पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५१४

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त्रिपिटक त्रिपत्रा निपत्रा--सचा स्त्री० [सं०] १. अरहर का पेड़ । २. तिपतिया घास । 10-ताडी लागी त्रिपल पलटिये छूट होई पसारी।-कबीर त्रिपथ-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ फर्म, ज्ञान और उपासना इन तीनो ग्र०, पृ० २२० । मागों का समूह । उ०--फर्मठ कठमलिया कहें ज्ञानी ज्ञान त्रिपाटिका-सबा खी. [सं०] चोच (को०)। विहीन । तुलसी त्रिपथ विहायगो रामदुमारे दीन । तुलसी त्रिपाठी-सज्ञा पुं० [सं० विपाटिन] १ तीन वेदों का जाननेवाला पुरुष। (शब्द०)।२ तीनो लोकों (माकाश, पाताल और मयं लोक) त्रिवेदी । २ ब्राह्मणो की एक जाति । त्रिवेदी । तिवारी। के मार्ग (को०)। ३. वह स्थान जहा तीन पथ मिलते हैं। त्रिपाण-सझा पुं० [सं०] १ वह सूत जो तीन चार भिगोया गया हो तिराहा (को०)। (कर्मकाड) । वहाल । छाल । त्रिपथगा-सशास्त्री० [स०] गंगा। उ.-मानो मूल भाषा त्रिपथगा त्रिपात्, निपात-वि०, ससा पुं० [सं०] दे० 'विषाद' (फो०] । की तीन धारा हो वही-प्रेमघन०, भा॰ २, पृ० ३७० ।। त्रिपाद - सज्ञा पुं॰ [मं०] १. ज्वर । बुम्बार । २. परमेश्वर । विशेष--हिंदुओं का विश्वास है कि स्वर्ग, मयं मोर पाताल इन तीनो लोको में गगा बहती हैं, इसीलिये इसे त्रिपथगा कहते हैं। विपादिका-सक्षा स्त्री० [सं०] १ तिपाई । २. हसपदी लता । लाल त्रिपथगामिनी-सच्चा श्री. [सं०] गगा। दे० 'त्रिपथगा'। रग का लज्जालू। त्रिपथा-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ दे० 'त्रिपथगा'। उ.-पय घेख रही त्रिपाप-सज्ञा पुं० [सं०] फलित ज्योतिष मे एक प्रकार का पक तरगिरणी, त्रिपथा सी वह सग रगिणी ।-साकेत, पु. जिसके अनुसार किसी मनुष्य के किसी वर्ष का शुभाशुभ फल जाना जाता है। ३६३ । २ मथुरा (को०)। त्रिपद-सबा पुं० [सं० विपद् ] १ तिपाई । २ त्रिभुज । ३. वह , त्रिपिट-सहा . [ से० विपिण्ड ] पार्वण श्राद्ध में पिता, पितामह न जिसके तीन पद या चरण हो। ४ यज्ञों की वेदी नापने की और प्रपितामह के उद्देश्य से दिए हुए तीनों पिंड (कर्म काड)। प्राचीन काल की एक नाप जो प्राय. तीन हाथ से कुछ कम त्रिपिटक-सज्ञा पुं० [सं०] भगवान बुद्ध के उपदेशों का वडा सग्रह होती थी । ५ विष्णु (को०)। ६ ज्यर (को०)। जो उनकी मृत्यु के उपरात उनके शिष्यो पौर अनुयायियों ने त्रिपद २---वि० [सं० विपद] १ तीन पैरोंवाला । २ तीन पाएवाला। समय समय पर किया पौर जिसे बौद्ध लोग अपना प्रधान ३ तीन चरणवाला। ४ तीन पदो का (शब्दसमूह) [को०] । धर्मग्र थ मानते हैं। त्रिपदा-सबा बी. [सं०] १. गायत्री। विशेष—यह तीन भागों