पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५१७

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त्रिमग २१६३ त्रियातीत नक्षत्रयुक्त भाद्रमास, भौर पूर्वफाल्गुनो, उत्तरफाल्गुनी भोर त्रिमुंड - सज्ञा पुं० [सं० त्रिमुण्ड ] १ त्रिशिरा राक्षस । २. ज्वर । हस्त नक्षत्रयुक्त फाल्गुन मास । दुखार। त्रिभग-वि० [हिं०] दे० 'त्रिभग'। उ.-मुरली सुर नट वाद विमुकुट-सहा पु० [सं०] वह पहाड जिसकी तीन चोटिया हो। ग्रिकूट । त्रिभग उर मायत कंबी।-पृ० रा०, २। ४२६ । त्रिमुख-सचा पु० [सं०] १. शाक्यमुनि । २. गायत्री जपने की चौवीस विभजीया -सय बौ• [सं०] व्यास को माधी रेखा । त्रिज्या। मुद्रामो में से एक मुद्रा।। विभज्या-सा भी- [सं.] त्रिभजीया । त्रिज्या । निमुखा-सझन पी० [सं०] दे० 'त्रिमुखी' । विद-उमा स्त्री० [सं०] सहवास । स्त्रीप्रसग [को०] । निमुखी--सक्षा स्त्री० [सं०] बुद्ध की माता, मापादेवी। विशेप-महायान शाखा के बौद्ध देवीरूप से इनकी उपासना अन--संशा ० [सं० त्रिभुवन] दे० 'त्रिभूवन' । उ०—कर्मगत करते हैं। ते बली नाहिं त्रिभुभन में कोई 1--नंद० ०, पृ० १७६ ।। त्रिमुनि-सपा पु० [सं०] पाणिनि, कात्यायन मोर पतंजलि ये तीनों त्रिभुक्ति-मक्ष पु० [सं०] तिरहुत या मिथिला देश । मुनि । त्रिभुज-सका पुं० [सं०] तीन भुजामों का क्षेत्र। यह धरातल जो त्रिमुहानी-सहा स्त्री० [हिं०] ३० तिमुहानी'। तीन मुजामो या रेखामो से घिरा हो । जैसे, ADI पर्ति-सधा पुं० [सं०] १ ब्रह्मा, विष्णु पौर शिव ये तीनों देवता। त्रिभुवन -सका पुं० [सं०] तीन लोक प्रर्थात् स्वर्ग, पृथ्वी पौर पाताल । २ सूर्य। त्रिभवनगरु-सा पुं० [सं०] शिव । उ-तुम्ह त्रिभुवनगुरू वैद निमति--सा श्री० [सं०] १ ब्रह्म की एक शक्ति । २ बौद्धों की बहाना । मान जीवन पावर का जाना ।-मानस, १ । - एक देवी। त्रिभुवननाथ-संज्ञा पुं० [मे० मिमुवन नाथ] जगदीश । परमेश्वर । निमृत-सहा पुं० [सं०] निसोय । उ.-त्यों पद रिभुवननाय ताड़का मारो सहमत ।-केशव विमृता-सा पी० सं० दे० 'विमूत', (शब्द०)। नियंग -वि० [से नि+मङ्ग] तीन रूप का। तीन तरह का। त्रिभुवनराइ-सा पुं० [सं० त्रिभुवन + राज ] तीन लोको 30-तहाँ विट्टिय दति कमत्त मत्त 1 तहाँ छत्र रंग विपंगे का स्वामी। ढरत ।--पृ० रा०, १९१४६ । त्रिभुवनराई-सधा पुं० [सं० त्रिभुवनराज] तीन लोकों का स्वामी त्रिय -सधा बी० [हिं०] दे० 'त्रिया' 1 उ0--एहि कर नामु सुमिरि उ.-हम तीनों हैं त्रिभुवन राई ।-कबीर सा०, पृ० ५८३ ॥ ससारा । श्रिय घढिहदि पतियत प्रसिधारा ।- मानस, ११६७। त्रिभुवनसुदरी-सहा स्त्री० [सं० त्रिभुवनसुन्दरी] १. दुर्गा । २ पावती। त्रियमी-वि० [हिं०] दे० 'विदडी'। 30-एक डडी वुडही त्रिय- त्रिभूम-सबा पुं० [सं०] तीन खंडोंवाला मकान । तिमहला घर। __उडी भगवान हूवा । गोरख०, पृ. १३२ । त्रिभोलग्न-मधा पुं० [सं०] क्षितिज वृत्त पर पहनेवाले कातिवृत्त त्रियलोक-सा पुं० [हिं०] दे० 'त्रिलोक'30-एक सतगुरु सुर का ऊपरी मध्य भाग। सम तिमिर हरे त्रियलोक ।-रज्जव०, पृ० १६ । त्रिमंडला-सधा श्री० [सं० विमएडला ] एक प्रकार की जहरीली त्रियव - सज्ञा पुं० [सं०] एक परिमाण जो तीन जी के वरावर या मकही। एक रत्ती के लगभग होता है। त्रिमद-सखी० [सं०] १ मोथा, चीता पौर बायविडंग इन तीनों त्रियष्टि-सज्ञा पुं० [सं०] पितपापड़ा । पाहतरा। चीजों का समूह । २ परिवार, विद्या मोर धन इन तीनों नियन -वि० [हिं०] दे० 'तीन' । उ०-त्रियन वरस त्रिय मास दिन कारणो से होनेवाला अभिमान । पीय घटी पल उन्न |-पु. रा०, २३६१३ त्रिमधु-स ० [सं०] १ ऋग्वेद के एक प्रश का नाम २. वह व्यक्ति जो विधिपूर्वक उक्त अथ पढे ३ ऋग्वेद का एक यज्ञ। त्रियायुज-सज्ञा मी० [सं०सी०] पोरसाली। ४ घी, शहद और पीनी इन तीनो का समूह । यौ०-त्रियाचरित्र = लियो का छल कपट जिसे पुरुष सहज में नहीं समझ सकते। त्रिमधुर-समा पुं० [सं०] दे० 'मिमघु। त्रियाइपु-संज्ञा श्री [हिं० ] दे० 'निया' 1 उ-जलघर बिन यों त्रिमात - वि० [सं०] दे० 'निमानिक'। मेदिनी । ज्यों पतिहीन प्रिया 1-पृ० स०, २५१४४) त्रिभात- वि० सं०] भिमात्रिक [को० । नियाजीतपु-वि० [हिं० भिया+जीत] स्सी के वश में न मानेवाला निमातिक-वि० सं०] तीन मायामों का। तीन मात्रामोवाला। उ.---नियाजीत ते पुरियागता मिलि भानंत ते पुरिषागता। जिसमें तीन मात्राएं हों । प्लुप्त । गोरख०, पु. ७६। त्रिमागंगा-समा स्त्री० [सं०] गगा। त्रियातीव-वि०[स. त्रि+मतीत ] तीन अर्थात् निगुण से परे। त्रिमार्गगामिगी-सशसी० [सं०] गगा। उ.-त्रियाठीत की श्रेणी जिनको वेद सबसे बढकर बतलाता त्रिमागा-सशास्त्री० [सं०] १ गगा।२ तिरमुहानी। है।-कवीर म०, पृ० १२६ ।