पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५०१

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पोशा २१४७ सौसा दोशा'-सम पुं० [फा० तोशह] १. वह खाद्य पदार्थ जो यात्री मार्ग सोसयी-सवा बी० [हिं०] दे० 'तोशक' । उ०-गरम्म रूम तोसयं के लिये अपने साप रख लेता है। के पलग पोसयं -पु. रा०, १०। ५४॥ यौ०-तोशे प्राकवत = पुण्य । धर्माचरण (जिसमें परलोक पने)। तोसल -सञ्ज्ञा पुं० [सं० सौपल] दे० 'तोषल'। साधारण खाने पीने की चीज । जैसे, ठोशा से भरोसा तोसा -सा पुं० [हिं० दे० 'तोशा' । उ०—कुछ गाठि खरपी तोबार-बापुं० [देश॰] एक प्रकार का गहना जिसे गांव को मिहर तीसा खैर खुवीहा थीर बेरै बानी, पृ. ३३ । स्त्रियाँ बरोह पर पहनती हैं। होताखाना--सच्चा पु० [हिं०] दे० 'तोशाखाना' । 30-वेरे काज गजी होशालाना--सक्षा पुं० [तु. तोपक+फा० खानह] वह बड़ा कमरा गज चारिक, भरा रहे तोसाखाना !--पतवाणी०, पृ०७।। या स्थान जहाँ राजामों और अमीरों के पहनने के बढिया तोसागार@t-सधा पुं० [हिं० तोस+सं० प्रागार] दे॰ 'तोशाखाना'। कपड़े मौर गहने प्रादि रहते हों। वस्त्रों मोर पाभूपणो माथि तोसी-सर्व [हिं० तो+सौ]तुझसे। उ०पही तोतों नद लाहिले का भडार। 30-जो राजा मपने वपतर या खजाने, तोशे झारोगी। मेरे सग को दुरि जाति है मटुकी पटकि के ग- खाने को कमी नहीं सम्हालते, जो राजा अपने बड़ो की धरो- रोंगी।-नद. य०, पृ० ३६१। हर शस्त्रविद्या को जड़ मूल से भूल गए, उनके जीतव पर तोहफगी-प्रया खी० [पा तोहफहू + फा० गी (प्रत्य॰)] भलाई। धिक्कार है।-श्रीनिवास० ०, पृ०८५। मच्छापच । उम्दगी। दोष'- सशपुं० [सं०] प्रघाने या मन भरने का भाव । तुष्टि। तोहफा'-सज्ञा पुं० [म. तोहफहू] सौगात । उपायन । भेट । उपहार । सतोष । तृप्ति । २ प्रसन्नता ! मानद । ३ भागवत के अनुसार तोहफा - वि० पच्छा । उत्तम । बढ़िया। स्वाय मुव मन्वतर के एक देवता का नाम । ४. श्रीकृष्ण- तोहमत-सा श्री० [प्र.] मिथ्या ममियोग। वृथा लगाया हमा चद्र के एक सस्ता नाम। दोष । झूठा कलका तोप-वि० [० तप] पल्प । थोडा 1 -(मनेफार्थ०) । कि० प्र०—जोड़ना ।-देना।-धरना-लगाना ।-लेना। ठोपक-वि० [सं०] संतष्ट करनेवाला । तोप देने या तृप्त करनेवाला । मुहा०—तोहमत का घर या हट्टी = वह कार्य या स्थान जिसमें बोपण-सका पुं० [सं०] १ तति । सतोप। २ संता करने की वृथा फलक लगने की समावना हो। त्रिया या भाव। तोहमती-वि० [अ० तोहमत + फ़ा० ई (प्रत्य॰)] झूठा अभियोग खोपपी-सबा की• [सं०] दुर्गा [को॰] । लगानेवाना। तोहरा-सवं० [हिं०] दे० 'तुम्हारा'। उ०-हमह सा सव तोहरे वोपना -कि.प्र. [सं० तोष] १ सतुष्ट करना । तृप्त करना। पायब |----कबीर सा०, पृ० ५३१ । 3-प्रभु सोपेउ सुनि मंकर वचना। भक्ति विवेक धर्म जुत सोहार-सवं० [हिं०] दे० 'तुम्हारा रचना ।—मानस, ११७७) २ सतुष्ट होना । तृप्त होना। तोहित-सवं० [हि तू या ते] १ तुझको। तुझे। २ तुम्हारा । तापपत्र -सक्षा पुं० [सं०] वह पत्र जिसमें राज्य की भोर से जागीर मिलने का उल्लेख रहता है । वस्शिानामा । २०-हिव मालवणी वीनवइ, हूँ प्रिय दासी तोहि।- ढोला०, वायल-समा पुं० [सं०] १ कस एक असुर भल्ल का नाम जिसे तोहे -सर्व० [हिं०] दे॰ 'तोहि' ! उ०-चरण भलि नहि तुप धनुयंत्र में श्रीकृष्ण ने मार डाला था। २ मूसल । रीति एहि मति तोहे फलक लागल ।-विद्यापति, पृ. २३० । वोपार- सचा पुं० [हिं० ] दे० 'तुखार'। उ०—तुझक तोयाहि तौर-मध्य० [हिं०] २० 'त'। उ०—तो लो रहि प्यारी जों घलल हाट भमि हेडा मगह-कोति०, पृ०४८ 1 लौ लाल ही ले माऊँ।-नद प्र०, पु० ३७१। वपित-वि० [01 जिसका तोष हो गया हो, अथवा जिसे तृप्त किया ' तौर-क्रि० वि० [हिं०] दे० 'त्यों । उ०---ऐसे प्रमु 4 कीन हंकारे। गया हो । तुष्ठ । तृप्त । तौं वा घ. गुपाल पियारे । नद० प्र०, पृ० १६२ । तोयी-वि० [सं० तोपिन् १ जिससे संतुष्ट हुना जाय । २ सतुष्ट तौकना-क्रि० प्र० [हिं०] दे॰ 'तीसना'। करनेवाला । प्रसन्न करनेवाला। (विशेषत समासात में ही तौबर -सधा पुं० [हिं०] दे० 'तोमर'। उ०-लोहाया तोंवर अभंग प्रयुक्त)। मुहर सम्ब सामत ।-पू. रा०,४ । १९ । सास-बापुं० [हिं०] दे. तोष'। उ.-- सूर घपाए खुज्जडो तौसा-सधा खो० [सं० ताप, हिं. ताव+ऊष्म, हिं० उमस, मौस] मे उरपा तोस।-रा० म०, पृ. ७६ ! वह प्यास जो धूप खा जाने के कारण लगे और किसी भांति बोसको-सपा पुं० [हि दे० 'तोशक'। उ०-गुन फर पलंग ज्ञान न वुझे। कर तोसफ सरस तकिया लगावो। जो सुख चाहो सोई सतमहल तोसना-क्रि० स० [हिं० तास १ गरमी से झुलस जाना। गरमी वहर दुक्त नहिं पायो । वीर शम, भा० १,१०१०। फें कारण सतप्त होना । २ प्यासा होना । पिपासित होना। वासवान-सा प्रतिपादान', उ0-तोसदान चकमक तौसा-सै० पु० [सं० ताप, हि० ताव+सं०महि० ऊमस. पौस] पचहा गोलीन भरानी ।—प्रेमधन, भा० १, पृ० १३ । अधिक ताप । कड़ी गरमी।