पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५१५

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त्रिपिताना त्रिपुरुष वाते मपना संस्करण इसी को बतलाते हैं। तीसरा सस्करण मतरिक्ष में चांदी का था और तीसरा मत्यलोक में लोहे का कनिका के समय में हुमा था जिसे महायानवाले अपना था। जब उक्त तीनों मसुरों का पत्याचार मौर उपद्रव बहुत कहते हैं। हीनयान और महामान के संस्करण के कुछ बढ़ गया तब देवतामों के प्रार्थना करने पर शिव जी ने एक ही वाक्यो के मिलान से अनुमान होता है कि ये दोनो किसी बाण से उन तीनों नगरों को नष्ट कर दिया और पीछे से उन प्रय की छाया है जो पब लुप्तप्राय है। त्रिपिटक में नारा. तीनों राक्षमो को मार डाला। पण, जनार्दन शिव, ब्रह्मा, वरण मौर शकर प्रादि देवतामो त्रिपरमाराति-समा पु०सं० निपुर+याराति] कामारि । महादेव । का भी उल्लेख है। परभारातीg---संधा पुं० [सं० विपूरपाराति 1 दे० 'त्रिपुर त्रिपिताना'-क्रि० म० [सं० तृप्ति + ग्राना (प्रत्य॰) ] तृप्ति पाना । पाराति' । उ०-जदपि सती पूछा वह माती। तदपि न कहे तृप्त होना । अघा जाना। उ०-(क) कैसे तृपावत जरु त्रिपुर माराती।-मानस, १९५७। प्रचवत वह तो पुनि ठहरात ! यह मातुर छबि ले उर धारत नेकु नहीं त्रिपितात ।-सुर (शब्द॰) । (ख) ने पटरस मुख त्रिपुरन-सक्षा पुं० [सं०] महादेव ।। भोग करत हूँ ते कैसे खरि खात । सूर सुनो लोचन हरि त्रिपुरदहन-सहा पुं० [सं०] महादेव । रस तजि हम सों क्यो प्रिपितात ।—सूर (शब्द०)। त्रिपुरदाहक-सञ्चा पुं० [सं० frपुर + दाहक ] दे० 'निपुरदहन' । त्रिपितानारे-क्रि० स० तृप्त करना । संतुष्ट करना । 30-त्रिपुरवाहक शिव मद्रवट पर था।-प्रा० भा० स०, विपिव--सबा पुं० [सं०] वह खसी, पानी पीने के समय जिसके दोनो पृ० १०८। कान पानी से धू जाते हो । ऐसा बकरा मनु के अनुसार त्रिपुरभैरव-संज्ञा पुं० [सं०] वैद्यक का एक रस जो सन्निपात रोग पितृकर्म के लिये बहुत उपयुक्त होता है। में दिया जाता है। त्रिपिष्टप-सपा पुं० [स.विड 1 भस्म की तीन प्राडी रेखामो विशेष-इसके बनाने की विधि यह है-काली मिर्च ४ भर, सोंठ का तिलक जो शैव या शाक्त लोग ललाट पर लगाते हैं। ४ भर, शुद्ध तेलिया सोहागा ३ भर, और शुद्ध सीगी मोहरा १०-गौर शरीर भूति भलि भ्राजा। भाल विशाल त्रिपुर १ भर लेते हैं मोर इन सब चीजों को पीसकर पहले तीन दिन विराजा-तुलली (शब्द०)। तक नीबू के रस में फिर पांच दिन तक अदरक के रस क्रि० प्र०---देना। रमाना।