पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

त्रिकालदर्शी होने का फल लीविजयी, धनहीन, क्रोधी पौर अभिमानी दोहे का एक भेद जिसमे ९ गुरु मौर ३० लघु भक्षर होते है। प्रादि होना और बुध के त्रिशांश मे जन्म होने का फल बहुत जैसे,-पति मपात जो सरितवर, जो नुप सेतु फराहि। पदि धनवान पोर सुखी होना माना जाता है। पिपीलिका परम लघु, विन श्रम पारहि जाहिं।-तुलसी त्रि-वि० [H• ] तीन । (शब्द०)। विशेष-सका व्यवहार यौगिक शब्दों में, प्रारंभ में,-होता है। विकल-वि० जिसमें तीन फलाएँ हाँ। जैसे, त्रिकाल, त्रिकुट, त्रिफला आदि। निकलिंग-सज्ञा पुं० [सं० त्रिकलिङ्ग] दे० 'लग। त्रि -सहा सी. हि० ] दे॰ 'त्रिय' । उ-राजमती तु निकशूल-सबा पुं० [सं०] एक प्रकार का वातरोग जिसमें कमर भोजकुमार तो सम त्रि नहीं इणोई ससार।-बी० रासो, की तीनो हड्डियों, पीठ की तीनो हाइयो और रीढ़ में पीडा १०४१॥ उत्पन्न हो जाती है। त्रिभषिरी संज्ञा स्त्री० [ विपक्षर ] मोम् । गोरख संप्रदाय का मत्र त्रिकस्थान---पुं० [सं० त्रिक+स्थाम] दे॰ 'त्रिफ। उ०-यायु विशेष । उ.-निअपिरी त्रिकोटी अपीला ब्रह्मकुद निजथान । गुदा में स्थित होने से त्रिकस्थान, हृदय, पीठ इनमें पीड़ा होती गोरख०, पृ. १०२। है।-माधव०, पृ० १३४ । त्रिकंट-सका पुं० [सं० विकण्ट ] दे० 'विकटक'। त्रिकांड'-सबा . [ से०त्रिकाएड] १ अमरकोप का दूसरा नाम । विकटक'-स ० [१० विकएटक] १. गोखरू। २. त्रिशूल । (अमरकोष में तीन कांड हैं, इसी से उसका यह नाम पहा)। ३ तिधारा थूहर । ४ बवासा 1 ५ टेंगरा मछली । २. निरुक्त का दूसरा नाम । (निरुक्त मे भी तीच कार हैं, त्रिकटक-वि० जिसमें तीन काटे या नो हो । इसी से उसका यह पाम पडा)। त्रिक-सवा पु० [सं०1३.तीन का समूह । वैसे, त्रिकमय, त्रिफला, निकार-वि. जिसमें तीन फाड हों। त्रिकुटा पौर त्रिभेद । २ रीढ़ के नीचे का माग जहाँ कूल्हे निकांडी'-वि० [सं० यिकाण्डीय ] जिसमें तीन काढ हों। तीन की हडिपो मिलती हैं। ३. कमर। ४ त्रिफला । ५ निमद । कांडोंवाला। ६ तिरमुहानी। ७ तीन रुपए सैकरे का सूद या लाभ निकांडी-सचा स्त्री० जिस मय मे कर्म, उपासना और ज्ञान तीनों पादि ( मनु)। का वर्णन हो अर्थात् वेद । त्रिक-वि०१ तेहरा तिगना। विविध । २. तीन का रूप लेने- त्रिका-सका खौ [सं०] १ फूएँ पर का वह पोखटा जिसमें गराडी वाला । तीन समूह में भानेवाला। ६. तीन प्रतिशत । ४ लगी होती है। २ कुएं का ढक्कन (को०)। तीसरी बार होनेवाला [को०] । त्रिकाय-सज पुं० [सं० ] बुद्धदेव । त्रिककुदु'-सबा पुं० [सं०] १. त्रिकुट पर्वत । २ विष्णु । (विष्णु। त्रिकार्षिक-सचा पुं० [सं०] सौंठ, प्रतीस मोर मोथा इन तीनों ने एक बार वाराह का अवतार धारण किया था, इसी से का समूह। उनका यह नाम पा) 1३ दस दिनों में होनेवाला एक प्रकार त्रिकाल-प्रशा पुं० [सं०] १ तीनो समय-भूत, वर्तमान मौर का यज्ञ। मविष्य । २ तीनों समय-प्रात, मध्याह्न पोर साय । त्रिककुद-वि० जिसे तीन ग हो । त्रिकालज्ञ-सचा पुं० [सं०] भूत, वर्तमान और भविष्य का निककुम-संघा पुं० [सं०]१ उदान वायु जिससे उकार और छीक जाननेवाला व्यक्ति । सर्वज्ञ। माती है। २ नौ दिनी में होनेवाला एक प्रकार का यज्ञ। त्रिकालज्ञ-वि• तीनो कालों की बातों को जाननेवाला। उ.-. निकट-या पुं० [हिं० ] दे॰ 'प्रिकट'। त्रिकालज्ञ सर्वज्ञ तुम्ह गति सर्वत्र तुम्हारि।-मानस, १।१६। त्रिकटु-सका पु.१०] सौंठ, मिर्च और पीपल ये तीन कट्ठ निकालज्ञता-पमा बी० [सं०] तीनो कालो का बातें जानने की वस्तुएँ। शक्ति या भाव। विशेष-वैयक में इन तीनों के सम को दीपन तथा खांसी, त्रिकालदरसी -वि० [हिं० 1 दे० 'त्रिकालदर्शा' | उ.--तुम्ह सास, कफ, मेह, मेद, स्लीपद और पीनस मादि का नाशक त्रिकालदरसी मुनिमाथा । विस्व वदर जिमि तुम्हरे हाया !-- माना है। मानस, २११२५1 निकटुक-सा पुं० [सं० ] दे० त्रिकटु'। त्रिकालदर्शक'--वि० [सं०] तीनों फालों को जाननेवाला । कामज्ञ। 14-सका पु०[.] ग्रिफला, निफूटा और पिमेद। मर्यात हड, बहेडा मोर गाँवला, सोठ, मिर्च और पीपल तया त्रिकालदर्शक- पुं० हपि। मोया, चीता पोर वायविडंग इन सब का समूह । त्रिकालदर्शिता-सबा श्री० [सं०] तीनों कालो की बातों को जानने --वि० [सं०त्रिकर्मना वह जो पढ़े, पढ़ाए, यज्ञ करे मोर की शक्ति या भाव । त्रिकालज्ञसा। दान दे। द्विज 1 त्रिकालदर्शी'-सा . [सं० त्रिकालवशिन् | तीनो कालों की बातों त्रिका-सया [सं०] १.तीन मात्राओं का शब्द । प्लुत । २. को देखनेवाला या जाननेवाला व्यक्ति । त्रिकालज्ञ । त्रिकत्रप-सका पु०