पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४७५

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तुल्पयोगी कीन!-बिहारी (शब्द०)। यहाँ स्तन, मन, नयन, नितंब तुपार'-सज्ञा पुं० [सं०] १ हवा में मिली भाप जो सरदी से बमम इन प्रसिद्ध उपमेयों का 'इजाफा होना एक ही धर्म कहा मोर सूक्ष्म जलकरण के रूप में हवा से अलग होकर गिर गया है। (ख) लखि तेरी सुकुमारता परी या जग मोहि। मोर पदार्यों पर जमती दिखाई देती है। पासा। २ हिम कमल, गुलाव कठोर से किहि को भासत नाहि (पान्द०)। बरफ । ३. एक प्रकार का कपूर । पीनिया कपूर । ४ हिम यहाँ कमल मौर गुलाब इन दोनों उपमानों का एक ही धर्म लय के उत्तर का एक देश जहाँ के घोसे प्रसिद्ध थे।। कठोरता कहा गया है। तुपार देश में बसनेवाली जाति जो शक जाति की एक शार तुल्ययोगी-वि० [सं० तुल्ययोगिन] समान स्वष रखनेवाला । पी।६ मोस (को०)। ७ हलकी वर्षा ! फुही (को०)। तुल्यरूप-वि० [सं०] समरूप । सहश । एक बैसा किो०] । तुपार देश का घोडा (को०)। तुषार-वि०ने में बरफ की तरह ठंडा। तुल्यलक्षण-वि० सं०] समान लक्षण युक्त [को०। तुल्यवृत्ति--वि० [सं०समान पेशेवाला [को०] । तुषारकण-संज्ञा पुं० [सं०] प्रोस की बूदें। हिमकणको०] 1 तत्यशः-क्रि० वि० [सं०] सुल्यतापूर्वक । तुलतापूर्वक (को०] । तुपारकर-सका पुं० [सं०] १ हिमकर । चद्रमा कपूर (को०) तुषारकाल-सम पुं० [सं०] शीत ऋतु । जाडा [को०। तुल्ल-वि० [सं० तुल्य] दे० 'तुल्य' । तस्वल-रामपं० [सं०] एक ऋषि का नाम । तुषारकिरण-सा ० [सं०] धद्रमा [फो०] । तपारगिरि-सका सं०] हिमालय पर्वत (फो०] । तु'-सर्व० [हिं० ] दे० 'तव। तुषा -सर्व० [हिं०] दे० 'तुम'। उ०-पिर रह राव इम उच्चरे, तुपारगोर'-सा [.] कपूर । नडरिन सरि भव सेख तुन ।---ह. रासो, पृ०५३। तपारगौर-वि. १. तुपार जैसा श्वेत । हिम सा धावल । २ तुषाः पड़ने से श्वेत (को०)। तुवर'-वि० [सं०] १. कसेला । २. विना दादी मोछ का । एमयुहीन । तुषारद्युतिसमा पं० [सं०] चद्रमा [को॰] । तवर'-सा पुं० [सं०] १. कसैला रस । कषाय रस । २. भरहर । -सा पुं० [सं०] हिमालय पर्वत [को०)। ३ एक पौधा जो नदियों और समुद्र तट पर होता है। विशेष-इसके फल इमली के समान होते है जिनके खाने से . तुपारपाषाण-सका पुं० [सं०] १ भोला । २ बरफ । पशुपों का दूध बढ़ता है। तुधारमति- सम पुं० [सं०] चंद्रमा । तुवरयावनाल-सा पुं० [सं०] लाल ज्वार । लाल जुन्हरी। तुषार-संक्षा नी• [ 10 ] ठढक का मौसम । शीतकाल [को॰] । तवरिका-समा श्री० [सं०] १ गोपीचदन । २ मादकी। परहर । तुपाररश्मि-सा पं० [से•] चद्रमा । तुषारशिखरी-सबा पु० [सं०] हिमालय पर्वत [को०। तुवरी-मा श्री० [हिं०] दे० 'तुरिका'। तुपारशैल-सपा पुं० [ सं०] हिमालय पर्वत (को०] । तुवरीशिव-सा . [से. तुवरीशिम्ब] पकवंड का पेट पंवार । तुषारांशु-सहा . [सं०] चद्रमा । तुवि--संगालो. [सं०] तूची। तुषारद्रि-सम्म पुं० [सं०] हिमालय पर्वत । तुशियार-सज्ञा पुं० [देश॰] एक झाड जो पश्चिम हिमालय में होता है। इसकी छाल से रस्सियां बनाई जाती है। पुरुनी। तपारावृत-वि० [सं० तुषार+धावृत ] हिम से घिरा हुमा । हिम से ढंका हमा। उ०-तपारावत पंधेरा पय था। हिम गिर तष- सवा पु० [सं०] १ अन्न के ऊपर का छिलका । भूसी । उ०- मानधन, इनों सिख ऐसे जैसे तुप ले फटके ।-पनानद, रहा था। तारों का पता नहीं, भयानक पीत और निर्जन नियीय ।-माकाश०, पृ. ३५। पृ० ५४३१२ मंडे के ऊपर का छिलका । ३. बहेड़े का पेड़। तपित-सघा पुं० [सं०] १. एक प्रकार के गणदेवता जो सम्या मे तुपग्रह-सरा ० [सं०] पग्नि । १२ है। मन्वतरों के अनुसार इनके नाम बदला करते हैं। तुषधान्य-सहा पु० [सं०] छिलफायुक्त मनाज किय० । २ विधपु । ३ एक स्वर्ग का नाम । (बौद्ध)। तुपसार-सहा पुं० [सं०] पग्नि [को०] । तपिठा-सहा स्त्री० [8] उपदेवियो का एक पर्ग, जिनकी सपा स० [सं० तुपाम्नु] एक प्रकार की काजी जो भूसी सहित बारह या छत्तीस मानी जाती है [को॰] । कूटे हुए जौको सड़ाकर बनती है। तुपोत्थ-सका पुं० [सं०] दे० 'तुपोदक। विशेष-वैद्यक में यह मग्निदीपक, पाचक, हृदयग्राही पोर तीपण तुपोदक-सज्ञा पुं० [सं०] १ छिलने समेत सुटे हुए जी को पानी में मानी गई है। सराफर बनाई हुई काजी । तपाबु । २ नूसी को सहाकर सट्टा तुषाग्नि-समा दु० [हिं०] सुपानस [को०) । किया हमा पन। तपानल-सहा पुं० [सं०] १ भूसी की माग । पासफूस की माग । तुष्ट-वि० [सं०] १.तोषप्राप्त । तृप्त । संत। उ०-तुष्ट तुम्हीं में करसी की पाप। २.सी वा पास फूस की प्राग में भस्म उन्हे देखकर रही, रहूंगी।-सात, पु. ४.५। २. राजी। होने की क्रिया जो प्रायश्चित के लिये की जाती है। प्रसन्न । खुश विशेर-कुमारिस भट्ट तुपाग्नि में ही भस्म होकर मरे थे। कि० प्र०-रना ।-होना।