पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४७२

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तुलसीचौरा तुलसोद्वेषा हो सकती थी, इससे उसका नाम 'तुलसी' पड़ा। तुलसी ने भक्तमाल की टीफा में प्रियादास ने गोस्वामी जी का कुछ बन में बाकर घोर तप किया पौर ब्रह्मा से इस प्रकार वर वृत्तांत लिखा है मौर वही लोक में प्रसिद्ध है। तुलसीदास जी मांगा--'मैं कृष्ण की रति कधी तप्त नहीं हुई हूँ। मैं के जन्मसवत् का ठीक पता नहीं लगता। प० रामगुलाम उन्ही को पति रूप में पाना चाहती हूँ' ब्रह्मा के कपदानुसार द्विवेदी मिरजापुर में एक प्रसिद्ध रामभक्त हुए है। उन्होंने तुलसी ने शखा नामक राक्षस से विवाह किया। शखचून जन्मकाच सवत् १५८९ बतलाया है । शिवसिंह ने १५८३ को वर मिला था कि विना उसको स्त्री का सतीत्व भग लिखा है। इनके जन्मस्थान नि सबध में भी मतभेद है, पर हुए उसकी मृत्यु न होगी। बव शखचूह ने संपूर्ण देवतापों अधिकाश प्रमाणों से इनका जन्मस्थान चित्रकूट के पास राजा- को परास्त कर दिया, तब सब लोग विष्णु पास गए । पुर चामक ग्राम ही ठहरता है, जहाँ अबतक इन हाथ की विष्णु ने खचूड़ का रूप धारण करके तुलसी का सतीत्व लिखी रामायण क. कुछ परा रक्षित है। तुलसीदास के माता नष्ट किया। इसपर तुलसी ने नारायण को शाप दिया पिता के सबध में भी कही कुछ लेख नहीं मिलता। ऐसा कि 'तुम पत्थर हो पापों'। जब तुलसी नारायण पैर प्रसिद्ध है कि इनके पिता का नाम पात्माराम दुवे पौर माता पर गिरफर बहुत रोने लगी, तब विष्णु ने कहा, 'तुम यह का हलसी पा। पादास ने अपनी टीका में इनके संबंध में शरीर छोपकर लक्ष्मी के समान मेरी प्रिया होगी । तुम्हारे कई बातें लिखी है जो अधिकतर इनके माहात्म्य भौर पमत्कार पारीरले गरकी नदी पौर करा से तुलसी पक्ष होगा। तब को प्रकट करती है। उन्होंने लिखा है कि गोस्वामी जी से घरावर शालग्राम ठाकुर की पूजा होने लगी भोर तुषसी युवावस्था में अपनी स्ली पर परयंत प्रासक्त थे। एक दिन दल उनी मस्तक पर पढ़ने लगा। वैष्णव तुषसी की लकड़ी ली बिना पूछे पाप के घर चली गई। ये स्नेह से व्याकुल की माला भौर कठो धारण करते हैं। बहुत से लोग तुलसी होकर रात को उसके पास पहुंचे। उसने इन्हे विषकारा-- शालग्राम का विवाह बड़ी धूमधाम से करते हैं। कार्तिक 'यदि तुम इतना प्रेम राम से करते, तो न जाने क्या हो जाते'। मास में तुलसी की पूजा घर धर होती है, क्योंकि कार्तिक स्त्री की वात इन्हें लग गई और ये पट विरक्त होकर काग्री को अमावस्या तुलसी के उत्पन्न होने की तिथि मानी जाती है। चले पाए । यहाँ एक प्रेत मिला। उसने हनुमान जी का पता २ तुलसीपल । बताया जो नित्य एक स्थान पर ब्राह्मण के वेश मे कथा सुनने तुलसीचौरा-सा पुं० [स] यह वर्गाकार उठा हुमा स्थान