पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४७८

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सूच' २१२१ तूमर है। जाते में यह गाई जाती है, पर पोली, गरदन बैंगनी भौर पर हुरे होते है। 30-के वाले ३.मापत्ति । इति । प्रलय । माफत । ४ हल्लागुल्ला । वाला। वां भाई तूती के पास ।-दक्खिनी०, पु० ५। २. कनेरी ५ भगहा। बखेडा । उपद्रव । वंगा फमादा हलचल । जैसे,-- नाम की छोटी सुदर चिड़िया जो कनारी द्वीप से पाती थोड़ी सी बात के लिये इतना तूफान खड़ा करने की क्या है और बहुत अच्छा बोलती है। इसे लोग पिंजरो में पालते जरूरत ? है। ३. मटमैले रग की एक छोटी चिड़िया जो बहुत सुंदर मि०प्र०-उठना-बदा करना। बोलती है। ६ ऐसा कलफ या दोषारोपण जिससे कोई भारी उपद्रव सडा विशेष-(१) इसे लोग पिंजरों में पालते हैं। जाते में यह सारे हो । अठा दोषारोपण । तोहमत । भारत में पाई जाती है, पर गरमी में उत्तर काश्मीर, तुर्कि- स्तान मादि को पोर चली जाती है। यह घास फूस से कटोरे कि०प्र०-उठना।-उठाना । के प्राकार का घोंसला बनाकर रहती है। मुहा०-तूफान जो इना या वाधना = झूठा फलफ लगाना। झूठा विशेष-(२) उर्दू में तूती शब्द का प्रयोग पूल्लिगवत् होता है। दोषारोपण कर ! तूफान वनाना-२० 'नूफान जोड़ना। मुहा०-तूती का पढ़ना=त्ती फा मीठे सुर में बोलना। किसी तूफाना-व० [फा० र काना] १ तूफान खडा करनेवाला । ऊचमी। उपद्रवी। घोडा करनेवाला। फसादी। २ झूठा फलक फी तूती बोलना-फिसी की खूब चलती होना। किसी का लगानेवाला । तोहमत जोडनेवाला । ३ उग्र। प्रघड । खूब प्रभाव बमना। नक्कारखाने में व्रती की पावाज फोन प्रवल। सुनता है %3D (१) बहुत भोट माड़ या शोरगुल में फही हुई तूबा -सया पु०[देश॰] स्वर्ग का एक वृक्ष जिसके फल परम स्वादिष्ट बात नहीं सुनाई पड़ती। (२) बड़े बड़े लोगों के सामने छोटों' माने जाते है। उ०-पौर तूवा वृक्ष तया फल्पवृक्षो फी बडो की बात कोई नही सुनता। सुगधि पाती थी।--फबीर म०, पृ. २१२। ४ मुह से बजाने का एक प्रकार का बाजा। ५ मिट्टी की छोटी। टोंटीदार परिया जिससे लड़के खेलते हैं। तूमा-सर्व० [हिं०] दे० 'तुम'। उ०--तर वह लरिफिनी वा अजवासी के लिंग प्रापकै पूछपो, जो तुम कौन हो ?-दो तूव'-सदा पुं० [हिं०] दे० 'तूस' । सौ वायन, भा॰ २, पू. ३८। । तूदु-सा पुं० [सं०] सेमल का पेड [को०)। तूमड़ी-सपा स्त्री० [३० तूंचा + डी (प्रत्य॰)] १ तू बी । २. तबी तूद-सहा पुं० [फा०] दे० 'तूता' (को०] । फा बना हुमा एक प्रकार का बाजा जिसे सपेरे वजापा तूदा-सचा पुं० [फा० तूदह] १ ढेर | ढेरी। राशि। २ सीमा का करते हैं। चिह्न। हृदबदी। ३ मिट्टी का वह टीला जिसपर तीर, विशेष-तूवी का पतला सिरा घोडी दूर से काट देते हैं। बदक प्रादि से निशाना लगाना सीखा जाता है। ४ पुरता। पौर नीचे को पोर एक देद करके उसमे दो जीभियो दो टोला (को०)। ५ यह दीवार जिसपर बैठकर तीरदाज पतलो नलियो में लगाकर टाल देते हैं मोर छेद को मोम से निशाना लगाते हैं (को०)। ६ वह टीधा जिसपर चादमारी बद कर देते हैं। नलियो का कुछ भाग बाहर निकला रहता का प्रयास किया जाता है (को०)। है। एक नली में स्वर निकालने के सात छेद बनाते हैं जिन- तुन-वधा पुं० [सं० तुन्नक] १ तुन का पेट । वि० दे० 'तुना'। पर बजाते वक्त उँगलियों रखते जाते हैं। २ तूल नाम फा लाल कपड़ा। तमतड़ाक-सभा बी [फा० तमतराक] | तड़क भड़क । कान तून -सया पुं० [सं० तृण] दे॰ 'तृण'।। शौकत । मान बान । २. ठपक । बनावट। तून3-सका पुं० [हिं०] दे॰ 'तूण'। उ०-तू न लखति कसि तूम तनाना-संक्षा पुं० [मनु०] भधिक भालाप । स्वर फो प्रत्यधिक तून कटि सजि प्रसुन धनु वान ।-स० सप्तफ, पृ० ३८४ । सोचने की क्रिया। उ.-सन्न करो, होली के दिन तुम्हारी तूना-क्रि० स० [हिं० चूना] १. चूना। टपफना। २ खमा न रह नजर दिला दूंगा, मगर भाई, इतना याद रखो कि वहाँ सकना। गिरना । ३ पर्भपात होना । गर्भ गिरना । पक्का गाना गाया पौर निकाले गए। तुम तनाना की धुन विशेष-दे० 'तुमना'। मत योष देना ।-काया, पृ. २६५।। तूमना--क्रि० स० [सं० स्तोम ( = ढेर)+ना (प्रत्य॰)] १ रुई मादि तूनी-सबा स्त्री विषा०] मूत्राशय और पक्वाशय मे उठनेवाली पीढ़ा। के जमे हुए लच्यो को नोच नोचकर छुड़ाना । उंगली से रुई इस 5०--स्सी पुरुषो के गुह्य स्थल में पीठा करे उस रोग को प्रकार खींचना कि उसके रेशे अलग मलग हो जायें। रुई के तूनी कहते हैं ।--मापव०, पृ० १४४ । गाले के सटे हुए रेशों को कुछ पलग मलग करना। उधेडना। तूनीर -सया पुं० [हिं०] दे० 'तूणीर' । उ.--उपासंग तूनीर पुनि वियूरना । २ घण्जी धज्जी फरना । .-सदियो का दैन्य इषुधी तून मिपंग । मनेकार्य०, पृ० ३६ । तमिन तूम, घुन तुमने का प्रकाश सूत ।-युगांत, पृ० ५४ । तूफान-सहा पुं० [अ० तूफान] १ उपानेवाली वाढ़ : २ वायु के ३ मलना । घलना। ४. बात का उधेड़ना। रहस्य खोलना । वेग का उपद्रव । ऐसा मषट जिसमें खूब धूल उठे, पानी बरसे, सब भेद प्रकट करना। पादल गरजें तथा इसी प्रकार के मौर उत्पात हो । पाँधी। तूमर -संक्षा पुं० [सं० सुम्बा] दे० 'त्या' । उ.-तासी और सिसक मि०प्र०-पाना।-उठना । सास सेल्ही भोर तुमर माल।-भीखा० २०, पृ.५६ ।