पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४७१

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___ाई २११५ तुलसी वाई-सका सी० [फा० तुर्श + हिं० प्राई (प्रत्य॰)] दे॰ तुलना-सा स्त्री० [सं०] १ दो या अधिक वस्तुपो के गुण, मान मादि एक दूसरे से घट बढ़ होने का विचार । मिसान। सुशोना-कि.प्र. [ फा तुर्श से नामिक धातु ] खट्टा हो जाना। तारतम्य। ती- बी.फा. खटाई। अम्चता । २ रुष्टता । अप्र क्रि० प्र०-करना |-होना। ____सन्नता (को०)। २ पाटण्य । समता । परापरी । जैसे,—इसकी सूचना उरी साथ तांदा - श्री० [फा० ] घोड़े के दांतो मे कीट या मैस जमने नहीं हो सकती । ३ उपमा। ४ तौल । वजन 11५. यावा। का रोग। गिनती।६ उठाना । साधना (को०)10 माकना । कूचना । उल -वि० [सं.] दे० 'तुल्य' उ.-'हरीच' स्वामिनि धधि. अंदाब बगाना या करना (को०)। ८. परोषण करना(को०)। रामिनि तुल न जगत में जाकी । --भारतेंदु न, भा॰ २, तुलनात्मक-वि० [सं०] तुलना विषयक। जिसमें दो वस्तुमों की पृ००। समानता दिखाई पाय । उ.-मानस, मानपो, विकासशास्त्र वुलक-मा ५० [ से• ] राणा का सलाहकार । राजमत्री [को॰] । हैं तुलनात्मक, सापेक्ष ज्ञान ।-युगांत, पृ०१०। तलनी-पानी- [सं० तुचा तराज या कोटे की औली में सई तुलकना-कि० प. सं० तुल] बराबरी करना। समता करमा । २०-बालबा यहि में च मचाकरि को धो काम पोनों तरफ का बोहा। कत्ता सुपकी 1-प्रकवरी., पृ० ३५१ । तुलचुनी~का स्त्री० [देश॰] बल्दीबाजी। तुझ्छी- श्री. [हिं०] दे० 'सुनसी'। उ०-घरि परि तुलपाई-सा स्त्री० [हिं० तोपना, तुलना] १ तोलने की मजदूरी। सुमही वेर पुराण ।-पी० रायो, पृ.८१ २ पहिए को मापने फी मजदूरी। तुलन-सा • [सं०] १ बजन । तौल । २. तौलना। ३. तुलना तुलवाना-क्रि० स० [हि. तोबवा] [पंज्ञा तुनवाई] १. तौर कराना। वजन कराना। २ गाडी के पहिए की धुरी में घो, करना । समापता दिखावा [को०] । तेसमादि दिलाना । भौगवाना। दुखना --कि०म०[से. तुच] १ तोला जाना । तराजू पर अदाजा जारा ! मान का कुता जाना । तुलसारिणी-संशा स्त्री॰ [सं०] तरकस । तूणीर । [को०] । सयो०कि०-बाना। वलसी-ज्ञा स्त्री० [सं०] १ एक छोटा झार या पौधा जिसकी २ वो पा मार में पराभर उतरना। तुल्य होना । 10---सात पत्तियों से एक प्रकार की तीक्ष्ण गंध निकलती है। सगं अपवर्ग सुख धरिय तुक्षा इक प्रग। तुले न ताहि सकल विशेष—इसकी पत्तियां एक भगुल से दो अंगुल तक पनी मौर मिलि बो सुख लव सतसग ।- तुलसी (शब्द०)। ३ लवाई क्षिप हप गोड काट की होती है। फुप मजरीप किसी माधार पर इस प्रकार ठहरना कि प्राधार के बाहर में पतली सीको में लगते हैं। अफर रूप में बीज से पहले निकला हुमा कोई भाग अधिक बोझ के कारण किसी और दो दल फटते है। द्भिद् शास्त्रवेत्ता तुजसी को पुदीने की को झुका न हो। ठोक अदास के साथ टिकना । जैसे, किसी जाति में गिनते है। तुलसी अनेक प्रकार की होती है। गरम कीस पर छडी मादि का तुलकर टिकना । वाइसिकिल पर देशों में यह बहुत अधिक पाई जाती है। अफ्रिका मोर दक्षिण तुलकर बैठना। ४ किसी भस्त्र मादि का इस प्रकार हिसाब अमेरिका में इसके अनेक भेद मिलते हैं। ममेरिफा में एक से पलाया जाना कि वह ठीक लक्ष्य पर पहुंचे और उतना ही प्रकार की- तुलसी होती है जिसे ज्वर बड़ी कहते हैं। फसषी माघात पहुंचावै जितना हो। सघना । जैसे, तुलकर दुखार में इसकी पत्ती का काढ़ा पिलाया जाता है। भारत तलवार का मारना। ५. नियमित होना। बंधना। अदाज वर्ष में भी तुलसो कई प्रकार की पाई जाती है, जैसे, गध- होना । बचे हुए मान का अभ्यास होना । ३०--जैसे, दुकान तुलसी, श्वेत तुलसी या रामा, कृष्ण तुलसी या कृष्णा, वरी दारों के हाथ तुले हुए होते है, बितना उठाकर दे देते हैं, यह तुलसी या ममरी। तुलसी की पत्ती मिर्ष मादि के पाव प्राय ठीक होता है। भरना। पूरित होना । ७ पाड़ी से ज्वर में दी जाती है। वैद्यक में यह गरम, काई, दाहकारक, पहिए का मोगा जाना । ८ उद्यत होना। उतारू होना । दीपन तथा कफ, वात पौर कुष्ट मादि को दूर करनेवारी किसी काम या बात बिये विलफल तैयार होना । जैसे,-- मानी जाती है। वे इस बात पर सुले हुए है, कभी न मानेंगे। तुजसी को वैष्णव मत्यत पवित्र मानते हैं। शालग्राम ठाकुर मुहा०-किसी काम या बात पर सपना = (१) कोई काम करने की पूजा विश तुमीपत्र नहीं होती। चरणापत प्राधि

  • निये चद्यत रोमा। (२) जिद पकड़ लेना। हठ करना ।

में भी तुबमीदम बाबा बावा है। तुबसी की उत्पत्ति ३.--तोर + पिये भला किसको, तुम ए परतुनी संबंध में ब्रह्मावत पुराण में यह कथा है-तुपसी नामको हा बातें। -चोदे०, पृ. ३२ । तुमी हुई बातें कहा- एफ गोपिका गोषोक में राधा की सघी थी। एक दिन राषा ठिकाने की बातें कहना। पक्की बातें कहना। उ०- ने उरे कृष्ण के साप विहार करते देख पाप दिया कि द्र वाचन के लिये भला किसकी। तुल गए कह तुली हुई बातें। मनुष्य घरीर धारण कर । पाप के अनुसार तुलसी धर्मध्वज -पोले०, पृ. ३२। राजा की कन्या हुई। उसके रूप को तुलना किसी से नहीं