पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४८२

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सूणफ ११२६ तृणहयं २ तिनका (को०)। ३ घर पात (को०)। तृणध्वज-सम पुं० [सं०] १ बाँस । २. ताह का पेड़। तुराक- म० [सं०] पास को खराप पत्ती [को०] । तृणनिय-सम पु० [सं० तृणनिम्ब ] चिरायता । तृराका-सया पुं० [सं०] एक ऋषि ।। तृणप-सज्ञा प्रो० ०] एक गंधर्व का नाम । तृणकांड-सका . [सं० तृणकाएड ] घास का ढेर [को०) । तृणपत्रिका-सज्ञा स्त्री० [ से ] क्षुदर्भ नामक तृण । तृपकोया-सधा श्री [सं०] पासवाली जमीन [को॰] । तृणपत्री-सज्ञा स्त्री० [स.] इक्षुवर्भ नामक तृण [को०] । ताकुम-सा पुं० [म. तृणकुछ म] एक सुगधित घास। तपापीड़-सज्ञा पुं० [सं०तृणपीड ] एक प्रकार की लड़ाई। हायों के रोहित पास। द्वारा सड़ाई। तृणकुटी, तृणकुटीर, तृणकुटीरक- सवा पु० [सं० ] पास फूस की तृणपुष्प-सपा पु० [सं०] १. तृण केशर। २ ग्रथिपर्णी । बनी मईया या झोपड़ी [को॰] । गठिवन । तृणकुट-सद्या पु० [सं० ] घास का ढेर [को॰] । तृणपुष्पी-सज्ञा स्त्री॰ [स. ] सिंदूरपुष्पी नामक धास । तृणर्चिका-सया स्री० [३० ] उचो पा छोटी झाड [को०] । तृणपूलिक-सचा पुं० [सं० ] एक प्रकार का गर्भपात [को०] । तृणधर्म-सदा पुं० [सं०] गोस कद्दु । तृणपूलो संज्ञा स्त्री० [सं०] नरकट की चटाई कोना तुपकेवकी-यम श्री. [सं०] एक प्रकार का तीखुर । तृणप्राय-वि० [सं०] तृणवत् । तिनके जैसा। तुच्छ [को०] । तणकेतु-सा पु० दे० [सं०] 'तृणकेतुक' । तृणबिंदु-सधा पुं० [सं० तृणबिन्दु ] दे॰ 'तृणविदु' [को०] । तणकेतुफ-सपा पुं० [सं०] १. वास । २ ताड़ का पेड।। तृणमत्कुण-सक्षा पुं० [सं०] जमानत देनेवाला । जामिन [को०] । तणगोधा-सा बी• [सं०] एक प्रकार का गिरगिट (को०] । तृणमणि-सज्ञा पुं० [सं०] तृण को भाषिक करनेवाला मरिण । तृणगौर-मक्ष t० [सं०] दे॰ 'तृणकु कुम' को। कहरुवा। तणप्रथी-संश श्री० [सं० तृणमन्यो ] स्वणंजीवती । तृणमय-वि० [सं०] [वि० श्री• तृणमपी] घास का बना हुमा । तणमाही-सपा पु. [• तृणग्राहिन] एक रन का नाम । नीलमणि। तृणराज-सहा पुं० [सं०] १. खजूर । २ ताड़। ३. नारियल । तणचर'-वि• [सं०] तृण चरनेवाला (पशु) । तृणवत्-वि० [सं०] तिनके के समान । प्रत्यत तुच्छ [को०) । तृणचर'- पुं० [सं०] गोमेदक मणि । तृणविदु-सशा पुं० [सं० तृणविन्दु] एक ऋषि वो महाभारत के तणजभा-वि० [सं० तृपषम्मन् पास परने योग्य । घास चरनेवाला। काल मे थे और जिनसे पाडदो से वनवास की अवस्था में भेंट . -सपू० पमि०प., पू० २४८ । हुई थी। तृणजलायुका--सका नी• [सं०] दे० 'तृणजलोका' । तृणवृक्ष-संज्ञा पुं० [सं० ] दे० 'तृणम' [फो०] । ताजमोका-सया स्त्री० [सं०] एक प्रकार की जोफ । तृणशय्या-सशा स्त्री० [सं०] घास का विद्यौना। घटाई । सापरी । तणजलौका न्याय- पुं० [सं०] तृण्जलीका के समान । तृणशाल-सहा पु० [सं०] १ ताड । २ बोस का पेड [को०) । विशेष- इस वाक्य का प्रयोग नैयायिक लोग उस समय करते तृणशीत-सशा पुं० [सं०] १ रोहिस घास जिसमें से नीबू की सी ५ उन्हें जब पात्मा के एक शरीर छोड़कर दूसरे शरीर में सुगध पाती है। २ जलपिप्पली। तृणशीता-सक्षा स्त्री० [सं०] एक सुगषित घास [को०] । जोंफ जल में रहते हुए तिन के मत तक पहुंच जव दूसरा तृणशून्य'-वि० [सं०] विना तृण का। तृण से रहित। तिनका पाम लेती है, तब पहले को छोड़ देती है। इसी तृणशून्य-सज्ञा पुं०१ मल्लिका 1२ केतकी । प्रकार मारमा जब दूसरे शरीर में जाती है, तब पहले को छोड तृणशूली-सशस्त्री० [ 0] एक लता का नाम । देती है। तृणशोपक-शा पुं० [सं०] एक प्रकार का साप । तणजाति-सथा श्री. [१०] वनस्पति जिसमे पास मौर शाक मादि तृणपट्पद-सका पुं० [सं०] दरें। ततैया [को०] । गृहोत है [को॰] । तृणसंवाह-संश पुं० [सं० ] पवन [को०] । तृणज्योतिस-पमा पु० [सं०] ज्योतिष्मती लता। तृणसारा-सक्षा सी० [सं०] कदली । कैला। तृणवा-सहा बी० [सं०] १ तृणवत्ता। निरपंकता। २. धनुष चि। तणसिंह-सया पुं० [सं०] १ एक प्रकार का सिंह । २ कुल्हाड़ी तृण्द्र म-सम पु० [सं०] १ ताड़ का पेड़ । २ सुपारी का पेह । [को०)। ३ सदर का पेड़। ४. केतकी का पेठ । ५. नारियल का पेड़। तणस्पर्श परीपह-स [सं०]दर्भावि कठोर तृणो को बिछा- ६. हिवास। कर लेटने और उनके गड़ने की पीड़ा को सहने की क्रिया । तृणधान्य-सपा ० [सं०] १ दिग्नी का चावल । मुन्यन्न । विन्नी (जैन)। का पान । २. सावा। तृणहय-मा[सं०] घास फूस को झोपडी [को०] ।