मे, जिन्हें पिटक कहते हैं, विभक्त है। विशेष-गायत्री मे फेवल तीन ही पद होते हैं इसलिये इसका इनके नाम ये हैं—सूपिटक, विनयपिटक, मभिधर्मपिटक । यह नाम पडा। सुत्रपिटक मे बुद्ध के साधारण छोटे और बड़े ऐसे उपदेशों २. हसपदी । लाल रय का लज्जू । का संग्रह है जो उन्होने भिन्न भिन्न घटनामों मोर भवसरों पर त्रिपदिका-सच्चा श्री० [सं०] १ तिपाई की तरह का पीतल मादि किए थे। विनयपिटक मे भिक्षुगो मौर थावको प्रादि के का वह चौखटा जिसपर देवपूजन के समय शख रखते हैं। २. माचार के सबध की दाते हैं। अभिधर्मपिटक मे चित्त, वैतिक तिपाई। ३ सकीणं राग का एक भेद । (संगीत)। धर्म और निर्वाण का वर्णन है। यही अभिधर्म बौद्ध दर्शन त्रिपदी-सक्षा स्त्री० [सं०] १ हसपदी। २ तिपाई। ३ हाथी का मूल है। यद्यपि वोट धर्म के महायान, हीनयान मौर की पलान बांधने का रस्सा। ४ गायत्री। ५ तिपाई के मध्यमयान नाम के तीन यानो का पता चलता है और इन्ही प्राकार का शव रखने का घातु का चौखटा। ६. गोधापदी के अनुसार त्रिपिटक के भी तीन सस्करण होने चाहिए, लता (को०)। तथापि पाजकल मध्ययमान का सस्करण नहीं मिलता। हीन- निपत्त-सशा पुं० [सं०] चंद्रमा के दस घोड़ो मे से एक । यान का त्रिपिटक पाली भाषा मे है और बरमा, स्याम तथा त्रिपरिक्रात'–सचा पु० [सं० त्रिपरिकान्त ] १ वह ब्राह्मण जो यज्ञ लका के वौद्धो का यह प्रधान मोर माननीय नथ है। इस यान फरे, पढे पढ़ावे और दान दे। २ वह व्यक्ति जिसने काम, के सबंध का अभिधर्म से पूथक कोई दर्शन नथ नही है । महा- क्रोध और लोभ को जीत लिया हो [को०] । यान के त्रिपिटक का सस्करण संस्कृत मे है और इसका प्रचार नेपाल, तिब्बत, भूटान, पासाम, चीन, जापान भौर साइवेरिया त्रिपरिक्रांत-वि. जो हवन की परिक्रमा फरे [को०] । के बौद्धो मे है । इस यान के सबंध के चार दार्शनिक सप्रदाय त्रिपर्ण-सका पुं० [सं०] पलास का पेड । किंशुक वृक्ष । हैं जिन्हे सौत्रातिक, माध्यमिक, योगाचार मौर वैमापिक हो निपर्ण-समा सी० [सं०] पलास का पेड़। हैं। इस वान के संवध के मुल प्रथो के कुछ प्रश नेपाल, त्रिपर्णिका-सधा बी० [सं०] १ शालपर्णी । २ बनकपास । ३ चीन, तिम्वत मौर जापान में भवतक मिलते हैं। पहले पहल एक प्रकार की पिठवन लता। महात्मा बुद्ध के निवारण के उपरात उनके शिष्यों ने उनके त्रिपर्णी-सक्षा श्री० [सं०] १ एक प्रकार का क्षुप जिसका कद मौषध उपदेषो का संग्रह राजगृह के समीप एक गुहा में किया था। में काम माता है । २ शालपण। ३. बनकपास । फिर महाराज अशोक ने अपने समय मे उसका दूसरा त्रिपक्ष...सखा पुं० [?] पिविध प्राणायाम रेचक, पूरक, कुंभक । सकारण बौद्धो के एक बड़े संघ में कराया था। हीनयान-