पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५२

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जमना १६५ . जमाई भादमियों के सामने किसी काम फा इतनी उत्तमता से होना जमवट-सम्ना स्त्री० हिं० जमना ] पहिए के पाकार का लकड़ी कि सबपर उसका प्रभाव पड़े। जैसे, व्यारुपान जमना, का वह गोल चक्कर जो कुमा बनाने में भगाह मे रखा गाना जमना, खेल जमना । ७. सर्वसाधारण से सबंध रखने जाता है भौर जिसके ऊपर कोठी की जोड़ाई होती है। वाले किसी काम का पच्छी तरह चलने योग्य हो जाना। जमवार -सभा पु० [सं० यमद्वार ] यम का द्वार । उ०—(क) पैसे, पाठशाबा जमना, दूकान जमना। ८ घोडे का बहुस सिंहल द्वीप भव पोतास । जबूदीप जाइ जमवारू1-जायसी ठुमक ठुमककर चवचा। उ०—इमत उडत एउत उछरत . (शब्द०)। (ख) ३०-परि जमवार पहे बह रहा । जाइन ६बनी बजावत ।-प्रेमघन०, मा० १, पृ० ११ । मेटा ताकर कहा --पदमावत, पृ० २६२ । जमना--कि०म० [सं० जन्म, प्रा० जम्म>जम+हि० ना (प्रत्य॰)] जमशेद-सना पुं० [फा०] ईरान का एक प्राचीन शासक । उगना। उपजना । उत्पन्न होना। फूटना। जैसे, पौधा विशेष-कहा जाता है, इसके पास एक ऐसा प्याला था जिससे जमना, बाल जमना। उसे ससार भर का हाल ज्ञात होता था। जमना-सझा पुं० [हिं० जमना (= उत्पन्न होना) ] वह घास जो जमहर-सा पु० [म. महर ] जनता । सर्वसाधारण [को । पही वर्षा के उपराव खेतों में उगती है। जमहूरियत-सक्ष श्री. [भ० चुम्हरियत] बनतत्र । प्रजातत्र [को०] । जमना-समझा स्त्री० [सं० यमुना ] दे० 'यमुना' । जमहूरी-वि० [ प० जुम्हूरी ] सार्वजनिक (को०] । जमनिका-सा स्त्री० [सं० जवनिका] १ जवनिका । परदा । २. जमाँ-सा पुं० [म. द्वमा ] जमामा । काला । समय । ससार । काई । उ०-हृदय जमनिका बहुविधि लागी।-तुलसी दुनिया [को०] 1 (शब्द०)। जमा-वि० [10] १. जो एक स्थान पर सग्रह किया गया हो। जमनोत्तरी-मड़ा श्री० [सं० यमुना+अवतार ] गढ़वाल के निकट ' एकत्र । इकट्ठा। हिमालय की वह चोटी जहाँ से यमुना निकलती है। मुहा०-कुल जमा या जमा कुल = सब मिलाकर । कुल । सव । जमनौता--सना पुं० [अ० जमानत+हि० मौता (प्रत्य॰)] वह रकम जैसे,वह कुल जमा पांच रुपए लेकर चले थे। जो कोई मनुष्य अपनी जमानत करने के बदले में जमानत २ जो अमानव के तौर पर या किसी खाते में रखा गया हो। करनेवाले को दे। जैसे,--(क) उनका सौ रुपया बैंक में जमा है। (ख) विशेष-पुसलमानी राज्यकास में इस प्रकार की रकम देवे की तुम्हारे चार थान हमारे यहाँ जमा हैं। प्रथा प्रचलित थी। यह रकम प्राय. ५ रुपए प्रति सैकडे के जमा---सधा बी० [प्र.] १ पूल पन। पूजी। २ धन । पया हिसाव से दी जाती थी। पैसा । वैसे, उसके पास बहुत सी जमा है। अमनौतो-सहा स्त्री० [हिं० जमनौता ] दे० 'जमनौता'। यौ०-जमाजथा। जमापूजी। - जमपुर --सज्ञा पुं० [सं० यमपुर ] दे० 'यमपुर'। उ०-स्वामी मुहा०-जमा मारना - अनुचित रूप से किसी का धन ले लेना। को सकट परे, जो तजि भाजे कूर । लोक भजस, परलोक मैं बेइमानी से किसी का माल हजम करना । जमा हजम अमपुर जात जरूर ।-हम्मीर०, पृ० ४७ ॥ करना-दे० 'बमा मारना'। ३०-चूरन सभी महाजन खाते, जमरस्सी-पमा स्त्री० [स० यम+हिं० रस्सी] चौरी नाम का वृक्ष जिससे जमा हजम कर जाते ।-भारतेंदु ग्र०, मा० १, जिसकी जद साप के काटने की घहत अच्छी भोषधि ससझी पृ० ६६२। जाती है। ३ भूमिकर । मालगुजारी। लगान । जमराg -सया पं० [सं० यमराज ] दे॰ 'यमराज'। उ०-विष्णु यौ०-जमावदी। ते पधिक और कोउ नाही। जमरा विष्णु को घेरामाही। ४. सकलन । पोड़ (गणित)। ५ वही मादि का वह भाग या कबीर सा०, पृ० ३६५ । कोष्ठक जिसमे माए हुए धन या माल मादि का विवरण जमराई-समा० [सं० यमराज ] दे० 'यमराज'। उ०-जो कोई दिया जाता है। सत्त पुरुष गहे भाई । ता कह देख हरे जमराई। कबीर सा०, यो०-जमाखर्च। पृ. ८१५१ जमाअत--सहा श्री० [म.] १ दे० 'जमात'-१ | उ.--यह खवर जमरीण -सक्षा [सं० यमराज] दे० 'यमराज' । उ०—जमरीणा हमको झूमरणू की नागा जमानत के वयोवृद्ध भडारी बाल- साहो करा वानेह लेज्यों मेल ।-ढोला०, दू०६१०। मूकूद जी से मिली ।-सुदर प्र० (९०), भा०१, पृ०४। जमरूद--सपा पुं० [?] एक प्रकार का छोटा लबोतरा फल। जमाअती-वि० [१०] जमात सबषी । सामुदायिक [फो०] । जमल -वि० [सं० यमल, प्रा० अमल ] दे० 'यमल' । उ०-- जमाई-सज्ञा पुं० [सं० जामात ] दामाद । जवाई। जामाता । प्रमल कमब कर पद बदन जमल कमल से नैन । -भारतेंदु जमाईन-सा स्त्री० [हि. पमना] १ षमने की क्रिया। २. प्र०, भा॰ २, पृ०७४। जमने का भाव । यो०- जमलतर-दे० 'यमलार्जुन'। उ०—मुनि सराप ते भए जमाई-सधा खौ० [हि• जमाना ] १. जमाने की क्रिया । जमादे पमवत विन्द हित पापुषाप हो।-सुर०, १।७। का भाव । ३. जमाने की मजदूरी।