पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४८८

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तेलगू तेलियासुहागा तथा नेत्र ठडे रहते हैं। सिर में तेल लगाने से सिर का दर्द उ०-तिरगुन तेल घुमाव हो तेलहन संसार। कोइन थे। दूर होता है, मस्तिष्क ठढा रहता है, मोर बाल काले तथा जोगी जती फेरे बारबार ।-कबीर० श०, मा० ३, पृ. ३६ । घने रहते हैं। इन सब कामों के लिये वैद्यक में सरसों या तेलहा-वि० [हिं० तेल+हा(प्रत्य॰)][वि०सी० तेलही] १.तेलयुक्त। तिल के तेल को अधिक उत्तम और गुणकारी बतलाया है। जिसमें तेल हो। जिसमें से तेल निकल सकता हो। २. तेल- वैद्यक के अनुसार तेल में तली हई खाने की पीजे विदाही, वाला। तेल सबंधी। ३. जिसमें चिकनाई हो। ४ बैल गुरुपाक, गरम, पित्तकर, त्वचायोष उत्पन्न करनेवाली पौर निर्मित । तेल से बना हुमा । यायु तथा दृष्टि से लिये महितकर मानी गई है। साधारण तेला-सा [देश॰] सीन दिन रात का उपवास । उ०-जिसे कतल सरसों भादि के तेल में अनेक प्रकार के रोग दूर करने के का हक्म हो वेला मर्याद तीन उपवास करे जिसमें परलोक लिये तरह तरह की प्रोषधियां पकाई जाती हैं। सुधरे।-शिवप्रसाद (शब्द०)। क्रि०प्र०—जलना ।-जलाना ।—निकलना ।—निकालना। तेलिन-सचा बी० [हिं० तेली का श्री.] १ तेली की स्त्री। तेली -पेरना ।-मलमा ।-लगाना। जाति की स्त्री। २. एक बरसाती कीड़ा। मुहा०-तेल में हाथ सलमा - (१)अपनी सत्यता प्रमाणित करने विशेष—यह कीड़ा जहाँ शरीर से छू जाता है वहाँ छाले पड़ के लिये खौलते हए तेल में हाथ गलना (प्राचीन काल में जाते हैं। सत्यता प्रमाणित करने के लिये खोलते हुए तेल में हाथ तेलियर-सहा पुं० [देश॰] काले रंग का एक पक्षी जिसके सारे उलवाने की प्रथा थी)। (२) विकट शपथ खाना । पाँख का शरीर पर सफेद दकियां या चित्तियां होती हैं। तेल निकालना=दे० 'पाख' के मुहावरे। तेलिया-वि० [हि. तेल] तेल की तरह चिकना और चमकीला। २ विवाह की एक रस्म जो साधारणतः विवाह से दो दिन पौर चिकने मौर चमकीले रगवाला । तेल के से रगवाला । जैसे,- कही कहीं चार पांच दिन पहले होती है। इसमें वर को वधू का तेलिया प्रमोवा। नाम लेकर पौर वधू को वर का नाम लेकर हल्दी मिला हुण तेलियारे-समझ ० [हिं० तेल+इया (प्रत्य॰)] १ काला, चिकना तेल लगाया जाता है। इस रस्म के उपरात प्राय. विवाह भौर चमकीला रंग । २ इस रग का घोहा। ३. एक प्रकार सबंध नहीं छूट सकता। उ.-मभ्युदयिक करवाय श्राद्ध विषि का बबूल। ४. एक प्रकार की छोटी मछली । ५. कोई पदार्थ, सब विवाह के चारा । कृत्ति तेल मायन फरवे? ब्याह विधान पशु या पक्षी जिसका रग लिया हो। ६. सींगिया नामक विष। पपारा। रघुराज (शब्द०)। तेलियाकंद-सा पुं० [सं० तेलकन्द] एक प्रकार का कंद । मुहा०-तेल उठाना या चढ़ाना= तेल की रस्म पूरी होना। विशेष-यह कद जिस भूमि में होता है वह भूमि तेल से सौंपी उ.-तिरिया तेल हमीर हठ चढ़े न दूजी बार ।-कोई कवि हुई पान पड़ती है। वैधक में इसे लोहे को पतला करनेवाला ( शम्द०)। तेल चढ़ाना % तेल की रस्म पूरी करना। परपरा, गरम तथा वात, अपस्मार, विष मौर सूजन प्रादि उ.--प्रथम हरहि बदन करि मंगल गावहिं। करि कुलरीति को दूर करनेवाला, पारे को वाषनेवाला भोर तत्काल देह को कप्लस थपि तेल चढ़ावहिं।-तुलसी (शब्द०)। सिद्ध करनेवाला माना है। तेलगू-सक्षा स्त्री० [ तेलुगु ] माध्र राज्य की भाषा। तेलियाकत्था-सा पुं० [हिं० तेलिया+करपा] एक प्रकार का कस्था तेल चलाई-सका बी० [हि तेल + घलाना 1 देशी छींट की छपाई जो भीतर से काले रंग का होता है। __ में मिडाई नाम की क्रिया । वि० दे० 'मिड़ाई। तेलियाकाकरेजी--सबा पुं० [हिं. तेलिया+काकरेजी] कालापन तेलवाई-सश ० [हिं० तेल +वाई (प्रत्य॰)] १ तेल लिए गहरा कदा रग । लगाना। तेल मलना । २. विवाह का एक रस्म जिसमें वधू तेलियाकमेतः महा पुofहिं० तेलिया+कमैत १ घोड़े का एक पसवाले जनवासे मे वर पक्षवालों के लगाने के लिये तेख रंग जो अधिक कालापन लिए लाल या कुमैत होता है। २. भेजते हैं। • वह घोड़ा जिसका रग ऐसा हो। तेलसुर-सधा पुं० [देश॰] एक जगली वृक्ष जो बहुत ऊंचा होता है। तेलियागर्जन-सहा हि तेलिया+० गर्जन] दे० 'गर्जन'। विशेष--इसके हीर की लकडी कडो पौर सफेदी लिए पोलीस तेलियापखान-सचा पुं० [हिं० तेलिया+सं० पाषाण ] एक प्रकार होती है। यह वृक्ष चटगांव पोर सिलहट के जिलों मे बहुत का काला भौर चिकना पत्थर । उ.-महीं चद्रमरिण जो होता है । इसकी लकड़ी से प्राय भावें बनाई जाती हैं। दुवै यह तेलिया पखान !-- दीनदयाल (शन्द०)। तेलहँडा-सा पुं० [हिं० तेल+हडा ] [खी० अल्पा० तेलह] तेलियापानी–समा पुं० [हिं० तेलिया+पानी] बहुत सारा पौर तेल रखने का मिट्टी का बड़ा वरतन । स्वाद में बुरा मालूम होनेवाला पानी, जैसे प्राय पुगने कुपों तेलहंदी-सका सी० [हि तेल + हमे] तेल रखने का मिट्टी का से निकलता रहता है। छोटा बरतन। तेलियासुरग-सचा पुं० [हिं० तेलिया + सुरग] ३० तेलिया कुमैत' । तेलहन-सभा पुं० [हिं० तेल+हिं हन (प्रत्य॰)] वे बीज जिनसे तेलियासुहागा-समा पुं० [हिं० तेलिया+सुहागा ] एक प्रकार का वेन निकलता है। जैसे, सरसों, तिल, अलसी, इत्यादि। सुहागा जो देखने में बहुत चिकना होता है।