पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४८९

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देवी २१५ तेहबार तेली- पुं० [हिं० तेल + ई (प्रत्य॰)] [ी तेलिन] हिंदुपों की का नहीं। देखिए अब बल न तेवर पर पडे । पोखे, एक जाति जिसकी गणना शूद्रों में होती है। पू०५२ तेवर मैले होना=ष्टि से खेव, कोष या उदासीनता विशेषनाह्मवैवतं पुराण के अनुसार इस जाति को उत्पत्ति प्रकट होना। तेवर सहना = क्रोध या क्षोभ सहना । कोष कोटक स्त्री पौर कुम्हार पुरुष से है। इस जाति के लोग का विरोध न करना। उ०-जो पडे सिर पर रहें सहते उसे, प्रायः सारे मारत में फैले हुए हैं और सरसो, तिल भावि पेर पर न मौरो के तुरे वर सहे।नुभते. पृ०१६ । कर तेल निकालने का व्यवसाय करते हैं। साधारणत: द्विज २ भौंह । भृकुटी। मोग इस जाति के लोगों का छुपा हमा जल नहीं गहण करते। तेवरसी-सश स्त्री० [ देश० ] १. काटी। २ खीरा । महा.-तैलो का बैल-हर समय काम में लगा रहनेवाला तेवरा-सबा पुं० [ देश॰] दून में बजाया हुमा रूपक ताल । व्यक्ति। (संगीत)। तेलाची-संज्ञा स्त्री. [हिं. तेल+ मौंची (प्रत्य॰)] पत्थर, तेषराना'-क्रि० प्र० [हिं० तेवर + माना (प्रत्य॰)] १. भ्रम में कारया सकड़ी मादि की वह छोटी प्याली, जिसमें शरीर पड़ना । सदेह में पड़ना। सोच में पडना। २. विस्मित में लगाने के लिये तेल रखते हैं। मालिया। होना। पाश्चर्य करना । दे० 'तेवराना'। ३ मूच्छित हो तेवर-सबा श्री दिरा०] सात दीर्घ प्रयत्रा १४ लघु मात्रामों का एक जाना । बेहोश हो जाना। वास जिसमे तीन माघ'त मौर एक खाली रहता है। इसके तेवराना-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० तेवारी] तिवारियों की बस्ती । ३ . तेवरी-सवा श्री० [हिं०] दे० 'त्योरी'। तबले के बोल ये हैं-मिन् पिन् पाकेटे, घिन घिन घा, तिन् तेवहार-सहा पुं० [हिं० ] दे० 'त्यौहार'। उ०-सखि मानहि तेवहार सब, गाइ देवारी खेलि । —जायसीम. (गुप्त), तिन ताकेटे घिन घिन् था।पा। पु० ३५७ । तेवा -क्रि० वि० [हिं०] दे० 'यो'। उ०-बेवड साहिव लेवानल-सधा पु० [देश० ] सोच । चिता। फिकर । उ०---मन तेवड माती दे दे करे रजाई।-प्राररा०, पृ० १२३ । तेवान के राघव रा । नाहि बार पीठ दर पूरा- तेवर-वि० [हिं०] दे० 'तेहरा'। उ०-क्यू'लीजे गढ़ा बका जापसी (शब्द०)। माई, दोवर कोट पर तेवर खाई।-कबीर प्र०, पृ. २०६। तेवान-सभा पु हि . 1 दे० 'तावान' । उ.-गयो प्रसपा भूमि तेवन'- समा. [सं०] १. क्रीड़ा। २. वह स्थान, विशेषतः वन झूले, गयो मिसरि तेवान ।-जग० श०, पृ० १४॥ मादि जहाँ प्रामोदप्रमोद भोर क्रीड़ा हो । विहार । उपवन । तेवाना+-क्रि० म. [ देश० ] सोचना। चिंता करना। उ०-- ३ नजरबाग पाई बाग। (क) संवरि सेज धन मन भद संका। ठादि तेवानि टेककर देवनार-कि. वि० [हिं०] दे० यो"। उ०-जैसे श्वान भपावन लंका।--जायसी (शब्द॰) । (ख) रहौं लजाय तो पिय पसे राजित तेवन सागो संसारी ।-कबीर मं०, पृ० ३६१ । कहीं तो कहैं मोहि ढीठ। ठादि तेवानी का करी भारी वोट पसीठ ।-जायसी (शब्द०)। तेबर-मक्ष पुं० [हि. तेह (ोष)] १. कुपित रष्टि । क्रोध भरी चितवन । तेवारी-सचा पुं० [हिं॰] दे० 'तिवारी। मुहा०-तेवर पाना मुळ माना। चक्कर पाना । उ०-यह तेह -सा पुं० [सं० तक्षएय, हि० तेखना] १ क्रोध । गुस्सा। कहकर बड़ी बेगम को तेवर माया पोर धड़ से गिर पड़ीं।- उ०-हम हारी के के हहा पायन पारयो प्योर। सेह कहा फिसाना, भा०३, पृ. ६०९। तेतर चढ़ना-ष्टि का मजहूँ किए तेह तरेरे त्यौहा-बिहारी (शब्द०)।२ महकार। घमंड। ताय । उ०-धावै तेह वश भूप करहि हठ पुनि ऐसा हो जाना जिससे क्रोष प्रकट हो। तेवर चढ़ा लेना या पाछे पछि। प्रवषफिमोर समान भौर पर जन्म प्रयत न तेवर पढ़ाना% ऋद होना । दृष्टि को ऐसा बना लेना जिससे क्रोष प्रकट हो । ३०-क्यों न हम भी भाज तँवर लें चढ़ा। पैहैं।-रघुराज (शब्द०)। ३ तेजी। प्रचन्ता । उ.- है बुरे तेवर दिखाई दे रहे ।-चोखे०, पृ० ५२। तेवर शेष भार बाइक उतारे फन हू ते भूमि कमठ बराह छोडि भागे तनना = दे० 'तेवर पदना'। 3.-भाल भाग्य पर तने हुए क्षिति जेह को। भानु सितमानु तारा मडल प्रतीचि बैं सोख सिंघु पाहव तरणि तजे तेह को-रघुराज (पान्द०)। येतेवर उसके।--साकेत, पृ० ४२३ | तेवर बदलना या बिगड़ना = (१) बेमुरोवत हो जाना । (२) खफा हो जाना। तेहज -सर्व० [हिं० ते ] उसी को। उ०-दादू तेहज लीजिए उ.-मगर स्त्रियों की हंसी की पावाज फभी मरदानों में रे, साचौ सिरजनहार ।-दादू० बानी, पृ०५८ । जाती तो वह तेवर बदसे घर में माता !-सेवासदन, तेहनौसर्व० [हिं• ते] उसका । उ-ते पुर प्राणी तेहनौ मविचल पृ. २०५३ (३) मृत्युचिह्न प्रकट होना। तेवर बुरे नजर सदा रहत । -दादू०, ५.५८४ । पाना या दिखाई देना=अनुराग मे मतर पड़ना । प्रेम भाव तेहबार-सहा . [हिं०] दे॰ 'त्योहार'। उ.-'हरीर दुर में मंतर मापामा। तेवर पर बल पड़ना= दे० 'तेवर दुरे मेटि फाम को घर तेहबार मनायो।-भारतेंदु म, भा॰ २, पवर पाना या दिखाई देना। पर हमें तिरथी निगाहों