पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तौहीन त्यारे तौहीन-सद्या स्त्री० [4] मपमान । प्रतिष्ठा । बेइज्जती । क्रि० प्र०—करना। यौ०-तौहीने भदालत न्यायालय का अपमान । यौ०-त्यागपत्र । तौहोनी-सहा स्त्री० [म. तौहीन ] दे० 'तौहीन'। २ किसी बात को छोड़ने की क्रिया। मे प्रसस्य का त्याग । तौह -प्रव्य-हिं० तक ] तब भी। तो भी। तिसपर भी। ३ सपथ या लगाव न रखने की क्रिया। ४.विरक्ति मादि के उ०-पानी माहीं घर करै, तोहू मरे पियास ।-कबीर सा०, कारण सांसारिक विपर्यो पौर पदायाँ मादि को छोड़ने की क्रिया। पृ०५। त्यक्त- वि० [सं० ] छोडा हमा। त्यागा हुमा। जिसका त्याग कर विशेष-हिंदूपों के धर्मप्रथों में इस प्रकार के त्याग का बहुत दिया गया हो। १५-निकल गए सारे कटक से व्यथा प्राप फुछ माहात्म्य बतलाया गया है। स्याग करनेवाला मनुष्य ही व्यक्त हुई।--साकेत, पृ० ०७६ । निष्काम होकर परोपकार के तपा भन्यान्य शुभ कर्म करता रहता है पौर विषय वासना या सुखोपभोग मादि से किसी त्यक्तजीवित-वि० [सं०] १. जो प्राण छोड़ने को तत्पर हो । प्रकार का सबध नही रहता । ऐसा मनुष्य मुक्ति का अधिकारी मरने को तैयार । २ बड़े से बड़ा खतरा उठाने की समझा जाता है। गीता में त्याग को सन्यास की ही एक विशेप तैयार [को०] 1 मवस्था माना है। उसके भनुसार काम्प धर्म का परित्याग त्यतप्राण--वि० [सं०] दे० 'त्यक्तजीवित' को०) । तो सन्यास है और फी के फर की प्राचान रखना त्याग त्यक्कलज्ज--वि० [सं०] जिसने लज्जा त्याग दी हो। निलंज । है। मनु के पनुसार संसार की पौर सर चीजें वो स्याज्य बेल्या [को०)। हो सकती हैं, पर माता, पिता, स्त्री और पुत्र स्याज्य नहीं है। त्यक्तविधि-वि० [सं०] नियमों का पतिक्रमण करनेवाला । नियम ५ दान । ४ फग्यावान (डि.)। न माननेवाला [को०] । त्यागना-क्रि० स० [सं० त्याग] छोड़ना । तजना । पूषा करना । त्यक्तव्य-वि० [सं० ] जो छोडने योग्य हो। त्यागने योग्य । त्याग करना। - त्यागलो काम ना त्यागलो कोष । त्यक्तश्री-वि० [सं०] भाग्यहीन । प्रभागा [फो०] । -प्राण, पृ० ११५ त्यक्ता--वि० [सं० स्यक्त ] त्यागनेवाला । जिसने त्याग किया हो। संयो० कि०-देना। त्यकाग्नि-वि० [सं०] गृहाग्नि का परित्याग करनेवाला त्यागपत्र-सया पुं० [सं०] १. वह पन जिसमें किसी प्रकार के त्याग (ब्राह्मण )। का सल्लेख हो । २ इस्तीफा । ३ तिलाकनामा । त्यतात्मा-वि० [सं० श्यक्तास्मन् ] निराश । हताश [को०] । त्यागवान् ---वि० [सं० त्यापवत् वि. स्त्री त्यागपती] जिसने स्याम त्यग्नायि-सक्षा पु० [सं० स्यग्नायिस् ] एक प्रकार का साम । किया हो अथवा जिसमें रपाप करने की शक्ति हो । त्यागी । त्यजण-सा पुं० [सं० त्यजनीय ] त्याग। उ०-शब्द स्पर्श के है त्यागी-वि. [सं०यागिन् ] जिसने सब कुछ स्थान दिया हो । स्वायं रूप त्यजणं । त्यो रसगध नाही भजणं ।--सुदर० प्र०, या सोसारिक सुख को छोड़नेवाला । विरक्त। भा०१, पृ. ३७ । त्याजक-वि० [सं०] तज्नेवासा । स्थागो (को॰) । त्यजन-मज्ञा पुं० [सं०] छोड़ने का काम । त्याग। त्याजन-सहा पु० [सं०] त्याग । त्याग करना [को०) । त्यजनीय-वि० [सं०] जो त्यागने योग्य हो । स्याज्य । त्याजना--क्रि० स० [मस्यजन] त्यागना । उ.--पति मग त्यज्यमान-वि० [सं०] जिसका त्याग कर दिया गया हो। जो अंग अंग भरे रग, सुकर मुकर निरखत नहि त्याजे !--पोद्दार छोड़ दिया गया हो। अभि.न.,५०३८० त्या तिक--प्रव्य. [?] तब तय (टीका०)। उ०-पग्यो न त्याजित-वि० [सं०] १. जिससे त्याग कराया गया हो या छुदवाया दिल प्रभुरै पद पकज, भिसत न रातिफ भेरे।-रधु० रू० गया हो। २. जिसका अपमान कराया गया हो। ३. छोड़ा पु०१८ हुमा । त्यक्त (को०] । त्या@-सर्व० [सं० तत् ] दे० 'तिस'। 7-ज्या की जोरी त्याज्य–वि. [सं०] त्यागने योग्य । को छोड़ देने योग्य हो। वीघड़ी त्या निसि नीद न पाई।-ढोला०,६०५८ । त्यारा--वि० [हि.1 दे० 'तैयार। 10-एक कटे एकै पढे एक त्याँहा - सर्व० [सं० तत् ] 'तू' सर्वनाम के कर्मकारक का रूप । कटने को त्यार । मड़े रहें केते सुमन मोता तेरे द्वार ।-रस- उ०-चकवीकइ हर पखडी, रयरिण न भेलउ स्याह - निधि (शम्द०)। ढोला०, दू०७१। त्यारी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं॰] दे॰ 'तैयारी' उ.-बाजराज बारण त्या -प्रत्य० [सं० तत् ] से। 10-किसे दिवाने कहता मेरा रथा, भवर, समाज ममाम । हाजर तिवारी हुमा, त्यारी जावे तन तू सब त्या न्यारा ।-दक्खिनी०, पृ० ६६ । करे तमाम ।-रघु.5, पृ. ६३ । त्याग-~सक्षा पुं० [सं०] १ किसी पदार्थ पर से अपना स्वत्व हटा त्यारे--सद [हिं०] ३० 'तुम्हारे' । उ०-नितीमा के बोलत बोलने लेने पथवा से अपने पास से अलग करने की क्रिपा । उत्सगं । रे, त्यारे विरन दस मास ।-पोद्दार ममि. प्र., पृ० ६३३ ।