पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४९३

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देखपनिक २१६ तेशपणिक-सम [सं०] १ एक प्रकार का घदन । २. लाल तैलिकर-वि० तेल सबंधी। पवन । ३ एक प्रकार का वृक्ष । तेलिक यंत्र-समा० [सं० तैलिक यन्त्र ] कोल्हू। उ.-समर वैज्ञपर्णिका-सहा नौ [.] तैमपर्णी [को॰) । सैलिक मत्र तिल तमीचर निकर पेरि डारे सुभट घालि घानी, तेखपर्णी-सका स्त्री० [सं०] १. सलई का गोंद। २ चंदन। .. -तुलसी (शब्द०)। शिलारस या दुरुष्क नाम का गंधद्रव्य। सलिन-सया पुं० [सं० तलिनम् ] तिल का खेत [को०)। वैषपा, तैलपापिका-सम सी० [सं०] तेखचट्टा । चपड़ा [फो०] । तैलिनो-सा श्री० [सं० ] वत्ती। तेलपाती-सका पुं० [सं० तैलपायिन् ] १. झीगुर । चपला (फोड़ा)। जिशाला-सक्षा स्त्री [सं०] वह स्थान जहाँ तेल पेरने का कोल्हू २ तलवार (को०)। चलता हो। तेलपिंज-संवा पु० [सं० तेलपिज ] सफेद तिल [को०] । वैली-मशा पुं॰ [सं० तैलिन् तेली। तेजपिपीलिका-सका बी[सं०] एक प्रकार की चोटी। तेलीन-सहा [सं० तैलिनम् ] तिल का खेत को वलपिष्टक-मन [ मे] खली। वैलीशाला-सा लौ० सं० तैलिन्गाला] तेल पेरने का स्थान [को०] । तलपीत-वि० [सं०] जिसने तेल पिया हो [को०] । तैल्वक'-वि० [सं०] लोष की लकड़ी से बना हमा। तबापूर-वि० [सं०] (दीपक) जिसमे तेप्स भरने की भावश्यकता तैल्वक ----सस पुं० [सं०] लोप । न हो (को। तैश-सझा पुं० [अ०] मावेशयुक्त कोष । गुस्सा । लप्रदीप-सा पुं० [सं०] तेल का दीपक [को०)। मुहा०-तैश दिखाना=ऐसा कार्य करना जिससे कोई ऋद्ध हो । तलफल-संका पुं० [सं०] १ इंगुदी।२ बहेंडा । ३ तिलका। क्रोध चढ़ाना । तैश में माना-क्रुद्ध होना । बहुत कुपित होना। तैलविंदु-सबा पुं० [सं० तैल+विन्दु ] किसी सक्षिप्त उक्ति को बढ़ा तैय-मज्ञा पुं० [सं०] चाद्र पौष मास । पौष मास की पणिमा के चढ़ाकर कहना । --किसी सक्षिप्त उक्ति को खूब बढ़ाकर दिन तिष्य ( पुष्य ) नक्षत्र होता है, इसी से उसका नाम प्रहण करमा तैलबिंदु कहा गया है।-सपूर्ण अभि० प्र०, तैप पा है। पृ. २६३। तैषी-समा श्री० सं०] पुष्य नक्षत्रयुक्ता पौर्णमासी। पूस तेलभाविनी-सशास्त्री. ] चमेली का पेड़। की पूणिमा। तलमालो- श्री. [सं०] तेल की बत्ती । पलीता। तेसा-वि० [सं० तादृश, प्रा० तास] दे० 'सा'। उ०-पवन बाइ तेलयंत्र- पुं० [सं० तैलयन्त्रकोल्हू। वहं पहुंचे चहा। मारा तैस टूटि भुई बहा ।- जायसी प्र. (गुप्त), पृ०२२६ । तैलरंग-स ० [सं० तेल+रङ्ग] एक प्रकार का रग जो तेल में मिलाकर मनाया जाता है और जिस रग से तैलचित्र तेसई -वि० [हि. तस+६ (प्रत्य॰)] तैसे ही। वैसे ही। उसी प्रकार के। उ-तेमई मंत्री पर सब पुरुष प्रधान ।- बनते हैं। प्रेमघन, भा० १, पृ०७०।। तलवल्ली-सहा स्त्री॰ [सं०] शतावरी । शतमूली। तेसही -वि० [हिं० तैस+ही (प्रत्य॰)] दे॰ 'तैसई'। 30-वरिह जसाधन-सा पुं० [सं०] शीतल चीनी । कबाब चीनी । विजेत्री माप हूँ कहूँ श्यामसु दर तेसही !~-प्रेमघन॰, तलस्फटिक-सहा पुं० [सं०] १. अवर नामक गधद्रव्य । २तृण- भा० १, पृ०११६। मरिण । कहा । तैसा-वि० [सं० ताश, प्रा० ताइस] उस प्रकार का। 'पैसा' का तुलस्यंदा-सक की[सं० तैलस्यन्दा1१ गोकर्ण नाम को लता। पुराना रूप। मुरहटी । २.काकोसी नाम की मोपषि। तैसील -मचा स्त्री० [हिं०] दे० 'तहसील"। उ०-मिलिक तेलावुका-सदा श्री० [सं० तैलाम्बुका ] तेलचट्टा । चपडा [को०)। वादिसाहूँ का अमल को उठाया। तीन चरस होगा तैसील तलाक-वि० [सं०] जिसमे सेल लगा हो। तैलयुक्त । ३०- कून माया । शिखर०, पृ०२३ ॥ उरती भीनी तेलात गंध, फली सरसों पीली पीली!-ग्राम्या, तैसे-कि.वि.हि.1 दे० 'वैसे। तेसों -वि० [हिं०] दे० 'वै | उ.- रंग रंगीले संग सखा गन तमाश्य-सबा पुं० [सं०] शिलारस या तुरुष्क नाम का गधद्रव्य । रंगीली नव बधु तेसोंई जम्पो रंगीली वसत रामु ।-नद. तंजागुरु-सबा पुं० [सं०] अगर की लकडी । ग्रं॰, पृ० ३६७। तेलाटी-सका सी० [सं०] नरें। मिष्ट । तेसोg+-क्रि.वि० [हिं०] दे० तसे'। 60-मंगान में कोनो तलाभ्यंग-सबा ए तलाभ्यङ्गपारीर में तेल मलने की मृगमद भगराग तसो मानन भोढ़ाय लीनो स्याम रग सारी क्रिया 1 तेल की मालिश । मैं -मति• ग्र०, पृ० ३१३॥ वैखिक'-सा पुं॰ [सं०] तिलों से तेल निकालनेवाला ! तैली। तल-कि. वि० [हिं०] दे० 'त्यों'।