पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४९२

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खैरय २१३८ सैमपर्णक मषवा शरीर के सब पगों को हिलाना पड़ता है। मनुष्य को देश जिसका विस्तार श्रीशैल से घोल राज्य से मध्य तकया। तैरना सीखना पड़ता है पौर वैरने में उसे हाथों मोर पैरों इसी देश की भाषा तेलुगु कहलाती है। भयवा केवल पैरो को गति देनी पड़ती है। मनुष्य का साधारण विशेष-इस देश में कालेश्वर, श्रीशैल मोर मीमेश्वर नामक तैरना प्राय मेढक के तैरने की तरह का होता है। बहुत से तीन पहार है जिनपर तीन शिवलिंग हैं। कुछ लोगो का मत लोग पानी पर 'चुपचाप चित भी पड़ जाते हैं और पराबर है कि इन्ही तीनों शिवलिंगो के कारण इस देश का नाम तैरते रहते हैं। कुछ लोग तरह तरह के दूसरे मासों से भी बिलिग पड़ा है, इसका नाम पहले निकलिग था। महाभारत तैरते हैं। साधारण चौपायों को कैरने में अपने पैरों को प्राय में केवल कलिग शब्द माया है। पीछे से कलिग देश के तीन वैसी ही गति देनी पडती है जैसी स्थल पर पलने में, जैसे, विभाग हो गए थे जिसके कारण इसका नाम त्रिकलिग पड़ा। घोडा, गाय, हाथी, कुत्ता मादि। कुछ चौपाए ऐसे भी होते हैं उड़ीसा के दक्षिण से लेकर मदरास के भोर मागे ठक का जिन्हें तैरने में अपनी पूछ भी हिलानी पड़ती है, जैसे, ऊद- समुद्रतटस्य प्रदेश तैलग या तिलगाना कहलाता है। बिलाव, गविलाय मादि। कुछ जानवर केवल अपनी पूछ २ तैलग देश का निवासी। मौर शरीर के पिछले भाग को हिलाकर ही बिलकुल मछलियों यौ०~तलंग ब्राह्मर।। की तरह तैरते हैं. जैसे, हल । ये जानवर पानी के ऊपर भी । तैलंगा-सपा पुं० [हिं०] दे० 'तिलगा'। तैरते हैं और प्रदर भी। जिन पक्षियो पैरो में जालियां होती हैं, वे जल मे अपने पैरों की सहायता से चलने की भांति तेलगी-सया पुं० [हि लग+ ई (प्रत्य॰)] तैलग देशवासी। ही तैरते हैं, जैसे, वत्तक, राजहस पादि। पर दूसरे पक्षी तैरने तेलंगी-समालो. तैलग देश की भाषा ।

  • लिये जल में उसी प्रकार अपने पर फटफटाते हैं जिस प्रकार तैलंगी ---वि० तैलग देश संबधी । तैलग देश का।

उखने के लिये हवा मे । साप, मजगर पादि रेंगनेवाले जान- तैलंपाता-सधा श्री० [सं० तैलम्पाता स्वधा जिसमे मुख्पत तिल की वर जल में पपने शरीर को उसी प्रकार हिलाते हप तैरते हैं पाहुति दी जाती है (को०] । जिस प्रकार वे स्थल में चजत है। कछुए मादि मपने पारी तेल-सया पु० [सं०] १ तिल, सरसों प्रादि को पेरकर निकाला हमा पैरो का सहायता से तैरते। बहत से छोटे छोटे कीठे पानी तेल । २. किसी प्रकार का तेल । ३. घूप । गुग्गुल (को०)। की सतह पर दौडते मथवा चित पहकर तैरते हैं। तैलकंद-सचा पुं० [सं० तेल कन्द] तेलियाकंद । रय -सर्व० [सं० तव] तेरा। उ०-पच सखी मिली बहठी छह तेलकल्कज-सा पु० [सं०] खत्री (को०) । माद । तैरय लिखी सखी मोहि सुणाई।-बी. रासो, लकार-सना पुं० [सं०] तेली (जाति)। पु०७४। विशेष--ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार इस जाति की उत्पत्ति तेराई-सका बी० [हिं० तैरना+ ई (प्रत्य॰)] १.रने की क्रिया कोटक जाति की ली मोर कुम्हार पुरुष से बठलाई गई है। या भाव । २ वह पन जो तेरने के बदले मे मिले। दे० 'तेली'। तराक'—वि० [हिं० तैरना+माक (प्रत्य॰)] तैरनेवाला। जो अच्छी तैलकिट्ट-सच्चा पुं० [सं.] खली। तरह तैरना जानता हो। तेलकीट-मज्ञा पुं० [सं० ] तेलिन नाम का कीडा। तैराकर-सपा पु० वैरने में कुशल व्यक्ति । तैलक्षौम-सा पुं० [सं०] एक प्रकार का पल जिसको राख का तैराना-क्रि० स० [हिं० तैरना का प्रे० रूप] १ दूसरे को तैरने में प्रयोग घाव पर होता है कि । प्रवृत्त करना। तैरने का काम दूसरे से कराना। २. घुसाना। तैलचित्र-सज्ञा पुं० [सं० तेल+चित्र] तेल रंगो से बना हमात्रि । घंसाना । गोदना । जैसे,--चोर ने उसके पेट पे छुरी तेरा दी। तैलचौरिकासमा श्री० [सं०] तेलपट्टा (को०) । तेरू-वि० [हिं० तैरना] तैराक । तैरनेवाला। उ०-दरिया गुरू तैलत्व-सशा पुं० [सं० ] तेल का भाव या गुण । तरू मिलाकर दिया पैले पार।-सतवाणी० पु१२। तैलद्रौणी-मा स्री [सं०] काठ का एक प्रकार का बड़ा पात्र को सर्थ-सबा पुं० [सं०] वह कृरय जो तीथं में किया जाय। प्राचीन काल में बनाया जाता पा मौर जिसकी लबाई मादमी सर-वि० तीर्थ सरधी। की लगाई के बरावर हुमा करती थी। विशेष--इसमें तेल भरकर चिकित्सा के लिये रोगी लिटाए जाते तैर्थिक-सम्ब० [सं०] १ शास्तकार । जैसे, कपिल, फणाद आदि। ये मोर सड़ने से बचाने के लिये मृत शरीर रखे जाते थे। २ साघु । संत (को०) । ३ तीर्थस्थान का पवित्र जल (को०)। राजा दशरप का घरीर कुछ समय तक तेलद्रोणी मे ही रखा शिकर-वि. १. पवित्र । २ तीर्थ से मानेवाला। तीर्थ से सबद्ध । गया था। ३ तीथों पथवा मंदिरों में जानेवाला (को०)। तेलघान्य-मधा पुं० [सं०] धाग्य का एक वर्ग जिसके मतर्गत तीनों तयंगवनिक-सहा पुं० [सं०] एक प्रकार का यज्ञ। प्रकार की सरसों, दोनो प्रकार की राई, मस मोर कुसुम के - यग्योन-वि० [सं०] तिर्यक् योनि सवधी [को०] । अलंग-सम • [सं० मिलिङ्ग] १. दक्षिण भारत का एक प्राचीन तैलपर्णक-सक पुं० [सं० ] गठिवन ।