—लगाना । में और तब तीन दिन तक पान के रस में मच्छी तरह खरल त्रिपुड-सा पुं० [सं० निपुण्ड्र ] त्रिपुड । फरके एक एक रत्ती की गोलियां बना लेते हैं। यह गोली त्रिपुट-सेवा पुं० [सं०] १. गोखरू का पेठ । २. मटर । ३ खेसारी। मदरक के रस के साथ दी जाती है। ४ तीर । ५. वाला। ६ एफ हाथ की सवाई (फो०) । ७ त्रिपुरभैरवी-सशा को [ स०] एक देवी का नाम । किनारा। तट (को०)। ८ बाण (को०)। ६. छोटी या वडी वितरमल्लिका-सज्ञा स्त्री॰ [स] एक प्रकार की मल्लिका। एला या इलायची (को०) १० मल्लिका (को०)। ११ एक प्रकार का फोडा (को०)। १२ ताल । तलैया (को०)। त्रिपुरहर-सपा पु० [सं०] महादेव [को० । निपुट-वि० [सं०] त्रिभुजाकार [को०)। त्रिपुरसुंदरी- सज्ञा स्त्री॰ [ सं० त्रिपुरसुन्दरी ] दुर्गा [को०] त्रिपुटक'-सहा पुं० [सं०1१खेसारी 1२. फोड़े का एक माकार। त्रिपुरांतक-सचा पुं० [सं० त्रिपुरान्तक] शिव । महादेव । त्रिपुटक-वि० तिकोना या त्रिभुजाकार (फोडा)। त्रिपुरा-सचा त्री० [सं० ] कामाख्या देवी की एक मूर्ति । त्रिपा_मा विपुटा-समा नौ [सं०] १. वेल का पेड़ ।। २ छोटी इलायची । त्रिपुरारि-मझा पुं० [सं०] शिव । महादेव । ३ बढी इलायची। ४ निसोथ। ५ फनफोडा वेल । ६ त्रिपुरारि रस-सा पुं० [सं०] वैद्यक मे एक प्रकार का रस मोतिया। ७ वानिको की एक देवी जो प्रभीष्टदायी ___ जो पारे, तांबे, गंधक, लोहे, अभ्रक प्रादि के योग से मानी गई है। । 'धनाया जाता है। इसका व्यवहार पेट के रोगों को नष्ट त्रिपुटी'-सचा मो० [सं०] १निसोय । २ छोटी इलायची । २. करने के लिये होता है। ३. तीन वस्तुगो का समूह । जैसे, ज्ञाता, जय भार ज्ञान, विपरारी -सझा पुं० [हि.] दे० 'ग्रिपुरारि' -मुनि सन ध्याता, ध्यय और घ्यान; द्रष्टा, दृश्य और दर्शन प्रादि । उ०- विदा मौगि मिपुरारी। पले भवन संग दक्षकुमारी।- शाता, ज्ञेय ग्रह ज्ञान जो ध्याता, ध्येय अरु ध्यान ! द्रष्टा, दृश्य मानस, १ । ४८। प्रय दरश जो त्रिपुटी शब्याभान |--कबीर (शब्द०)। त्रिपुरासुर-सशा पुं० [सं०] दे० 'त्रिपुर'। विपुदी-सहा पुं० [. त्रिपुटिन् ] १ रेंड का पेड 1 २. खेसारी।। त्रिपुरुष'--सष्ठा पु. [ से 11 पिता, पितामह पोर प्रपितामह । २. त्रिपुर-सका पुं० [सं०] १. वाणासुर का एक नाम ! २.तीनो लोक। संपत्ति का वह भोग जो तीन पीढ़ियों अलग मलग फरें। एक ३ चदेरी नगर । -(डि.)। ४ महाभारत के अनुसार वे तीनों एक करके तीन पीढ़ियो का भोग। नगर जो तारकासुर के तारकाक्ष, कमलाक्ष पौर विद्युन्माली , त्रिपुरुष-वि० जिसको लबाई उतनी हो जितनी तीन पुरुषों के नाम फे तीनो दैत्यो ने मय दानव से अपने लिये बनवाए थे। त्रिपुरुष मिलने पर होती है [को॰] । विशेष-इनमें से एक नगर सोने का मौर स्वर्ग में था, दूसरा