पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४९१

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तैरना वादा जि-सज्ञा पुं० [सं०] १. ग्यारह करणों में से चौवा फरण। तैयार-वि० [म.] १. जो काम में पाने के लिये बिलकुल उपयुक्त विशेष-फलित ज्योतिष के अनुसार इस करण में जन्म लेनेवाला हो गया हो। सव सरह से दुरुस्त या ठीक। लेस । जैसे, कपडा कलाकुशल, रूपवान्, वक्ता, गुणी, सुशील मौर कामी (सिलकर) तैयार होना, मकान (बनकर ) तैयार होना, होता है। फल (पककर) तैयार होना, गाड़ी (जुतकर) तैयार होना, २.देवता । ३. गडा। पादि। तेचिर-स . [सं०] १ तीतरों का समूह । २ तीतर । ३. गैडा । मुहा०-गला तयार होना- गले का बहुत सुरीला मोर रस- वैचिरि-संपुं० [सं०] कृष्ण यजुर्वेद के प्रवर्तक एक ऋपि का युक्त होना । ऐसा गला होना जिससे बदत मच्छा गाना गाया नाम जो वैशपायन के बड़े भाई ये। जा सके । हाथ तैयार होना = कला पानि में हाथ का बहुत अभ्यस्त मोर कुशल होना। हाप का बहुउ मंज जाना। वैचिरिक-संवा पुं० [सं०] तीतर पकड़नेवाला [को०] । २. उद्यत । तत्पर । मुस्तैद । से,—(क) हम तो सवेरे से चलने वेचिरीय-सका श्री० [सं०] १ कृष्ण यपूर्वेद की छिपासी शाखामों के लिये तैयार थे, भाप ही नहीं पाए। (ख) जव देखिए तब में से एक। माप सरने के लिये नयार रहते हैं। ३ प्रस्तुत । उपस्थित। विशेष-यह पाय अनुक्रमणिका मोर पाणिनि फे अनुसार मौजूद । जैसे, इस समय पचास रुपए तैयार हैं, बाकी कल ले वित्तिरि नामक ऋषि प्रोक्त है। पुराणों में इसके सबंध में लीजिएगा। ४. हृष्ट पुष्ट । मोटा ताजा । जिसका शरीर लिखा है कि एक बार वैशपायन ने ब्रह्महत्या की थी। उसके महत पच्छा और सुडौल हो। जैसे, यह घोड़ा बहुत तैयार प्रायश्चित के लिये उन्होंने अपने शिष्यों को यज्ञ करने की है । ५ संपूर्ण। मुकम्मल (को०)। ६ समाप्त । स्वस्म (को॰) । माशा दी। पौर सब शिष्य तो यज्ञ करने के लिये तैयार हो ७ पक्व । पुस्ता (को०)। ८ कटिबद्ध । प्रामादा (को०)। ६. गए, पर याज्ञवलय तयार न हए । इसपर वैशपायन ने उनसे सुसज्जित । पारास्ता (को॰) । कहा कि तुम हमारी शिष्यता छोड दो। याज्ञवल्क्य ने जो तैयारी-सझा स्त्री॰ [हिं० तैयार+ई (प्रत्य॰)] १. तैयार कुछ उनसे पढ़ा था वह सब उगल दिया, और उस वमन को होने की क्रिया या भाव । दुरुस्ती। सपूर्णता । २ तत्परता । उनके दूसरे सहपाठियों ने तीतर बनकर चुग लिया। मुस्तैदी। ३ शरीर की पुष्टता। मोटाई। ४. धूमधाम । २. इस बाबा का उपनिषद् । विशेषत प्रवंध मादि के सबंध की धूमधाम । जैसे,-चनको विशेष-यह तीन भागों में विभक्त है। पहला भाग सहितोप- बरात में बड़ी तैयारी पी। ५. सजावट । जैसे,-माज तो निपद या शिक्षावस्ती कहलाता है, इसमें व्याकरण पोर पाप घड़ी तैयारी से निकले हैं। ६ समाप्ति । खात्मा (को०)। मद्वैतवाद सबषी पाते हैं। दूसरा माग मानदवल्ली मौर ७ प्रयोग के काबिल होना (को०)। ८. रचना । निर्माण । तीसरा भाग भृगुवल्ली कहलाता है। इन दोनो समिलित सृष्टि (को०)। भागों को वादषी उपनिपद भी कहते हैं । तत्तिरीय उपनिषद् तैयों -सर्व० [सं० त्वम् हिं० ते ] तुमसे । उ०-माप करण में ब्रह्मविद्या पर उत्तम विचारो अतिरिक्त पुति, स्मृति मोर कारण हे तेरा ही कीना होया सब कुछ है। तैयों कुछ छपिया इतिहास संबधी मी पहत सी बातें हैं। इस उपनिपद पर नहीं।--प्राण, पृ० २०२॥ शकराचार्य का बहुत अच्छा माप्य है। तयो-क्रि० वि० [हिं०] २० 'त'। उ०-सहस अठासी मुनि तैत्तिरीयक-सका पुं० [सं०1त्तिरीय शाखा का अनुयायी या । जी जेवें तैयो न घटा बाजे। कहहिं कबीर सुपच के जेए घट पदनेवाला। मगन ह्वगाजे ।--कवीर (शब्द०)। तैत्तिरीयारण्यक-संशा पुं० [सं०] तैत्तिरीय शाखा का मारण्यक मंश जिसमें वानप्रस्यों के लिये उपदेश है। तैरणी--संवा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का क्षुप जिसकी पत्तियों पादि को वैद्यक में तिक्त पर तणनाशक माना है। देधिल-सच ( हि.] दे० 'तैतिल । पर्या-तेर । तेरणी । कुनीली । रागद । तैनात-वि० [अ० सप्रग्युन ] किसी काम पर लगाया या नियत तरना-फि० अ० [सं० तरण] १ पानी के ऊपर ठहरना । उतराना। किया हुमा । मुहर। नियत । नियुक्त जैसे,--भोट माह का इतजाम करने के लिये दम सिपाही वहां तैनात किए गए थे। पैसे, लकही या काग प्रादि का पानी पर तैरना। २. किसी जीव का अपने मग संचालित करके पानी पर चलना। हाप तनावी-सहा मी हि तैनात+ई(प्रत्य॰)] किसी काम पर पैर या मोर कोई अग हिलाकर पानी पर चलना। पैरना। लगने की क्रिया या भाव । नियुक्ति । मुकररी। तरना। तमित्य-मास पुं० [सं०] जड़ता [फो। विशेप--मछलि मादि जलजतु तो सदा जल मे रहते मोर तमिर--सथा पुं० [.] पारख का एक रोग [को॰] । विचरते ही हैं, पर इनके अतिरिक्त मनुष्य को छोड़कर बाकी विशेष-स रोग में प्राख में धुधसापन मा जाता है। अधिकांश जीव जल मे स्वभावत बिना किसी दूसरे की सहा- दया- ० [ देश ] मिट्टी का यह छोटा परतन जिसमें छोपी यता या शिक्षा के प्रापसे प्राप तैर सकते हैं। तैरना कई तरह - कपमा छापने के लिये रंग रखते हैं। महर । से होता है मोर उसमें वल हाथ, पैर, शरीर का कोई भंग