पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५०८

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नापुष' त्रिशांश त्रापुप-वि० रांगे का बना हुमा [को॰] । त्रासिनी-सक्षा स्त्री० [सं० श्रासिन्] डरानेवाली। भयदायिनी । नायंती-सधा स्त्री० [सं० प्रायन्ती ] प्रायमारण लता उ.-दुर्मद दुरत धर्म दस्युमो की पासिनी निकल, पली जा त्रायन -सा पु० [हिं० ] दे॰ 'प्राण'। उ०-वाइन छेदन तू प्रतारण के कर से।-लहर, पु०५८ । पायन खेवन बह विधि कर ले उपाई।-रे. वानी, पृ०१६। त्रासी-वि० [सं० प्रासिन्] डरानेवाला । त्रासक [को०] । घायमाण-सहा पुं० [सं०] बनफशे की तरह की एक प्रकार की त्राहि-मव्य सं०] बचाभो । रक्षा करो। त्राण दो। उ०- लता जो जमीन पर फैलती है। दारुण तप जब कियो राजसुत तर काँप्यो सुरलोक त्राहि विशेष-इसमे वीच बीच में छोटी छोटी रबिया निकलती है पाहि हरि सो सब भाष्यो दुर करो सव योक ।-सूर जिनमे फसैले बीज होते हैं। इन बीजों का व्यवहार भोषष (शब्द०। मे होता है। वैद्यक मे इन बीजो को शीतल, दस्तावर मोर मुहा०-त्राहि त्राहि करना=दया या मभयदान के लिये गिड- त्रिदोषनाशक माना है। गिड़ाना । दया या रक्षा के लिये प्रार्थना करना त्राहि मचना: पर्या०-अनुजा । प्रवनी। गिरिजा देवबाला। बलभद्रा । रक्षा के लिये चीख पुकार होना । विपत्ति में पड़े हए लोगों के पालिनी । भयनाशिनी। रक्षिरणी। मुह से त्राहि त्राहि की पुकार मचना । त्राहि त्राहि होना% दे० 'त्राहि त्राहि मचना। त्रायमाण-वि० रक्षक । रक्षा करनेवाला। त्रिंबक -मज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'श्यंबक' । १०--त्रिनयन, विक, नायमाणा-सषा सी० [सं०] पायमाण लता । त्रिपुर मरि ईस, उमारति होई।-नद००, पु. ६२॥ त्रायमाणिका-सहा स्त्री० [.] दे० 'चायमारण'। त्रिंश-वि० [सं०] तीसवाँ। प्रायवृत--सज्ञा पुं० [सं० पायधुन्त] गहीर या गुडिरी नामक साग । त्रिंशत्-वि० [सं० ] तोस । त्रास-सहा स्त्री० [सं०] १ र । भय । १०-जम की सब पास त्रिंशत्पत्र-सबा पुं० [सं०] कोई का फूल । कुमुदिनी। बिनास करी मुख से निज नाम उचारन में।-भारतेंदु म०, भा० १, पृ० १५२ । २ तकलीफ । ३. मरिण का एक दोष।। त्रिंशाश-सज्ञा पुं० [स]१ किसी पदार्थ का तीसवाँ भाग। किसी चीज के तीस भागो में से एक भाग। २. एक राशि का नासक-सक पुं०1. हरानेवाला। मयमीत करनेवाला। २ निवा- रक। दूर करनेवाला । 30-निविष ताप त्रासक तिमुहानी। सीसवां भाग ( या डिग्री) जिसका विचार फनित ज्योतिष राम सरूप सिंघु समुहानी । तुलसी (शब्द०)। में किसी चालक का जन्मफल निकालने के लिये होता है। विशेष-फलित ज्योतिप मे मेष, मियुन, सिंह, सुला, धन और त्रासकर-संक्षा पुं० [सं०] मयोत्पादक । वासफ (को०] । कुभ ये यह राशियो विषम भौर वृष, कर्क, कन्या, वृश्चिक, त्रासद-वि० [सं०] श्रासकर । दुःखद । उ.-नाटकों में पासद मकर और मीन ये छह राशियो सम मानी जाती हैं। विशारा (दुखांत- ट्रेजेडी) मोर हासद (सुखांत) का भेद किया का विचार करने में प्रत्येक विषम राशि के ५,५,८, ७ भोर जाता है।-सा शास्त्र, पु० १२६ । ५ निशांशो के क्रमश मगल, शनि, वृहस्पति, बुध और शुक्र त्रासदायी--वि० [सं० त्रासदापिन्] भयोत्पादक । डरानेवाला [को०] । मधिपति या स्वामी माने जाते हैं मोर सम ५, ७,८,५, त्रासदी-सक्षा नी० [सं० त्रासद+हि.ई (प्रत्य॰)] दुख से पूर्ण मौर ५ विधांथों के स्वामी ये ही पांचों ग्रह विपरीत क्रम रचना विशेषत नाटक जो दुखात हो। से-पर्यात शुक्र, बुध, वृहस्पति, शनि और मंगल माने जाते त्रासन-सक्षा पुं० [सं०] [वि० त्रासनीय] १.राने का कार्य । २ हैं। अर्थात्-प्रत्येक विषम राशि के डरानेवाला। भय दिखानेवाला । १ से ५ विद्याश तक के मधिपति -मगल त्रासना-क्रि० स० [सं० त्रासन] डराना। भय दिखाना। पास देना। 30-काहे को कलह नाघ्यो दाक्षण दांवरि बाध्यो , -वृहस्पति कठिन लकुट ले त्रास्यो मेरो भैया ?--सूर (शब्द०)। १६॥ २५, " -बुध त्रासमान-वि० [सं० पास+मान] प्रस्त। भीत । ड-जोगी जती २६, ३०, माव जो कोई। सुनठहि त्रासमान भा सोई।-बायसी प्र०, माने जाते हैं। पर सम राशियो मे निशांशो मोर ग्रहों के क्रम उलट जाते हैं और प्रत्येक राशि के नासाg-सा स्त्री० [हिं०] दे० 'तृषा'। उ०~करहा पाणी खच' १, ५ त्रिशाश तक के अधिपति --शुक्र पिउ त्रासा घणा सहेसि ढोला०, दु० ४२६ । त्रासिका-वि० [सं० त्रासक] पास देनेवाली। दुखद । उ०- १३, २०, दिषत जोति नासिका। सुगत्ति कीर त्रासिका 1-पु. रा., २१॥ २५ ॥ -शनि २५।१४४ २६ ॥ ३०॥ -मगस त्रासित-वि० [सं०] १ भयभीत। डराया हुमा। २ जिसे कष्ट माने जाते हैं। प्रत्येक ग्रह के त्रिशाम मे जन्म का अलग अलग पहुंचाया गया हो। मस्त । फल माना जाता है। वैसे-मपल के त्रिशाश में जन्म -शनि " -वृहस्पति