पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४७०

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तुरु तुर्कचीन तुर्कचीन-सना पु० [त ० तुकं + फ़ा. चीन] सूर्य (को॰] । यौ०-तुर्रा तरार-सुंदर बालो की लट । तुकेमान-सज्ञा पुं० [फा० तुक] १ तुर्क जाति का मनुष्य । २ तुर्की २ पर पा फुदना जो पगड़ी में लगाया या सोसा जाता है। घोड़ा जो बहुत बलिष्ठ और साहसी होता है। कलगी। गोथवारा। ३ बादले गुच्छा पो पगडी के कपर तकरोज-सज्ञा पुं० [तु० तुक + फा. रोज] सूर्य को०] । लगाया जाता है। तर्फसवार-संज्ञा पुं० [तु० तुकं +फा० सवार] एक विशेष प्रकार मुहा०-तुर्रा यह कि - उसपर भी इतना पौर। सबके उपरात का सवार। इतना यह भी। जै, ये घोड़ा तो ले दीप, तुर्रा यह कि पिशेष-ऐसे सवारों को सिर से पैर तक तुर्ती पहनावा पहनाया खर्च भी हम दें। किसी बात पर तुरा होना(1) किसी वात में कोई पौर दूसरी बात मिलाई वारा। (३) यथार्थ जाता था। बात के पतिरिक्त और दूसरी बात भी मिलाई जाना । हाशिया तुर्कानी-संज्ञा पुं० [हिं० तुरुक] दे० 'तुफिन' । १०-सुनत करा चढ़ाना। मुसलमानहि कीन्हा । तुर्कानी को का कर दीन्हा ।-फबीर ४ फूलों की लड़ियों। गुच्चा जो दुल्हे के कान पास लटकता सा०, पृ० ८२२ । रहता है। ५ ठोगी पावि मे लगा हुमा दना। ६ पक्षियों तर्किन--सका डी० [तु. तुक+हि. इन (प्रत्य॰)] १ तुर्फ जाति के सिर पर निकले हुप परों का गुच्छा । चोटी। शिखा। ७ की स्शी। उ०---झौंसी थी तो तुर्किन, वन गई पदीरिन । हाशिया। किनार । ८ मकान का छज्या। मुहासे का खुदाराम, पृ० १४ । तुकं को स्त्री। वह पल्ला जो उसके ऊपर निकला होता है। १०. गुलतुर्रा । तुर्किनी-सज्ञा खो० [तु• तुर्क + हिं० इनी (प्रत्य॰)] दे० 'नुफिन' । मुर्ग के नाम का फूल। पटाघारी। ११. कोडा। चाबुक । तुर्किस्तान -सज्ञा पुं० [तु० फा०] तुझौ का देश ! तुर्की । टर्की [को०)। मुहा०--तुर्रा करना = (१)मोड़ा मारना । (२) कोड़ा तुर्की -वि॰ [फा० तुकं] तुर्किस्तान का। तुर्किस्तान में होनेवाला। मारकर घोड़े को बढ़ाना। से-तुर्की घोड़ा । १२ एक प्रकार की बुलबुल जो ८ या ६ गुल लबी होती है। ती--सज्ञा खौ० २ तुनिस्तान की भाषा। २ तुको फी सी ऐंठ । विशेष-यह जाहे पर भारतवर्ष के पूर्वीय भागों में रहती है, पकड़ । गर्य। पर गरमी में चीन और साइवेरिया की मोर पली जाती है। मुहा०--तुर्की तमाम होना = घमर पाता रहा। शेखी निकल १३ एक प्रकार का बढेर । डबकी। पाया। तुर्रा-सचा पु. [ अनु० तुल तुन (=पानी डालने का शब्द)] भांग त -सज्ञा पुं० १ तुर्किस्तान का प्रादमी। २ तुकिस्तान का घोड़ा। प्रादि का घट । पुसको 1- तर्की टोपी-संज्ञा बोत. ती+हि. टोपी] एक प्रकार की क्रि० प्र०-देना ।-लेना। टोपी जो लाख, गोल, ऊँधी पौर झन्वेदार होती है। मुहा०- तुर्रा चढ़ाना या जमाना = भाग पीना । विशेष—इस टोपीको तर्फ पोग पहनते थे। इसी से इसका तरी:-वि० [फा० तरह ] अनोखा । प्रभुत । नाम तुर्की टोपी पड़ा। तुर्वेणि-नि: [सं०] १ फीला । क्षिप्र । २. विजेता । शामों को तते -पव्य. [६] ३० तुरत'। २०-जो अनइच्छा होय मम नट या क्षतिग्रस्त करनेवाला [फो०] । नुर्त होत है नाश ।-कवीर सा., पृ. २५५ । स- पुं० [सं०] राधा ययाति एक पुत्र का नाम को यो०- तुतं फुर्त चस्पी में । शीघ्रतापूर्वक । देवयानी के पमं सत्पन्न हुभा था। तुरी--संज्ञा पुं० [सं०] अकुश का मारनेवाला भाग जो सामने सीधी विशेष-राजा ययाति ने विषय भोग से तृप्त न होकर जब इससे नोक की मोर होता। हता। इसका यौवन मा था, तब इसने देने से साफ इनकार कर यो०-जर्फरी तुफरी =पात का वठक्कर । प्रलाप । दिया था। इसपर राजा ययाति ने इस शाप दिया था कि तुर्य-वि० [सं०] पोथा । चतुथ । तू मधमियों प्रतिलोमापारियों प्रादि का राजा होकर भनेक यो०-तुय गोक्ष = एक कालसूचक यत्र। तुर्यवाट् पार साल प्रकार के कष्ट भोगेगा। विष्णुपुराण मनुसार तुर्वसु का का वछहा। पुत्र हुमा बाहु, बाह का गोभानु, गोपानु क ाय, प्रेयांब का करथम और करधम का मरुत्त । मत्त को कोई -सक्षा पु० तुरीयावस्था [को०)। सतापी, इससे उसने पुश्वशीय दुष्यंत को पुत्र ससे तुर्यवाह-सधा पुं० [सं०] चार वर्ष की वर्षिया या बछड़ा [को० । ग्रहण किया। तुयों-सशा खो० [*] वह ज्ञान जिसमे मुक्ति हो जाती है। तर्श-वि० [फा०] १ खट्टा । २ रुखा (को०) । ३. करा (को०)। तुरीय ज्ञान । ४ मयसन (को०)। ५ क्रूव । कुपित (को०)। तुर्याश्रम-सज्ञा पुं० [सं०] पतुर्थाथम । सन्यासाश्रम । तुशरू-वि० [फा०] तीसे मिजाजवाला। बदमिजाज। उ.- सुरों-संज्ञा पुं० [म.] १ धुंघराले बालों की लट जो माथे पर हो। तुशरुई छोड़ प्रौ तल्खगोई तर्क कर।-कविता को., भा. काकुल ४, पृ०१०। करी नुफरीना । तुर्य