पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४८४

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तपक्ष २१२० तेवीस पल-पश पुं० उपल । पत्थर (को०)। तृष्णाकुल-वि० [सं० तृष्णा+माकुल ] प्यास से विकल । तृषित । पला-सहा त्री० [सं०] १. लता । २ त्रिफला । उ.-तृष्णाकुल होंगे प्रिय जामो। सलिल स्नेह मिल मधुर पिलामो।-गोचिका, १०४४ । पित -वि० [हिं॰] दे॰ 'तृप्त' । प्स-वि० [सं०] १ तुष्ट । मघाया हुपा। जिसकी इच्छा पूरी हो तृष्णाक्षय-सबा पुं० [सं०] १. इच्छा का समाप्त होना। २. पई हो। २, प्रसन्न । खुश । मानसिक शाति । चित्त की स्थिरता । ३. सतोष । प्ति- सपा श्री० [सं०] १ इच्छा पूरी होमे से प्राप्त शाति पौर तृष्णारि-सक्षा ई० [सं०] पितपापडा। मानद । सतोष । उ०-फिरत तथा भाजन अवलोकत सूने तृष्णात--वि० [सं० तृष्णा+पातं ] प्यास से कावर। तृष्णा से सदन मजान । विहिं लालच कबहूँ कैसे हैं तृप्ति न पाचत प्रान । मातं । उ०-दूर हो दुरित जो जग जागा तृष्णा शान।- -सूर (शब्द०)। २ प्रसन्नता । खुशी। गीतिका, पृ० ७० प्पनाg--क्रि० स० [सं० तृप्ति ] तृप्त करना। सतुष्ट करना। तृष्णालु-वि० [सं०] १ प्यासा । २ लालची । लोभी। उ.--ज्वालनिय माल तृपय सुपति, मति सुदेव नइवेद जुत । दृष्य'-वि० [सं०] इच्छा करने योग्य । चाहने लायक [को०] 1 -पू. रा०, २४ । २७६ । तृष्य-सक्षा पुं० १ लोभ । लालच । २. प्यास (को०] । प्र-ससा पुं० [सं०] १ घृत । घी। २ पुरोडाथ । ३ दृम तृसधि -सधा श्री० [सं० पि+सन्धि ] तीन काल । तीन पहर । करनेवाला । तपक। उ.-समी साँझ सोहवा मझे जागिदा तृसंधि देणा पहरा। फू-सहा स्त्री० [सं०] सर्प जाति [को०] ! -गोरख०, पृ० ८६। नी -सज्ञा स्त्री० [हिं०] २० त्रिवेणी'। उ०-पावन परम तृसालों -वि० [सं० तृषा ] तृपालु । प्यासा। उ०-परहर देखि, मदन मद तृबनी। नद० प्र०, पृ० ३४८ । बहै तृसालवा, मुले कोठा मागा।-गोरख०, पृ० ११२ । मंगी-वि० [हि.] दे० 'त्रिमगी'। उ०-धरै टेडी पाग, चद्रिका दुस-सबा पुं० [सं० टिएश्य] डेड सी नाम को तरकारी। टेढ़ी टेढ़े लसै तृभगी लाल।-नद० पं., पृ० ३५०1 त -प्रत्य० [सं० तस् (प्रत्य॰)] १ से। द्वारा। उ.--रन तें ना -सका खौ [सं० तृष्णा] दे० 'तृष्णा'। उ०-जोगी दुखिया रजनी दिन भयो पूरि गयो असमान ।-गोपाल (शब्द०)। जगम दुखिया तपसी को दुख दूना हो। भासा तृश्मा सबको २ से (पषिक) । उ०—(क) को जग मद मलिन मति मो। ध्यापै कोई महल न सूना हो।-कवीर श०, मा० १, तें।-तुलसी (शब्द०)। (ख) नैना देरे जलम ते है खंजन पृ. १६ । तें पति नाचें। सूर (शन्द०)। (ग) चपला ते चमकत -सहा स्त्री० [सं०] [पि० तृषित, तृष्य] १. प्यास । २. इच्छा। पति प्यारी कहा करोगी श्यामहि ।--सूर (शम्द०)। प्रभिलाषा । ३ लोम । सालय | ४ कलिहारी करियारी। विशेष-कही कहीं 'अधिक' 'वठकर' मादि शब्दों का लोप करके भू-सा स्त्री० [सं०] पेट में जल रहने का स्थान । फ्लोम । भी 'ते' से अपेक्षाकृत प्राधिक्य का प्रयं निकालते हैं। वि० या@--वि० [सं० तृपित] तृपित । प्यासा । उ०-सग रहे सोई पिये, नहि फिरे तृपाया नहर ।-दरिया० बानी, पृ. ३१ । ३ (किसी काल या स्थान) से। उ०-द्यौसक से पिय चित चढी कहै चढौंहैं स्योर ।--विहारी (शब्द॰) । लु-वि० [सं०] प्यासा । पियासित । तृपित । तृषातं । विशेष–२० से। विव-वि० [सं० तृषावान् का बहुव] प्यासा । उ-तृषावत ततरा-मका पुं० [देश॰] वैलगाडी मे फड़ के गीचे लगी हुई लकड़ी। जिमि पाय पियूपा ।-तुलसी (शब्द॰) । संतालिस-सबा पुं० [हिं०] दे० तालीस' । ति-वि० [सं०] प्यास से व्याकुल । प्यासा (को०] । तैतालिसा-वि० [हिं० २० तालीसा। बान्-वि० [सं०] [ वि० श्री तृपावती ] प्यासा। - ततालीस'-वि० सं० त्रिचत्वारिंशत, पा. तिचत्तालीसा] जो गिनती स्थान-सहा पुं० [सं० सोम । में बयालिस से एक मषिक मोर चौवालीस से एक कम हो। ह-सका पुं० [सं०] पानी [को०] । पालीस मोर तीन । हा-सा स्त्री० [सं०] सौंफ। ततालीस-सचा पुं० परालीस से तीन प्रषिक की सख्या जो प्रकों में त-वि० [सं०] १ प्यासा! उ०-तृपित वारि दिनु जो तनु इस प्रकार लिखी जाती है-४३ । स्यागा। मुए कर का सुपा तड़ागा ।—तुलसी (शब्द०)। तेतालीसा-वि० [हिं० तेंतालीस+वो] क्रम में तेंतालीस के स्थान २. अभिलापी । इच्छुक । पर पानेवासा । जिसके पहले बयालिस और हों। तोत्तरा-मक्ष स्त्री० [सं०] असनपर्णी । पटसन । तसिस-चि०, सह पुं० [हिं०] दे॰ 'ततीस। -वि० [सं०] १ लोभी । इच्छुक । २ वेगवान् । क्षिप्र [को०] । ततिसाँ -वि० [हिं०] दे० 'तेवीसवा'। ज-सका स्लो. [सं०] १ प्राप्ति के लिये माकुल करनेवासी तीस-वि० [सं० तपस्वियदपा. वितिसति, प्रा. तितीसा] इया । लोभ । सालच। २. प्यास। पो मिनती में बीस से दोन प्रषिक हो। वीस मोर ठीन ।