पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४७९

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२१९३ -सौ . [हिं० दे० 'तू महो'। उ०--सोस जय फर विशेष-फारस या ईरानवालों का तानियो के साथ बहुत तुमरी, लिये बुल्लि पर पोय ।-प० रासो पु०७०। प्राचीन काल से झगड़ा चला पाता था। यह तुरानी जाति RA- ० [सं० तुम्बक] दे० 'तू'या । 30-तमा तीन भारती वही थी जिसे भारतवासी शक कहते थे। मफरासियाब नाम

  • रनायो छाये नीर भरि हाथ लगायो।- गुलाल०, पृ० ५७ । तूरानी बादशाह से ईरानियों का युद्ध होना प्रसिद्ध है। प्राचीन

तूरानी पग्नि की उपासना करते थे और पशुओं की धलि तुमार-स० [म.] बात का व्यय विस्तार । पात का पतगड़। पढ़ाते थे। ये मार्यों को अपेक्षा मसभ्य थे। इन उत्पातो से कि -बोधना। एक बार सारा युरोपमोर एशिया तग था। चगेज खा, तैमूर, समरिना सत-सदा [हिं० तूमना+सूत] एवं महीन फता हमा उसमान यादि इसी तुरानी जाति परत थे। __ ऐसा सुत जो तूमी हुईई से फाता गया हो। ज्या --31 Rो. देश] झाली सरसो। दूरानो-वि० [फा०] तूरान देश का । तूरान रावण तूरानी २-सा पुं० तू रान देश का निवासी। नर- पु .] १ एक प्रकार का पाना । नगाड़ा । उ--तोरन तूरि--स ० [सं० नूर] दे० 'तूरि'। उ.-सुनो प्रयाण विषाण तोरन दर वर्ड पर भाषत भौटिन पावति ठाड़ी-कार। तूरि भेरि बब उठे।-युगपथ, पृ० ८८। (E)11 तुरही नाम का वादा सिधा। तूरी'-सचा शो० [८० धतूरे का पेड ।। नूर'-वि० सीघ्रता करनेवाला । बल्वाज (ो। तूरी-यशा बी० [सं० त] तूयं । तूरही। तूर-ता हरकारा oि ! तस -मास पुं० [हिं०]दे० 'तर'। 30-जस मारह वाजा तरू। तुर'- श्री [फा तूल ( = संबाई)] १ गर देगव लंबी एक सूरी देखि हंसा मसुरू।-बायसी ग्र० (गुप्त), पृ० २६५। महरी जो जुलाही करपे में लगी रहती है पोर जिसमें वानी

  • -० वि० [सं०] शीव । जल्दी । तुरत । उ०-तू तू चोर हो

लपेटी जाती है। इससे दोना सिरों पर दो चूर और पुणं सफल, नव नवोमियो के पार उतर।--गीतिका, प०७॥ पार छेद होते है। २ यह रत्ती जिसे जनानी पालको . पारो पोर इसलिये वापते है जिसमें परदा हवा में उडने न तुरा--वि० फुर्तीला । वेगवान् (को॰] । पाव । पौवदी। तुणे-सपा पु० दरण । वेग । फुर्ती (को०] । तर --एमा श्री• [सं० तुवरी] मरहर । रोक-समा० [सं०] सुचत फे अनुसार एक प्रकार का चावल जिसे त्वरित भी कहते हैं। तरसपा [प] शाम पा सोरिया का एक पहार जिसपर हुज- तूर्णि-वि० [सं०] फुर्तीला । तेज [फो० । रत नृमा ने ईश्वर का जल्वा देता था। तर्णि-सा जी. वेग । ति [को॰] । यो०-कोह तर - तर नामक पहा । ततर-कि० वि० [सं०] तुरत । तत्काल । शीघ्र। नत-सका ५० [म० तूयं] ३० 'त'। तूर्त रवि० फुर्तीला । तेज [को॰] । तूरब-कि० वि० [सं० तूयं] २० 'तूणं'। तूर्य-वा [सं०] १ तुरही । सिंघा । २ मृदंग (को०) । तुरत- ० [10] एक प्रकार का पदी। , तूर्योधमा पु० [सं०] वायद (को०] । सश to [ म० नूरा ] 'न' 130--नददाम की कृति सपुरन । भक्ति मुक्ति पावै सोह तरन ।-द० ग्र०, प० २१५ तूर्यखढ, तूयंगठ-सा [ से• तूर्यखएड, सूर्यगएड ] एक प्रकार का मृदग [को०)। तरना'--5) पु रा०] एफ प्रकार की चिड़िया ।। तर्यमय-वि० [सं०] संगीतात्मक [को०] । तरना किस.हि देतोदना' 180-नु सतावन हे जग तर्व-शिवि० [सं०] तुरत । शीघ्र। को है फठोर महा सबको मदनरत-शभु (शब्द)। तयाण-वि० [सं०] १. फुर्तीला । वेग 1 २. विजेता । ३. गूजा-मा ०म० तर तरही। 30-ताक्त सराय के विवाह सर्वोच्च । श्रेष्ठ (मो०] ।

  • उछाह कर लि लोल वूमन मवद ढोल तूरना। -तुलसी

तर्वि-वि० [0] तूर्वयाण [को०)। तल-सण पुं० [सं०] १. आकाश । २ तूत का पेड । शहतूत । ग'-मानी (०) वेग । गति [को०)। ३ कपास, मदार, सेमर मादि के डोडे के भीतर फा घूया। रा'--सहा पु०म० तर तुरही नाम का बाजा। उ-निसि दिन रुई। उ० उ.-(क) जेहि मा तगिरि मेर उहाहीं। सादर नूग! रहस द सब भरे दुग।-जायसी कहह तूल हि लेखे माही।—तुलसी (शब्द०)। (ख) व्याकुल फिरत भवन न जहूँ तह तूल पाक उधराई ।-सूर [फा०] फारस के उत्तरप्रद पड़नेवाला मध्य एशिया (शब्द०)। ४ धास या तृण का सिरा (को०)। ३ फूल या सारा माग जो तुक, तातारी, मूगल मादि जातिया का पोषों का गुल्म (को०)। ६ धतूरा (फो०)। पान है। हिमालय के उत्तर मल्टाई पक्त का प्रदेश। तूल-सथा पुाहतुन- एक पेड़ जिसके फूलों से परे रंगना (शब्द०)। (मन्द०)।