पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५२०

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निशकुज त्रिशूब पोर दूसरे सप्तषियों मोर नक्षत्रों की रचना मारभ की। सब देवियाँ । ४. गायत्री। देवता भयभीत होकर विश्वामित्र के पास पहुंचे। तब विश्वा- यो०-प्रियाक्तिधृत् । मित्र ने उनसे कहा कि मैंने त्रिशकु को सशरीर स्वर्ग पहुँ- त्रिशक्तियत-संगापु० [स] परमेश्वर । २. विजिगीषु रामा चाने को प्रतिज्ञा की है। प्रत प्रब वह जहाँ के तहाँ रहेगे और हमारे बनाए हुए सप्तर्षि और नक्षत्र उनके पारो मोर त्रिशत-वि० [सं०1वीन सौ फिो। रहेगे। देवतामों ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। तप त्रिशरण-सा पुं० [सं०] १. बुद्ध । २ पैनियों के एक पारायं से त्रिशंकु यही माकाश में नीचे सिर किप हए लटके हैं और का नाम। नक्षत्र उनकी परिक्रमा करते हैं। लेकिन हरिवश में खिला त्रिशर्करा-सपा सौ. स.] गुड, पीनी पौर मिनी इन तीनों है कि महाराज प्रयारुण का सत्यवत नामक एक पुत्र बहुत काममा ही पराक्रमी राजा पा । सत्यवत ने एक पराई स्त्री को घर निशता-सचा स्त्री० [सं०] वर्तमान परमपिणी के चौबीस तीर्थ- से में रख लिया था। इससे पिता ने उन्हे शाप दे दिया कि करों में से प्रतिम तीर्थंकर यमान या महावीर स्वामी की तुम चांडाल हो जामो। तदनुसार सत्यव्रत पाहाल होकर माता का नाम । पांडालों साथ रहने लगे। जिस स्थान पर सत्यग्रत रहते त्रिशाख-वि० [स.] जिसम मागे को भोर तीन शाखाएँ थे उसके पास ही विश्वामित्र कृषि भी वन में तपस्या फरते निकली हो। थे। एक बार उस प्रात में बारह वर्षों तक दृष्टि ही न हुई, निशाखपत्र-सा पुं० [स] वेल का पेड़। इससे विश्वामित्र की श्री अपने विचले लड़के को गले में बांधकर सौ गायों को बेचने निकली। सत्यवत ने उस लड़के त्रिशाल-सक पु० [स] तीन कमरोंयाला मकान (को०] । को ऋषिपली से लेकर उसे पालना मारम किया, तभी से त्रिशालक-सपा पु. [ स.] बृहस्साहिता के अनुसार वह इमारत उस लड़के का नाम गालव पडा। एफ वार मास के प्रभाव जिसके उत्तर मोर पोर कोई इमारत न हो। के कारण सत्यव्रत ने वशिष्ठ की कामधेनु गौ को मारफर विशेप--ऐसी इमारत मच्छी समझी जाती है। उसका मास विश्वामित्र के बड़को को खिलाया था पौर विशिख'--सपा पुं० [स.1 विगुल । २. किरीट । ३ रावण के स्वयं भी खाया था। इसपर पशिष्ठ ने उनसे कहा कि एक एक पुत्र का नाम । ४ वेल का पेड । ५ तामस नामक तो तुमने अपने पिता को प्रक्षतुष्ट किया, दूसरे अपने गुरु की मन्वतार के इद फे नाम । गौ मार ली और तीसरे उसका मास स्वयं खाया पोर त्रिशिख–वि. जिसकी तीन शिखाएँ हो। तीन चोटियोवाला। ऋषिपुत्रों को खिलाया। पप किसी प्रकार तुम्हारी रक्षा त्रिशिखर--- पुं० [स. वह पहाड जिसकी तीन चोटिया हो। नही हो सकती। सत्यव्रत ने ये तीन महापातक किए थे, विकूट पर्वत । इसी से वह त्रिशकु कहलाए। उन्होंने विश्वामित्र को सी पोर त्रिशिखदला-सरात्री० [सं०] मालाकद नाम की लता अपना पुर्यों की रक्षा की थी इसलिये ऋषि ने एनसे वर मांगने उसका कद (मूल)। के लिये कहा । सत्यवत ने सारीर स्वर्ग जाना चाहा। विश्वा- मित्र ने पहले तो उनकी यह बात मान ली, पर पीछे से निशिखी-वि० [सं०] ३० मिशिख'। उन्होंने सत्यवत को उनके पैतृक राज्य पर अभिषिक्त फिया त्रिशिर-सहा पु० [सं० मिशिरस 1१ रावण का एक भाई जो घर- पौर स्वय उनझे पुरोहित बने । सत्यव्रत ने केकय वश की दूपरण के साथ दडक वन में रहा करता था। २ फुर। ३ सप्तरपा नामक कन्या से विवाह किया था जिसके गर्भ से एक राक्षस जिसका उल्लेख महाभारत में है। ४ वक्ष प्रजा- प्रसिद्ध सत्यवती महाराज हरिश्चन्द्र ने जन्म लिया था। तेत्ति पति के पुत्र का नाम । हरिवंश के अनुसार ज्यरपुरुप । रीय उपनिषद् के अनुसार विशफु भनेक वैदिक मनी के विशेष-इसे दानवो के राजा पाण को सहायता के लिये ऋषि थे। महादेव जी ने उत्पन्न किया था पोर जिसके तीन सिर, तीन ६. एक तारा जिसके विषय में प्रसिद्ध है कि यह वही विशफू है पैर, छह हाथ और नौ पाखें थीं। षो इद ढकेलने पर पाकाश से गिर रहे थे मौर जिन्हे निशिरा-पा० [मिशिरस् ] दे. 'निशिर'। मार्ग में ही विश्वामित्र ने रोक दिया था। त्रिशीर्ष२-.-सपा पुं० [स.1१.तीन चोटियोवाला पहा। निकूट । त्रिशंकुज-सपा पुं० [सं० निशङ्कज ] पिशकु के पुत्र, राजा स्वष्टा प्रजापति के पुत्र का नाम । हरिश्चन । निशीपक-सपा पुं० [सं०] त्रिशूल । त्रिशंकुयाजी-सा पुं० [सं० त्रिय कुयाजिन] निशाकु को यज्ञ कराने- त्रिशुच-पना पुं० [सं०] १ धर्म, जिसका प्रकाश स्वर्ग, मतरिक्ष वाले, विश्वामित्र प्रापि। " मौर पुथिवी ठोनो स्थानो में है। २ यह जिसे दैहिक, दैविक त्रिशक्ति-सचा स्त्री० [सं०] १ इच्छा, ज्ञान, और क्रिया रूपी पौर मौतिक तीनो प्रकार के दुख हो। तीनों ईश्वर शक्तिया । २ महत्तस्य जो ग्रिगुणात्मक है। त्रिशूल- पुं० [स०] १. एक प्रकार का प्रस्त्र जिसके सिरे पर वृद्धितत्व । ३. तामिका की काली, तारा और त्रिपुरा ये तीनो तीन फल होते हैं। यह महादेव जी का मस्त माना जाता है।