पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तुलापुरुषकृच्छ चुल्ययोगिता तोरण मादि बधेि जाते थे। फिर मंत्रपाठपूर्वक देवतामों तुलिफक्षा-सचा स्त्री० [सं०] सेमर का पक्ष । का पूजन होता था और अभियुक्त को एक बार तराजु के तली-सक्षा स्त्री० [सं०] दे० 'तुलि'। पलड़े पर बैठाकर मिट्टी प्रादि से तौल लेते थे। फिर उसे तुली-सहा श्री० [सं० तुला छोटा तराजू । काँटा । उतारकर दूसरी बार तौलते थे। यदि पलसा कुछ सुफ 'तुलो-सपा स्त्री० [?] तवाकू । सुरती। जाता था तो अभियुक्त को दोपी समझते थे। तुलुव-सहा पुं० [सं०] दक्षिण के एक प्रदेश का प्राचीन नाम जो तुलापुरुषकच्छ-सज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का व्रत । सह्याद्रि और समुद्र के बीच में माना जाता था। भाजकल विशेष-इसमे पिस्पाफ (तिल की खती), भात, मट्ठा, पल इस प्रदेश को उत्तर फनाडा कहते हैं। और सत्त इनमें से प्रत्येक को क्रमश: तीन तास दिन तक खाकर पंद्रह दिनो तक रखना पड़ता है। यम ने से२१ दिनों तुलू-सासी कम्म] फर्नाटक में प्रचलित एक उपभाषा। का व्रत लिखा है। इसका पूरा विधान याज्ञवल्क्य, हारीत तुलू-सधा . [म. तुलूम सूर्य या किसी नक्षत्र का उदय होना। पादि स्मृतियो मे मिलता है। तुलूलो-मक्षा नी० [मनु० तुलतुल] बैंधी हई पार जो कुछ दूर पर तुलापुरुष-सहा पुं० [सं०] दे॰ 'तुलाभार' [को॰] । बाकर पड़े (जैसे, पेशाव की)। तुलापुरुषदान-सी पुं० [सं०] दे० 'तुलादान' । क्रि०प्र०-बंधना। तुलाप्रप्रह-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] तराजू के पलडौं फी रस्सी [को०] । तुल्य-वि० [सं०] १. समान । घरावर । २ सप्टश । समरूप । उसी तुलाप्रमाह-सबा पुं० [सं०] तुलाप्रग्रह। प्रकार का । ३. उपयुक्त । युक्त (को०)। ४ मभिन्न (को०)। तलाबीज-सज्ञा पुं० [सं०] घंघची के वीज जो तौल के काम पुल्यकक्ष-वि० [सं०] समान । परापरी का उ.--राजशेखर ने अपनी काव्यमीमांसा में इस सहभाव को तुल्यकक्ष कहकर पाते हैं। गुजाबीज। काग्य को दूसरे प्रकार के लेखो से पलग किया है।-पा० तलाभवानी-सबा स्त्री० [पुं०] शफर दिग्विजय के अनुसार एक नदी सा० सिं०, पृ०१॥ और नगरी का नाम । तुल्यफमक-सवा ० [सं०] (व्यक्ति) जिनका उद्देश्य समान हो (को०) तुलाभार-- सज्ञा पुं० [सं०] सोने जवाहरात का एक पुरुष के तोल फा तुल्यकाल-वि० [३०] समकालिक । एक ही समय फा को। मान जो दान किया जाता था [को०] । तुल्यकालीय-वि० [सं०] समफालिक । एक ही समय का [d०] । तलामान-सज्ञा पुं० [सं०] १ वह अदाज या मान जो तौलफर किया तुल्यकुल्य'-वि० [सं०] समान कुल का [को०) । जाय । २. बाट । बटखरा । तुल्यकुल्य-सज्ञा पुं० रिश्तेदार । सवघी किो०] । तुलामानांतर- सज्ञा पुं० [सं० तुलामानान्तर] तौख में मतर डालना। कम तौल के बखरे रखना । हलके बाट रखना। तुल्यगुण-वि० [सं०] १ समान गुणवाला । २ समान रूप से अच्छा [को०] 1 विशेष-कौटिल्य ने इस अपराध के लिये २०० पण दड लिखा है। खल्यजातीय-वि० [सं०] एक ही जाति का। समान [फो०] । तुलायत्र-सहा पुं० [स० तुलायन्त्र] तराजू । वल्यजोगिता-सश स्त्री० [हि० दे० 'तल्पयोगिता'। उ.--- तलायष्टि-सहा स्त्री० [सं०] तराजू की दडी [को। तुल्पजोगिता तहँ घरम जहं वरन्यन को एक ।- भूषण ग्र०, पु० २७ तलावा- सष्ठा पुं० [हिं० तुलना] १. वह लकड़ी जिसके बल गासी तुल्यतर्फ-समापु० [सं०] ऐसा अनुमान जो सत्य के निक्ट हो (फो०] । खड़ी करके धुरी मे तेल दिया जाता है और पहिया निकाला तुल्या -सहा त्रो० [सं०] १ वरापरी । समता । २ सादृश्य । जाता है। २ वह लकही जिसके सहारे मोगते समय गासी तुल्यदर्शन--वि० [सं०] समान दृष्टि से देखनेवाला। सबके प्रति एक खड़ी की जाती है। दृष्टि रखनेवाला [को०] । तलासूत्र-सजा पुं० [सं०] तराजू के पलहों की रस्सी [को॰] । तुज्यनामा-वि० [सं० तुल्यनामन] एक ही नाम का समान नाम तनाहीन- सज्ञा पुं० [#०] कम तौलना । हांडी मारना। का [को०)। विशेप-धारणक्य ने तौल फी कमी में कमी का चार गुना गुना तुल्यपान-संघा पुं० [सं०] स्वजाति के लोगों के साथ मिल जुलकर जुरमाना लिखा है। खाना पीना। तलि-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ जुलाहो की कुंची। २ चित्र बनाने तुल्यप्रधानव्यंग्य-सका पुं० [सं० तुल्यप्रधानध्यङ्ग्य] वह व्यंग्य जिसमें की कुंची। वाच्यार्थ भोर व्यग्यार्थ बराबर हो । तुलिका-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] खजन की तरह की एक छोटी टा तल्ययोगिता-सा सी० [सं०] एक मलकार जिसमें कई प्रस्तुतों चिडिया । या पप्रस्तुतो का अर्थात बहुत से उपमानों का एक ही धर्म तुलित-वि० [१०] १ तुला हुप्रा । २ बराबर । समान । क्नलाया जाय । जैसे,—(क) अपने अंग के जानि के जोचन तुलिनी-सक्षा ली [सं०] शाल्मनी वृक्ष । सेमर का पेड़। तुपति प्रवीन । स्तन, मन, नैन, नितव को ब्रो इजाफा