पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४७७

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२१५१ तूती तूंबना-क्रि० स० [हिं० ] दे॰ 'तूमना' । तूटना-क्रि० अ० [सं० श्रुट] 'टूटना'। उ०--तुटै तूट बाहैं। दतै बा-सबा पुं० [सं० तुम्बक] १ कुहुमा गोल कद्द । कडुमा गोल दत माह ।-पु० रा०, 01 १२०1 घीया। तितलौकी 1 उ०-मन पवन दुइ तूंचा करिही जुग तूठना'-क्रि० स० [सं० तुष्ट, प्रा० तुटु ] तुष्ट होना। सतुष्ट जुग सारद साजो ।--कवीर ग्रं॰, पृ० ३२६ । होना । तृप्त होना। प्रधाना। उ०-राधे ब्रजनिधि मीत पे हित विशेष-इस कद्द को खोखला करके कई कामो में लाते हैं, के हाथन तूठि।-ब्रज , पु० १७ । २. प्रसन्न होना। परतन बनाते हैं, सितार मादि बाजो मे ध्वनिकोश बनाने राजी होना। के लिये लगाते हैं मादि । ठना -क्रि० स० प्रसन्न करना । सतुष्ट करना । १ कह को खोखला करके बनाया हुमा बरतन जिसे प्राय साधु तूण-सका पुं० [सं०] १ तीर रखने का चोगा । तरकश । अपने साथ रखते हैं। कमंडल । यौ०-तूणधर, तुषार = धनुधर। तं धी-सा सी० [हिं० तूबा ] १ कडुमा गोल फद्द । २ कद्द, २ घामक नामक वृत्त का नाम । को सोखला करके बनाया हुमा वरतन । तूणक्ष्वेड-सहा पुं० [सं० ] वाण । तीर । मुहा०-तूवी लगाना = वात से पीडित या सूजे हुए स्थान पर तूणि-सहा खी[ सं० ] तूणीर । तरफश [को०] । रक्त या वायु को खीचने के लिये तूवी का व्यवहार करना । तूणी'-सचा श्री० [सं०] १. तरकश । निषग। २ नौल का विशेष-तंगी के भीतर एक बत्ती जलाकर रख दी जाती है पौधा । ३ एक वातरोग जिसमें मूत्राशय के पास से दर्द जिससे भीतर की वायु हलकी पह जाती है। फिर जिस मग पर उठता है और गुवा पौर पेड़ तक फैलता है। उसे लगाना होता है, उसपर माटे की एक पतली सोई रख तूणी - वि० [सं० तूगिन् ] तूणधारी। जो तरकश लिए हो। कर उसके ऊपर तंबी उलटकर रख देते हैं जिससे उस मग के तुरणी--सद्या पुं० [सं० तूणीक ?] तुन का पेड़। भीतर की वायु तूची में खिंच पाती है। यदि कुछ रक्त मी तूणीक-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] तुन का पेड़ । निकालना होता है, तो उस स्थान को जिसपर तूबी लगानी तूणीर-सका पुं० [सं०] तुण । निषग। तरकश । होती है, नश्तर से पाछ देते हैं। तूत-पश्चा [फा० ] एक पेड़ जिसके फल खाए जाते हैं। तू-सर्व० [ त्वम् ] एक सर्वनाम मो उस पुरुष के लिये भाता विशेष-यह पेड मझोले पाकार का होता है। इसके पत्ते फालसे है जिसे संबोधन करके कुछ कहा जाता है। मध्यमपुरुष एक के पत्तों से मिलते जुलते, पर कुछ लपोतरे पौर मोटे दल वधन सर्वनाम । जैसे,-तू यहां से चला जा । होते हैं। किसी किसी के सिरे पर फांक भी कटी होती हैं। विशेष-यह चन्द मशिष्ट समझा जाता है, अत इसका व्यवहार फूल मजरी के रूप में लगते हैं जिनसे भागे चलकर कीड़ों की घड़ों भौर वरावरवालो के लिये नही होता, छोटो या नीचों तरह लवे लवे फल होते हैं । इन फलों के ऊपर महीन पाने के लिये होता है। परमात्मा के लिये भी 'त' का प्रयोग होते हैं जिनपर रोइया सी होती हैं। इनके कारण फलों होता है। की पाकृति पोर भी कीड़ो की सी जान पड़ती है। फलों के भेद मुहा०-तू तड़ाक, तू तुकार, तू तू में मैं करना- कहा सुनी से तून कई प्रकार के होते हैं, फिसी के फल छोटे पौर गोल, करना। पशिष्ट शब्दो में विवाद करना। गाली गलौज किसी के लये किसी के हरे, किसी में लाल या काले होते हैं। करना । कुवाक्य कहना।। मीठी जाति के वडे तूत को शहतूतं कहते हैं। तूत योरस यो०-तू तुकार = प्रशिष्ट विवाद। कहा सुनी । कुवाक्य । मौर एशिया के अनेक भागों में होता है। भारतवर्ष में भी उ.--प्रत्यक्ष धिक्कार घोर तू तुकार की मूसलाधार वृष्टि तूत के पेड प्राय सर्वत्र-काश्मीर से सिक्किम तक-राए जाते होती !-प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० २६८ । हैं। अनेक स्थानो में, विशेषत पचाव पोर काश्मीर में, तुत के तू... सदा बी० [ मनु० ] फुत्तो को धुलाने का शब्द । जैसे-'पाव पेड़ों की पत्तियों पर रेशम के कीडे पाले जाते हैं। रेशम के तू तू .."। उ०-दुर दुर करे तो वाहिरे, तू तू करे तो फीडे उनकी पत्तियां खाते हैं । तूत की लकही भी वजनी पौर जाय !-कवीर सा० स०, १० २१ । मजबूत होती है और खेती तथा सजावट के सामान, नाव तुख-सज्ञा पुं० [सं० तुप = तिनका] का वह टुकठा जिसे गोदकर दोना मादि बनाने के काम भाती है । दूत शिशिर ऋतु में पते बनाते है। सीक । खरका । उ-छ वावति न छोह, छुए नाहक झाहता है पौर चैत तक फूलता है। इसके फल प्रसाढ़ मे पक ही 'नाही' कहि, नाइ गल माह वाहं मेले सुखरूख सी। जाते हैं। तीखी दीठि तूख सी, पतूख सी, अरुरि भग, ऊख सी मरि तूतही-सहा की• [हिं०] दे० 'तुत ही'। मुख लागति महूस सी।~देव ( शब्द०)। मुहा०-तूतही का सा मुह निकल माना = (१) चेहरे पर दुर्बलता तूका -वि•[हि० ] दे० 'तुच्छ' । उ०-~-वलषी वादसाहाँ सील की प्रतीति होना । (२) लज्जित होना। 30-एक-तूतही वाही तेग तूछा ।-शिखर०, पृ०२० । का सा मुंह निकल भाया ।-फिसाना, भा० ३, पृ० ३०६। तूझ -सर्व० [हिं०] दे० 'तुझ'। उ०-दीनानाथ तुझ बिन तूतिया -सचा पुं० [सं० तुस्थ] नीला थोथा। दुख री किरणनै जाय पुकार कहाँ।-रघु० रू०, पृ०६८ । तूती-[फा०] १ छोटी जाति का शुफ या तोता जिसकी घोष ना! कुवाट विवाद कार की मुस