पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४९४

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साँघर २१४० तोटक तोपर -सज्ञा पुं० [हिं०] १२० तोमर'। उ.--सब मंत्री फरम दिगपात सकल जग जाल जासु करतल तो।-तुमसी परधान पान पर। गए जहां पावासर तोंभर-पु. रा०, ११४६४ । २. तोमर नामक प्रस्य। तोडg-सा पुं० [सं० तोय] पाना । जल । उ.-~दीठ होने तौद-सज्ञा स्त्री० [सं० तुन्द-तुन्दिल ] पेट के मागे का बढ़ा हुमा मोर दिय चिरक रूप रस तोह। मयि मो घट प्रोतम लिए माग । पेट का फुलाव । मर्यादा से मषिक फूला या मागे की मन नवनीत बिलोइ!-रसनिधि (शन्द०)। भोर बढ़ा हुमा पेट। तोइलर--अव्य० [सं० तत+अपि] फिर भी! 30-मारोपण क्रि० प्र०—निकलना । करणमणइ साल्ह कुमर बह साठा-ढोला०,१०६.५।। मुहा०-तोद पचकना = (१) मोटाई दूर होना। (२) शेखी तोई-सा सो• [देश॰] १ घगे या फुरते मादि में कमर पर सगी निकल जाना। हुई पट्टी या गोट ! २. चादर या दोहर मादिकी गोट । ३. सौदल-वि० [हिं० तोद+ल (प्रत्य॰)] तीयवाला। जिसका पेट लहंगे फा नेफा! मागे की मोर बढ़ा मोर खूब फूला हुमा हो। तोई -सा [हिं०] दे० 'तोय'। 30--ौं लगि ठोई गेम साँदा'-सधा पुं० [देश॰] तालाब से पानी निकलने का मार्ग। बोले, तौं लगि माया माहीं।--पलदु०, भा०३, ०७२। साँदा-सा पुं० [फा० नोदा] 1. वह टोला या मिट्टी की दीवार, वोल-प्रप० [हिं०] दे० 'क'। 30-तोक दुसग पार बहिब जिसपर तीर या बंदूक चलाने का अभ्यास करने के लिये हरह्यो है।--दो सो पावन०, मा० १, पृ० १५३ । निशाना लगाते हैं। २ ढेर । राशि । (क्व०)। वोक-कपु०सं०] १.शिशु । प्रपत्य । लटका या सकी। २. सॉ दियल-वि० [हिं०] ३० तोंदल' ।। श्रीकृष्णचंद्र एक सखा का नाम । ताँदी-सबा बी० [सं० तुएडी] नामि । ढोढी। . तोकका पुं० [सं०] चातक (को०)। तोदीजा--वि० [हिं०] १० [वि० सी० तोदीली} दे० 'तोदल'। तोकना-कि. स० [2] उठाना। 30-तेक तोकि तस्यो तुरी।। तौंदमक्ष-वि० [हिं. तोदु मल्ल] दे० 'दिल'। 30-ौद बना -पु. रा०,७११०५॥ लो, नही उल्लू बनाकर निकाल दिए जामोगे या किसी तादुमल लोकरा--सया श्री० (देशका एक प्रकार की लता जो पफीम के पौषों को पकड़ो।-काया, पृ० २५१ । पर लिपटकर उन्हें सुखा देठी है। ताँ दैल-वि० [हिं० तोद + ऐल] दे॰ 'तोदल'। तोफवत् --वि० [सं०] [वि स्त्री० तोकवती] पुत्रवान [को०] । मॉन -सर्व० हJ० वीन'। 10-होत दोघं (जो) मत है तोकाँt- ० [हि. तो+को] तभको। तुझे। उ.--मी हरि सम सब पल तोम-पोद्दार मि०प्र०, पृ० ५३३ । विषि रूप दोन्द है तोका-जायसी ग्र०(गुप्त), पृ० २६१ । बाबा-सा ० [हिं०] दे० 'या'। तोका -सर्व० [हिं. तो+को तुझको । तुले। उ.-करसि दोषी-सचा खी० [हिं०] ३. 'तू गी'। बियाह धरम है तोफा 1--जायसी प., पृ० ११५॥ तोर -सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'तोमर' । उ०-- तहँ होर तीपन तोक्म-सा ० [सं०] १ मपुर। २.जो का नया भकुर । हरा वाकिये, रन विरद जिनके वाकिये।-पाकर प्र०, पृ०७॥ पोर कच्चा जौ। ४ हरा रग। ५. बादल । मेष । ६ कान सो'-सर्व० [सं० तव] तेरा। का मैल । तोर-मध्य- [सं०] तब उस दशा में । जैसे,—(क)यदि तुम तोखgtan पुं० [हिं॰] दे॰ 'तो' या 'सतोप। उ.-विरिरा कहो तो मैं मी पत्र लिख दूं। (ख) मगर वे मिलें तो होइ मत कर तोखू । किरिरा फिहे पाव धनि मोहू!-जायसी उनसे भी कह देना । उ०—जो प्रभु प्रवसि पार गा पहह । . पु. ३३४॥ तो पद पदुम पखारन कहह !-तुलसी (शब्द०)। तोखनाल-क्रि० स० [हि तोख] प्रसन्न करना। सतुष्ट करना । विशेष-पुरानी हिंदी में इस शब्द का, इस पर्य मे प्रयोग प्राय उ.---तिय ताको पविवरता भई। पति हो पोख्यो दोस्रो __'जो' के साथ होता था। चहै ।-नद.न.पृ० २१२। वो-प्रप० [सं० तु] एक प्रव्यय जिसका व्यवहार किसी शन्द पर तोखार-सपा पुं० [हिं०] दे. 'तुखार'। .--पापरि तबह देह पग जोर देने के लिये प्रथवा कभी कभी यों ही किया जाता है। पैरी मावा नाक तोसार 1--जापसीप (गुप्त), १०३०८ । बो-(क) पाप चलें तो सही, मैं सब प्ररंप कर देगा। दोगा--सहा [हिं० दे० तोह उ.-जातिपुत्र सिंह ने एपस (७) अरा बैठो हो। (ग) हम गए तो थे, पर वे ही नहीं का बना एक महामल्यवान तोगा पहना था। -वैशाली, मिखे। (घ) देखो तो कैसी बहार है? पृ० १२४॥ तो-सर्व० [सं० तय] तुझ । तू का वह रूप जो उसे विभक्ति लगने तो -वि० [हिं०] दे० तुच्छ' । उ०-सेना तोय तपस्या सम्मल। के समय प्राप्त होता है, जैसे, तोको। -रा०६०, पृ०६५ तो- कि. म. [हिं० हतो (= पा)] पा। (क्व०) । उ०-काल तोटफ-सचा ई० [सं०] १ वर्णवत्त जिसके प्रत्येक चरण में पार