पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४८५

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वीस २१२६ उ.-नौ सेलें तैतीस तीन । तेज देद विष संग लीन ।- तेइसरि--संज्ञा पुं० [हिं०]दे. तेईस'। कसोर ., भा॰ २, पृ० ११५ ! तेइसा -वि० [हिं०] ६० 'देईसा । तीस तीस से तीन मधिक की संख्या जो प्रकों में इस तेईस-[. त्रिविशति. पा. ठेवीसति, प्रा. तेवीस 1जो गिनती में प्रकार लिखी जाती है-३३ पीस से तीन मषिक हो। बीस पोर तीन । सतीसा-हिहि तेतीस+घा (प्रत्य॰)] जो क्रम में तेंतीस से तेईस--संज्ञा पु० धीस से तीन प्रषिक की संख्या जो प्रको में इस __ स्थान पर पड़े। जिसके पहले बत्तीस मोर हो। प्रकार लिखी जाती है-२३ । तार-बापु० दिरा बिल्ली या पीते की जाति का एक बड़ा तेईसवाँ-वि.हि. तेईस+वो (प्रत्य)ीम में तेईस स्थान सिक पशु जो अफ्रीका तया एशिया के पने जगलों में पाया पर पड़नेवाला । जिसके पहले बाईस चौर हों। जाता है। तेर-क्रि.वि.हि.] दे० 'यो । उ.- मद पारि परेम की, विशेष-बल और भयकरता भादि में शेर मौर चीते के उपरात जे भावे ते सेलु ।-जायसी पं. (गुप्त), पु० १६१।। इसी का स्थान है। यह चीते से छोटा होता है और चीते की तेक -सक्षा स्त्री० [हिं०] दे० 'तेग' । उ-तेक सोकि तक्यौ तरह इसकी गरदन पर भी भयाल नहीं होता। इसकी लबाई तुरी।-पु. रा०,७१००५ - प्राय. चार पांच फुट होती है मौर इसके शरीर का रण कुछ पीलापन लिए भरा होता है। इसके शरीर पर काले काले तखना'--क्रि० स० [सं०वीक्षण, हि० तेहा ] बिगढ़ना। ऋव पोष्ट पन्चे या चित्तियां होती हैं। इस जाति का कोई कोई होना। नाराज होना। उ.-० (क) सुभ बोल्यो तरै पानवर काले रंग का भी होता है। भैम सों तेलिक। लाल नैना धरे वक्रता देखि के। -गोपाल (सन्द०)। (ख) हनुमान या कौन बलाय बसी कछु पूछे ते ना तेदुआ-मया पुं० [हिं०] दे० 'द' । तुम ठेखियो री।हित मानि हमारी हमारे कहे मला मी मुख तद्-सका पु० [to तिन्दुक] १ मझोले पाकार का एक वृक्ष जो की छवि देखियो री!-हनुमान (शब्द०)। (ग) मोदी को भारतवर्ष, सका, वरमा पौर पूर्वी बंगाल के पहाडी जगलों में झूठी कही झगरो करि साँह करौं तब भोर ठेखो। बैठे पाया जाता है। हैं थोक बगीचे में जायकै पाई परों भव पाइक देखो।- विशेष-यह पेड़ पर बहुत पुराना हो जाता है तब इसके हीर रघुराज (शब्द०)। की मकडी बिलकुल काली हो पाती है। वही लकडी मायभूत देखना -क्रि० [हि.] प्रसन्न होना। उमग में पाना । के नाम से विकती है। इसके पत्ते लबोतरे, नोकदार, खुरदुरे उ.-हारत भवर लगाइ मरगजा रंगिली समधिन टेखि।- मोर महवे के पत्तों की तरह पर उससे नुकीले होते हैं। इसकी पु० ३८०। छाल कालो होती है जो जलाने से चिड़चिड़ाती है। तेखीए-वि० [हिं० तीखा] क्रोधयुक्त । कुद । उ.-दिस बंक मंगव पर्या-काठस्कष। सितिगारप। केंदु । तिदु।तिदुल । तिंदुकी। पाद द्वादस, तहकिया लेखी।-रघु० २०, पृ. १६१ । नीलसार । प्रतिमुक्तक । कालसार। तेग-सदा श्री० [फा० तेग] तलवार खग । उ०-(क) को रनसूर २. इस पेड़ का फल जो नींबू की तरह का हरे रग का होता है। तेग तजि देवं । तो हमहूँ तुम्हरो मत लेवें।-विधाम (शन्द०)। मोर पकने पर पीला हो जाता पौर खाया जाता है। (ख) वरने दीनदयाल हरषि जो तेग चलेही। हहो जीते विशेष-वैद्यक में इसके कच्चे फल को स्निग्ध, कसैला, हलका, बसी, लरे सुरलोकहि पैहो।-दीनदयालु (शब्द०)। मलरोधक, सीतल, परुचि पौर वात उत्पन्न करनेवाला पौर तेगा-सचा पु० [फा० तेग १ खौड़ा। खग (पस्त्र)। उ-वेगा परके फस को भारी, मधुर, स्वादु, कफकारी मोर पित्त, ये ग मौत के पानि पवार सुघाट। प्रजन गाढ़ दिए देना रक्तरोग मौर वात का नाशक माना है। फरत चौगुनी काट ।-रसनिषि (शम्द०)।२ किसी मेहराब ३ सिंध पौर पजाच मे होनेवाला एक प्रकार का तरबूज जिसे के नीचे के भाग या दरवाजे को ईट पत्पर मिट्टी इस्यादि से 'दिलपसद' भी कहते हैं। बद करने की क्रिया। ३ कुश्ती का एक दोष या पेंच जिसे तेल-पव्य० [हिं०] दे० 'तें'। उ०-के कुदरत ते पैदा किया कमरतेना भी कहते हैं। एक रतन !-दक्खिनी०, पृ० ११७ । तेज'-सा पुं० [सं० तेवस् ] दीप्ति । मोति । चमक । दमक । तेर-सवं. [ स० ते थे। वे लोग । उ.--(क) पलक नयन मामा। 30-जिमि बिनु तेज न प गोसाई । सुषसी फनिमनि जेहि माती। जोगवहिं जननि सकल दिन राती । ते (शब्द०)।२ पराक्रम । बोर। बल । ३ वीर्य । 30- पर फिरत विपिन पदधारी। कद मूल फल फूल प्रहारी।- पतित तेज जो भयो हमारी कहो देव को धारी।-रघुराण तुलसी (शब्द॰) । (ख) राम कथा के ते अधिकारी । जिनको (शब्द०)। ४ किसी वस्तु का सार भाग । तत्व । ५ वाप। सतसंगति प्रति प्यारी!-तुलसी (शब्द०)। गर्मी। ६ पित्त । ७ सोना। तेजी। प्रचश्ता । त..- तेइल.-सर्व० [हिं०] उसे । उ०-कवि तो तेइ पाहन सम (क) तेज कृथानुशेष महिपोषा। मष अवगुन धन धमी माने । नदिन पखान पखान बखान ।-नद० ग्र० पृ० ११५ । घनेसा-सुससी (शब्द०)। (ख) थल सो मचल चीन, तेइसा-वि• [हि.] दे० 'तेईस' । पनिल से चलपिरा, बल सो पमल वेज सो पायो।- उ.- . .