पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४९९

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दोयर २१४५ तोरण होयर--प्रव्य' [हिं० तो तो भी। फिर भी। उ०-चार तोययंत्र--सज्ञा पुं० [सं० तोययन्त्र] १ जलघडी । २ फौवारा [को०] । कुल चल्लणी, वियो न पल्ले कोय। चाड न घट्ट खूद की तोयरस-सज्ञा ५० [सं० ] पार्द्रता । नमी [फो०] । सोस पलटू तोय !-रा० रू०, पृ० ११६॥ वोयराज-सज्ञा पुं० [सं०] १ समुद्र । २ वरुण को। तोय-सर्व० [हि. तो] दे० 'तुझे । उ०-- मैं पठई वृषभानु के, तोयराशि-सज्ञा पुं० [सं०] १ समुद्र । २ तालाव या झील कोना करनि सगाई तोय!-नंद००५.१६५ नोयवल्ली-सज्ञा बी० [सं०] करेले की नेल । तोयकर्म-सा पुं० [सं० तोयकमन्] तर्पण। तोयवृक्ष-सज्ञा पुं० [सं०] सेवार । नोकाम-सबा पुं० [सं०] एक प्रकार का वेंन जो जल के समीप तोयवेला--सज्ञा स्त्री० [सं०] जल का किनारी । तीर । तट [को०] . उत्पन्न होता है। वानीर । तोयव्यतिकर-सक्षा पुं० [सं०] संगम । जैसे, नदियों का (को०] । तोयकाम–वि० १. जल चाहनेवाला । २. प्पासा (को॰] । तोयशुक्तिका-सया खी० [सं०] सीपी [को०] । तोयकुंभ-मश पुं० [सं० तोयकुम्भ ] सेवार। तोयशूक-सज्ञा पुं॰ [ सं० ] सेवार [को०)। तोयकृच्छ-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का व्रत । वोयसपिंका-सया पुं० [सं०] मेंढ़क [को०] ! विशेष—इसमें जल के सिवा और कुछ माहार ग्रहण नहीं किया तोयसूचक-सचा पुं० [सं०] १ ज्योतिष में वह योग जिसमें वर्षा जाता । यह व्रत एक महीने तक करना होता है। होने की सूचना मिले । २ मेढक (को०)। तोयकीड़ा-पश पुं० [सं०तीय क्रीडा ] जल में खेल करना । जल- तोयांजलि-सचा श्री० [सं० तोयाञ्जलि ] दे० 'तोयकर्म' [को०] । क्रीड़ा को। तोयाग्नि-सहा झी० [सं०] वाडव अग्नि [को०] । तोयगर्भ-सज्ञा पुं० [सं०] नारियल (को०) तोयात्मा-सधा पुं० [सं० तोयात्मन् ] ब्रह्म [को०] । तोयचर-सधा पुं० [सं०] जलचर [को०)। तोयाधार-सधा पुं० [सं० ] पुष्करिणी । तालाब । तोडिंप–समा पुं० [स० तोडिम्ब 1 पोला। पत्थर । करका । तोयाधिवासिनी-सशा स्त्री० [सं०] पाटला वृक्ष । तोयरिंभ-सश [सं० तोयडिम्म ] दे० 'तोयडिव' [को०] । तोयालय-सधा पु०स०] समुद्र । सागर [को॰] । तोयद-सदा पुं० [सं०] १ मेघ । बादल । २ नागरमोथा । ३ घो। ४ वह जो जल दान करता हो (जलदान का माहा- तोयाशय-सहा पु० [सं०] १ झील । २ कुना कूप । ३ जख- स्म्य बहुत अधिक माना जाता है।) सग्रह (को०। तोयद-वि० जल देनेवाला। तोयेश-सधा पुं० [सं०] १ वरुण । २ पातभिषा नक्षत्र। ३. पूर्वा- पाड़ा नक्षत्र वोयदागम-सपा पुं० [सं०] वर्षा पातु । वरसात। तोयदात्यय-संशपुं० [सं०] शरद ऋतु [को०] । तोयोत्सर्ग-सा पुं० [सं०] वर्षा [को०] । तोयघर-सहा पुं० [सं०] मेघ । बादल। तोर-सया पुं० [सं० तुघर ] भरहर । तोयधार-सश सं०] १. मेघ । २ मोया । ३ वर्षा (को०)। वोर -पञ्चा पुं० [हिं०] दे० 'तोड' । उ०--मादि चहाण रजपूती का तोर । पाछ मुसलमान बादसाही का जोर।- वायधि-सा पुं० [ १ समुद्र । सागर। २. चार की शिखर०, पृ० ५५। सख्या (को०)। तोयधिनिय-पझा पु० [सं०] लौंग ! तोर -वि० [हिं०] दे० 'तेरा' । वायनिधि-सया पुं० [सं०1१ समद्र। सागर ।२ चार की तारपुर-सवा खा अ० तार तारा तरीका। ढग। उ०- सध्या (को॰) । तो राखे सिर पर तिको, तज जबरी रा तोर !-घाँकी. ग्र०, भा॰ २, पृ० ११५ । तोयनीबी-सहा क्षी० [सं०] पृथ्वी ! तोयपी तोरई-सचा जी• [हिं॰] दे० 'तुरई। -सधा खी० [सं०] करेला । तोरकी-सक्षा स्त्री० [ देश ] एक प्रकार की वनस्पति जो भारत के तोयपिप्पली-सज्ञा स्त्री. ] जलपिप्पली । गरम प्रदेशों मोर लका मे प्राय. घास के साथ होती है। वीयपुष्पो-सा मी.10] पाटला वृक्ष । पांढर। विशेष-पश्चिमी भारत मे मकाल के दिनो मे गरीब लोग इसके तोचप्रष्टा-सम्ना स्त्री० [सं०] पाटला वृक्ष । पांढर [को०] ! दानों मादि की रोटियां बनाकर खाते थे। वायप्रसादन-सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'तोयप्रसादनफल'। तोरण-सना पुं० [सं०] १ किसो घर या नगर का बाहरी फाटक । तोयप्रसादनफल-सज्ञा पुं० [सं०] निर्मली। बहिर । विशेषत वह बार जिसका ऊपरी भाग मडपाकार वायफला-सहा बी० [सं०1रज या कफडी ग्रादि की बेल । तथा मालापों घौर पताकामो मादि से सजाया गया हो। तोयमल-संगापुं० [सं०] समुद्र का फेन (को०] । उ.--स्वच्छ सुदर मौर विस्तृत घर बने, इन्द्रधनुषाकार। वोयमुच्-सया पुं० [सं०] १. बादल । २ मोथा । तोरण हैं तने । साकेत, पु. ३ । २. वे मालाएं पादिजो।