० [सं० तगयन्त्र] वह यंत्र जिससे सूर्य की गति तरुही-समा श्री० [सं० तूर या तपं] २० 'तरही। तर - पु. [हि० दे० 'तुरय'। उ०जीवन तुरे हाय गति तुरीय-वि० [सं०] पर्थ ! पोषा। लोधे। वहाँ जाइ सह चार न दी ।जामसी नं. (गुत), विरोप-वेद में वाणी या वाक के पार भेद किए गए है- प० २३४। परा, पश्यती, मध्यमा मौर वैखरी। इसी वैखरी वाणी को धागोको तरेयान-wth. [हिं०..तुरई। 30-~-सदा तुरेमा फुले तुरीय भी रहते सायण के मनसार जो नादात्मक धारणी नही, सवा न साइन होय !-मुक्त मि०५०.प.१५ मुलाधार से उठती है और जिमता निरूपण नहीं हो सकता तुके-- सया पुं० [त०] १. किस्तान का निवासी। २स्मा है, उसका नाम परा है। जिसे विष योगी योगी जान विवामी 1 टफी का रहने वाला। __जानी जाती है।