पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४७६

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तुष्टता चूपका सुष्टता-संज्ञा स्त्री० [सं०] संतोष । प्रसन्नता। वह -सवं० [हिं. दे० 'तुम' । उ.--जो तुह मिलह प्रथम तुष्टनाल-क्रि० प० [सं० तुष्ट] प्रसन्न होना। उ.-(क) मुनीसा । सुनति' सिख तुम्हारि परि सीसा ।—मानस, मपर धर्म तुष्टत चिरकापा । प्रेम प्रपट होत ततकाला।- १।२१। विभाम (पन्द०) (1) नाम बेड बेहि युवति को नहिं तुहफा--- ० [हिं०] दे० 'तोहफा'। २०-तुहफै, घुस पौर महार सुनि तास। राम जानकी के कहे तुष्टत वेहि पर पदे के ऐसे बम के गोले चलाए।-भारतेंदु प्र०, भा०१, पासु ।-विश्राम (शब्द०)। पु० ४७६ । तष्टि-धशा स्त्री॰ [सं०] १ सतीष । तृप्ति । २. प्रसन्नता। तुहमत-सका श्री० [म.] दे० 'ठोहमत'। विशेष-सांस्य में नौ प्रकार की तुष्टियां मानी गई है, चार वहारा-स.हि.] दे॰ 'तुम्हारा'। माध्यारिमक और पांच बाह्य । पाध्यात्मिक तुष्टियो ये है- तुहाल -सर्व. [ हि.] दे० 'तुम्हार'। उ०-जग में राम (१)ति-पात्मा को प्रकृति से भिन्न मानकर सव कार्यों तुहाले पोड़ी, हुवो न कोई फेर हुरे ।-रघु० रू०, ए०१६।। का प्रकृति द्वारा होना मानने से जो तुष्टि होती है, उसे प्रकृति तुहिज-सर्व० [हिं० तू+हि (प्रत्य॰) ] तुझको । या अंगतुष्टि कहते है। (२) उपादान-ग्यास से विवेक होता है, ऐसा समझ संन्यास से जो तुष्टि होती है, उसे उपादान या कुहिन-सया पुं० [मे०] १ पाला। कुहरा । तपार । २ हिम। बरफ । ३ चद्रतेज । चाँदनी । ४. शीतलता। ठढक । ५. सचिलतुष्टि कहते हैं। (३) काल-काल पाकर पाप ही कपूर (को०)। ६. प्रोस (को०)। विवेक या मोक्ष प्राप्त हो जायगा, इस प्रकार तुष्टि को काखतुष्टि या प्रोद्यतुष्टि कहते है। (४) भाग्य-भाग्य में होगा तो मोक्ष तुहिनकण-सा पुं० [सं०] प्रोसकरण । तुपार [को०)। हो जायगा, ऐसी तुष्टि को भाग्यवुष्टि या वृष्टितुष्टि कहते हैं। तुहिनकर-सपा पुं० [१०] १ चद्रमा । २ कपूर [को०] । इसी प्रकार इद्रियों के विषयों से विरक्तिबारा को तुष्टि होती है, तुहिनकिरण-सज्ञा . [सं०] १ चद्रमा । २. यपूर [को०)। वह पाच प्रकार से होती है, बसे, पह समझने से कि, (१) तहिनगिरि--संज्ञा पुं० [सं०] हिमालय पर्वत। उ०-समापार अर्बन करने में बह कर रोता है, (२) रक्षा करना पौर म नि तनिलगिरि पवनें तनिकेतन मुनि तुहिनगिरि गपनें तुरत निकेत 1-मानस, १ 181 महिन (३) विषयों का नाश हो ही वावा है. (४) तहिन-सज्ञा पुं० [सं०1१. द्रमा।२ कपूर [को०] । ज्यो ज्यों भोग करते है, त्यों त्यों इच्छा बढ़ती ही जाती है 1-संशा [.] १ घनमा। २ फपुर [को०)। पौर (५) बिना दूसरे को कष्ट दिप सुन नहीं मिल सकता । इन पति के नाम क्रमश पार, सुपार, पारापोर, मनुतमाम तुहिनश्मि-सज्ञा पुं० [सं०] १ चमारकपुर (को०] । मोर उत्तमाम है। तहिनरूचि - सज्ञा पुं० [सं०] १ चद्रमा । २ कपूर (को०] । इन नौ प्रकार की तुप्टियों के विपर्यय से बुद्धि की मशक्ति उत्पन्न तुहिनशैल-सज्ञा पुं० [0] हिमालय पर्वत [को०)। होती है । वि० दे० 'मशक्ति। तुहिनश रा-सज्ञा बी. [सं०] १ रफ का टुकडा । बरफ । ३ कस के पाठ भाइयों में से एक । तुहिनांशु-संज्ञा पुं॰ [सं०] १ चमा। २. कपूर । तष्ट्र-सका पुं० [सं०] फान में पहनने का एक गहना। तहिनाचल-सज्ञा पुं० [सं०] हिमालय पर्वत । उ०-गए सकल करण्मणि [को०। तुहिनाचल गेहा । गावहिं मगल सहित सनेहा । --मानस, तुध्य-सना पुं० [सं० ] शिव (को०] । तुस-ससा पुं० [सं०] दे० 'तुष'। तुहिनादि-संज्ञा पुं० [सं०] हिमालय पर्वत [को०] । तुसा दे---सर्व० [हिं०] दे० 'तुम्हारा'। उ०-ईदा तुसादे तुही -सर्व० [हिं०] दे० 'तुहिं'। 30--पाप को साफ कर तुहीं साल कछू ना कहना है ।-नद०,१०६३ । साई।-केशव प्रमी०, पृ०६। तुसाडी -सय [.] पापकी। उ०—की की खूबी को तुम्ही -सर्व० [हिं० ] दे० 'तुम्हे तुसादी हो हो हो हो होरी है ।---घनानद, पृ० १७६ । तूं-सर्व० [सं० त्वम् ] दे॰ 'तू'। तुसार-संज्ञा पुं० [सं० तुपार] 'तुषार'। उ०-- पूस मास तुसार तूअर -सझा पुं० [हिं० ] दे० 'तोमर'। उ०-अनंगपाल तूपर भायो कपि जा जमाया 1-गुलाल., पृ० ८४। वहाँ दिली वसाई पानि ।-पू० रा०, १९५७.1 तुसी-सका को• [ सं० तुस] पन्न* कपर फा छिलका । सुगी। लूँगा -सा पुं० [सं० तुङ्ग] फौज का समूह । उ.-तूगा दरवाजा उ.-ऐसी को ठासी बैठी है तोसो मूपिरावै। झूठी बात। लगे, पूगा पुरा प्रवेस ।-रा० रू०, पृ० २६७ । तुसी सौ पिनु कम फटकत हाप न पावै ।—सूर (शब्द०)। तूंगी- स्त्री.[देश॰] १. पृथ्वी । भुमि । २. नाव । नौका। तुस्त--सवा नौ [सं०] १. घूल । गद । २ भूसी (को०) य सस पुं० [हिं०] दे० 'तू'बा'। उ.---जुग तूपच की बीन तुस्स - पुं० [वि.] दे० 'तुष'। २०-सत्य असत्य कहो परम सोभित मन भाई।-भारतेंदु म०, भा० १, पृ. ४१७ । कदएकै कुपन तुस्स निकारो।-राम० धर्म०, पृ० १७५॥ तूंवड़ा-सा ० [हिं० दे० 'तुपा'।