जाया करते थे। हनुमान जी से साक्षात्कार होने पर गोस्वामी जिसमें तुलसी लगाई जाती है । तुलसी व पावन । जी ने रामचंद्र के दर्शन की अभिलाषा प्रकट की। हनुमान जी तुलसीदल-सपा पुं० [सं०] तुलसीपत्र । तुलसी के पौधे का पत्ता। ने इन्हे चित्रकूट जाने की मात्रा दी, जहां इन्हें दो राजकुमारो विशेष-वैष्णव इसे प्रत्यत पवित्र मानते हैं मोर ठाकुर पर के रूप में राम पोर लक्ष्मण जाते हुए दिखाई परे। इसी चढ़ाकर प्रसाद के रूप में भक्तों में बांटते हैं। कही कही कथा प्रकार की और कई कथाएं प्रियादास ने लिखी है, जैसे, वार्ता प्रादि में पाने के लिये और प्रसाद रूप में तुलसीदल दिल्ली के बादशाह का इन्हें बुलाना मोर कैद करना, बदरो बीटा जाता है। कहीं कही मदिरों भोर साघुमों वैरागियो का उत्पात करना और बादशाह का तग प्राफर छोड़ना, की पोर से भी लुलसीदल निमत्रण रूप में समारोहों के इत्यादि। मवसर पर भेजा जाता है। तुलसीदास जी ने चैत्र शुक्ल : (रामनवमी), सवत् १६३१ को तुलसीदाना-सया पुं० [हिं. तुझसी+फा० दाना ] एक गहना। रामचरित मानस लिखना पार किया। सवत् १६८० में तुलसीदास-पा . [ सं० तुलसी+दास ] उत्तरीय भारत के काणी मै पसीघाट पर इनका शरीरात हमा, जैसा इस दोहे सर्वप्रधान भक्त कवि जिनके 'रामचरितमानस' का प्रचार से प्रकट है-सघत सोलह सौ पधी पसी गग के तीर । श्रावण हिंदुस्तान मे घर घर है। शुक्ला सप्तमी तुलसी तज्यो परीर। कुछ लोगों के मत से विशेष-ये शातिर सरयूपारीण ब्राह्मण थे। ऐसा अनुमान 'शुक्ला सप्तमी' स्थान पर 'श्यामा तीज पनि' पाठ पाहिए किया जाता है कि ये पतिपोजा के दुवे थे। पर तुलसीपरित क्योंकि इसी तिथि के अनुसार गोस्वामी जी के मदिर के नामक एक प्रप में, जो गोस्वामी जी के किसी शिष्य का वर्तमान मधिकारी रावर सीधा दिया करते हैं, पौर यही लिखा हुपा माना जाता है और पयतक छपा नहीं है, इन्हें गाना तिथि प्रामाणिक माची जाती है। रामचरितमानस क पति- फा मिश्र लिखा है । (यह मय प्रब प्रकाशित हो गया है)। रिक्त गोस्वामी जी की लिखी मोर पुस्तकें ये है-दोहावली, वेणीमाधवदास कृत गोसाईपरिष नामक एक ग्रप भी है गीतावली, कवितावली या कवित्त रामायण, विनयपत्रिका, जो पच नहीं मिलता। उसका उल्लेख शिवसिंह ने अपने रामाज्ञा, रामलला नहछ, बरवै रामायण, जानकीमंगल, शिवसिंह सरोज में किया है। कहते हैं, वेणीमाधवदास पार्वतीमगल, वैराग्य सदीपनी, कृष्णगीतावली। इनके पति- कवि गोसाई जी के साथ प्राय रहा करते थे। रिक्त हनुमानवाहक प्रादि कुछ स्तोत्र भी गोस्वामी जी के नाम नाभा जी भक्तमाल में तुलसीदास जी की प्रशासा पाई है, से प्रसिद्ध है। बेसे-कलिटिल जीव निस्तार हित कालमीकि तुस्खसी तलसोद्रषा-सा स्ली० [सं०] बनतुलसी। बबई। परा। भयो। ... रामचरित-रस-मचरहत महनिधि प्रतधारी। ममरी। भाद